सआदत हसन मंटो की कहानियां लिखे जाते समय जितनी विवादित हुई उतनी ही चर्चित आज भी हैं. उनकी हर कहानी समाज की कड़ुवी सच्चाई को बेपर्दा करती है. भारत-पाकिस्तान बंटवारे को मंटो ने नजदीक से देखा और खुद भी इस दर्द को महसूस किया. बंटवारे के समय मंटो मुम्बई में रहकर आल इंडिया रेडियो और फ़िल्म इंडस्ट्री में बतौर कहानीकार अच्छा नाम कमा चुके थे. लेकिन नाते-रिश्तेदारों के दवाब में आकर उन्होंने पाकिस्तान जाने का निर्णय लिया. पाकिस्तान में इस महान लेखक को बीमारी, तनाव और आर्थिक कठिनाइयों का सामना तो करना ही पड़ा साथ ही उनकी कहानियों पर अश्लीलता के आरोप लगे. इसके लिए उन्होंने मुकदमे भी झेले. हालांकि मंटो की मौत के 57 साल बाद 2012 में उन्हें पाकिस्तान का सर्वोच्च नागरिक सम्मान इम्तियाज़-ए-पाकिस्तान दिया गया.
भारत-पाकिस्तान बंटवारे से उत्पन्न त्रासदी पर मंटो ने कई मशहूर कहानियां लिखी जैसे – खोल दो, ठण्डा गोश्त, टोबा टेक सिंह आदि. इन कहानियों में शहरों-गांवों में दंगों के बीच फंसे आम लोगों की दर्दनाक दास्तान को मंटो ने बहुत खूबी से दर्शाया है. ‘खोल दो’ दंगाइयों के बीच फंसकर सामूहिक बलात्कार की शिकार हुई लड़की की कहानी है तो ‘ठंडा गोश्त’ एक सिख की कहानी है जो दंगे का फायदा उठाते हुए लूटपाट में शामिल हो जाता है.
टोबा टेक सिंह कहानी में मंटो ने लाहौर के एक पागलखाने में रह रहे कुछ पागलों के माध्यम से भारत पाक बंटवारे के दर्द को सामने रखा है. इन पागलों के बीच टोबा टेक सिंह गांव का रहने वाला बिशन सिंह सिख विक्षिप्त है जो अक्सर गुमसुम रहता है, बैठता या सोता भी नहीं है. बस कभी-कभी दीवार की टेक लेकर खड़ा हो जाता है. कुछ पूछने पर उसका एक ही ऊल-जलूल जवाब होता है – उपड़ दी गुड़गुड़ दी एनक्स दी बेध्याना दी मुंग दी दाल ते अंटशंट ऑफ़ दी लालटेन ऑफ़ दी गोरमेंट … उसके दाढ़ी और बाल बेतरतीब बढ़े हैं और वो तब ही नहाता है जब उसको खुद ही ये अहसास हो जाता है कि उस दिन पागलखाने में उससे कोई मिलने आने वाला है.
भारत-पाक बंटवारे के कुछ समय बाद दोनों देशों की सरकारों को पागलखाने में बंद पागलों की अदला-बदली का ख्याल आता है. पाकिस्तान के सिख-हिन्दू पागलों को भारत और भारत के पागलखानों में रह रहे मुस्लिम पागलों को भारत भेजने की कार्यवाही शुरू होती है. लाहौर के पागलखाने के अंदर बन्द पागलों को ये माजरा समझ में नही आता है. उन्हें तो आजादी का मतलब भी पता नहीं होता. बिशन सिंह अचानक सभी पागलों और कर्मचारियों से यह सवाल पूछने लगता है – टोबा टेक सिंह कहाँ है? भारत में या पाकिस्तान में?… कहानी का अंत बहुत मार्मिक है.
1955 में प्रकाशित मंटो की टोबा टेक सिंह कहानी पर निर्देशक केतन मेहता ने एक शानदार फ़िल्म बनाई है जो पिछले दिनों ज़ी एप्प पर रिलीज की गई है. इस फ़िल्म में बिशन सिंह उर्फ टोबा टेक सिंह की मुख्य भूमिका पंकज कपूर ने निभाई है और विनय पाठक सआदत हसन मंटो के किरदार में हैं. रंगकर्मी नन्द किशोर पन्त ने भी इस फ़िल्म में पागलखाने के सेवादार हामिद का महत्वपूर्ण किरदार निभाया है.
