जगमोहन रौतेला

गढ़वाली लोकगीत के पितामह ‘जीत सिंह नेगी’ की पहली पुण्यतिथि है आज

2 फरवरी 1925 को जन्मे पहाड़ के महान कलाकार जीत सिंह नेगी की आज पहली पुण्यतिथि है. जीत सिंह नेगी ने छः दशक से अधिक समय तक लोकसंगीत की साधना की थी. जीत सिंह नेगी को गढ़वाली गीत-संगीत-रंगकर्म का आदिपुरुष माना जाता है. जीत सिंह नेगी का जीवन उत्तराखण्ड के लोक संगीत का एक सम्पूर्ण युग है.
(Remembering Jeet Singh Negi Folk Singer)

जीत सिंह नेगी उत्तराखण्ड के ऐसे पहले लोक गायक थे, जिनका एलपी रिकार्ड ( ग्रामोफोन ) 1949 में बन गया था. पौड़ी जिले के पट्टी पैडल्स्यूँ के गॉव अयाल में जन्मे जीत सिंह नेगी की मॉ का नाम रुप देवी नेगी और पिता का नाम सुल्तान सिंह नेगी था. प्राथमिक शिक्षा कण्डारा ( पौड़ी ) के बेसिक स्कूल से पूरी कर जीत सिंह नेगी अपने पिता के साथ म्यामार चले गये वहां उन्होंने मिडिल तक की शिक्षा पास की.

पिता का तबादला लाहौर होने के कारण उन्होंने मैट्रिक की शिक्षा जुगल किशोर पब्लिक स्कूल, लाहौर से पूरी की और बाद में पौड़ी के गवरमेंट कॉलेज से इंटर मीडिएट पास किया. गांव लौटने के बाद उन्होंने गढ़वाली में कई गीत लिखे और उन्हें गाने लगे. 1949 में उनके 6 गीतों की रिकार्डिंग ”यंग इंडिया ग्रामोफोन कम्पनी” ने रिकार्ड किए यही कम्पनी बाद में एचएमवी कहलाती थी.

जीत सिंह नेगी द्वारा ही लिखा और निर्देशित ”भार भूल” नाटक 1952 में गढ़वाल भ्रातृ मंडल, बम्बई ( अब मुम्बई ) द्वारा मंचित किया गया था. उसके बाद 1955 से तो नेगी जी की सांस्कृतिक टोली द्वारा देश के विभिन्न नगरों में गीत–नृत्य नाटिकाओं का मंचन किया जाता रहा. इससे पहले 1954 में उन्होंने पहली बार आकाशवाणी दिल्ली के लिए अपने गीतों की रिकार्डिंग की. जिसमें उन्होंने अपना सबसे प्रसिद्ध गीत ” तू होली उच्चि डांड्यों मां वीरा, घसियार्यों का भेष मां, खुद मां तेरी रोणू छौं मैं यख परदेश मां ” गाया. इस गीत की लोकप्रियता का जिक्र भारतीय जनगणना विभाग ने सर्वेक्षण ग्रन्थ में उस समय के सामयिक व सर्वप्रिय गीतों की श्रेणी में रखा.
(Remembering Jeet Singh Negi Folk Singer)

नेगी जी को गीतों को सुनने के लिए उस समय लोग रेडियो को घेर कर घंटों खड़े रहते थे. इस गीत को बाद में नरेन्द्र सिंह नेगी ने भी गाया. नरेन्द्र सिंह नेगी इसके अलावा भी जीत सिंह नेगी जी के अनेक गीतों को गाया गया. जिन्हें टी सीरिज ने एलबम के तौर पर निकाला था. उन गीतों में घास काटीक प्यारी छैला हे, माठू- माठू बास रे मैरा, पिंगला प्रभात का घाम, बसग्याळी उरडी सि, रौंतेली ह्वे गैनी, लाल बुरॉस को फूल खिल्यूँ, चल रे मन माथा जयोंला आदि शामिल थे.

उन्हें जितना लगाव गीत / संगीत से था, उतना ही लगाव अभिनय से भी था. इसी कारण उन्होंने कई नाटक भी लिखे और उनका निर्देशन व मंचन भी किया. जिनमें माधो सिंह भण्डारी के जीवन पर आधारित ” मलेथा की गूल “, भारी भूल राजू पोस्टमैन, रामी बौराणी, जीतू बगडवाल आदि प्रसिद्ध हैं. भारी भूल उनका पहला नाटक था. उनके गीतों के संग्रह की पुस्तकों में गीत गंगा, जौंल मंगरी, छम घुंघरू बाजला शामिल हैं. उनका एक खुदेड़ गीत ” हे दर्जी दिदा मेरा अंगणी बणें द्या ” बहुत ही लोकप्रिय हुआ. जिसे बाद में गढ़वाली गायिका रेखा धस्माना उनियाल ने भी गाया. वह भी बहुत चर्चित हुआ.

उन्होंने बम्बई में मूवी इंडिया की फिल्म ” खलीफा ” में 1949 में और मून आर्ट पिक्चर की फिल्म ” चौदहवीं रात ” में सहायक निर्देशन के तौर पर भी काम कार्य किया. नेशनल ग्रामोफोन रिकॉर्डिंग कम्पनी में भी सहायक संगीत निर्देशक रहे. नेगी जी ने देहरादून के धर्मपुर स्थित अपने आवास पर इंतिम सॉस ली. उस समय उनके पास पत्नी मनोरमा नेगी, बेटा ललित मोहन नेगी और बहू थे. उनकी एक बेटी  मधु नेगी दिल्ली में और दूसरी बेटी मंजू नेगी फरीदाबाद में हैं.  बहुआयामी प्रतिभा वाले गीतकार, गायक, कवि, निर्देशक व रंगमंच के कलाकार जीत सिंह नेगी को उत्तराखण्ड के लोक गीत/संगीत में हमेशा याद रखा जाएगा.
(Remembering Jeet Singh Negi Folk Singer)

जगमोहन रौतेला 

मूल लेख यहां पढ़ें: उत्तराखण्ड के लोक संगीत के एक युग थे जीत सिंह नेगी

काफल ट्री के नियमित सहयोगी जगमोहन रौतेला वरिष्ठ पत्रकार हैं और हल्द्वानी में रहते हैं. अपने धारदार लेखन और पैनी सामाजिक-राजनैतिक दृष्टि के लिए जाने जाते हैं.

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