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मुनस्यारी का बुरांश

चल रूपा बुरांसा क फूल बणी जौंला
छमछम हिट छींछांड़ियूं को पाणी पेई औंला

गढ़वाली कवि-गीतकार महेशानंद गौड़ ‘चंदा’ का यह लोकप्रिय गीत बतलाता है कि जनमानस में रचा-बसा बुरांश का फूल उत्तराखण्ड के उच्च पर्वतीय इलाकों की पहचान है. फरवरी के महीने के अंतिम दिनों में खिलना शुरू करने वाला यह फूल अमूमन मई-जून तक खिला रहता है. सुर्ख लाल से हलके गुलाबी तक की इसकी रंगत ऊंचाई के साथ साथ बदलती रहती है. समुद्र तल से सबसे कम ऊंचाई वाली जगहों पर यह सबसे गहरे रंग का होता है. ऊंचाई बढ़ने के साथ इसका रंग फीला पड़ता जाता है और कहीं कहीं तो यह तकरीबन सफ़ेद भी होता है.

मुनस्यारी में खिलने वाला बुरांश गुलाबी के अनेक शेड्स में खिलता है. मार्च के महीने में यह अपने चरम सौन्दर्य पर होता है जब मुनस्यारी और उसके आसपास के जंगलों में जैसे रंगों की आग लग जाती है.

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