पटकथा, लोकेशन, अभिनय और फिल्मांकन की दृष्टि से यह फ़िल्म मंटो की कहानी के साथ पूरा न्याय करती है. बुल्ले शाह की पंक्तियों को सही जगह पर प्रयोग करने से फ़िल्म का संगीत पक्ष भी मजबूत हो गया है. फ़िल्म के एक सीन में मंटो की कहानी ‘खोल दो’ का अंतिम हिस्सा भी दर्शाया गया है. बिशन सिंह उर्फ टोबा टेक सिंह पिछले लगभग 65 सालों में मंटो को पढ़ने वाले हर शख्स के दिमाग में अंकित हो चुका है, ऐसे किरदार को पर्दे पर पंकज कपूर जैसा सधा हुआ अभिनेता ही निभा सकता था. पंकज कपूर को बिशन सिंह उर्फ टोबा टेक सिंह को पर्दे पर जीवन्त करने में पूरी सफलता मिली है. विनय पाठक, नन्द किशोर पन्त सहित सभी अभिनेताओं ने अच्छा काम किया है. मंटो की मूल कहानी को यथावत रखते हुए फ़िल्म में कुछ पात्र और घटनाएं जोड़ी गईं हैं जो लगभग 1 घण्टा 12 मिनट तक दर्शकों को बांधे रखने के लिए जरूरी भी है. सरकारों द्वारा लिए जाने वाले मूर्खतापूर्ण निर्णय के बाद पागलों के बीच पैदा हुए दिमागी उथल-पुथल को फ़िल्म में बखूबी दर्शाया गया है. टोबा टेक सिंह का गांव पाकिस्तान में रह जाता है लेकिन धार्मिक पहचान के आधार पर उसे भारत जाने को मजबूर किया जाता है. अपनी जड़ों से उजड़ने के ग़म का चित्रण फ़िल्म में बहुत हृदयस्पर्शी तरीके से किया गया है. कहानी का अंत मंटो ने जैसा लिखा है,, फ़िल्म में वैसा ही दर्शाया गया है –
इधर ख़ारदार तारों के पीछे हिन्दोस्तान था. उधर वैसे ही तारों के पीछे पाकिस्तान. दरम्यान में ज़मीन के उस टुकड़े पर जिस का कोई नाम नहीं था, टोबा टेक सिंह पड़ा था.
इस फ़िल्म में हामिद का किरदार निभा रहे रंगकर्मी नन्द किशोर पन्त ने बताया कि ज़ी समूह द्वारा भारत और पाकिस्तान के फ़िल्म निर्माताओं को साथ लेकर 12 फिल्में बनाई गई हैं. 6 फिल्में भारत में, 6 पाकिस्तान में बनी हैं. यह सभी फिल्में लम्बे समय से रिलीज का इंतजार कर रही थीं. अब इन्हें एक-एक कर हर शुक्रवार ज़ी5 एप्प पर रिलीज किया जा रहा है. केतन मेहता निर्देशित ‘टोबा टेक सिंह’ इस सीरीज की पहली फ़िल्म है जिसे 24 अगस्त 2018 को रिलीज किया गया.
टोबा टेक सिंह कहानी और उस पर बनी फ़िल्म में भारत-पाकिस्तान की सरकारों के लिए एक गहरा सन्देश छिपा है. लेकिन यह सन्देश न तब की सरकारें समझना चाहती थीं न अब की. सिनेमाघरों में रिलीज होती तो फ़िल्म शायद ज्यादा लोगों तक पहुंच भी पाती. ये अलग बात है कि 200-300 करोड़ के धंधे से फ़िल्म की सफलता का आंकलन करने वाली इस इंडस्ट्री में यह फ़िल्म पिटी हुई फ़िल्म ही साबित हो पाती.
हेम पंत मूलतः पिथौरागढ़ के रहने वाले हैं. वर्तमान में रुद्रपुर में कार्यरत हैं. हेम पंत उत्तराखंड में सांस्कृतिक चेतना फैलाने का कार्य कर रहे ‘क्रियेटिव उत्तराखंड’ के एक सक्रिय सदस्य हैं .
फिल्म का ट्रेलर यहाँ देखें-
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