1930 और 1940 के दशकों में भारतीय फिल्मों की सबसे मशहूर नायिका हुआ करती थीं देविका रानी चौधरी उर्फ़ देविका रानी (30 मार्च 1908 – 9 मार्च 1994). ‘द फर्स्ट लेडी ऑफ़ इन्डियन सिनेमा’ के नाम से मशहूर देविका रानी ने करीब दस वर्षों तक फिल्मों में काम किया.
उनका ताल्लुक एक संपन्न परिवार से था और उन्हें पढ़ने के लिए नौ साल की आयु में इंग्लैण्ड भेज दिया गया. वे वहीं बड़ी हुईं. 1928 में उनकी मुलाकात एक भारतीय फिल्म निर्माता हिमांशु राय के साथ हुई और उन्होंने अगले साल शादी कर ली. 1929 में ही उन्होंने हिमांशु राय की एक्सपेरीमेंटल फिल्म ‘अ थ्रो ऑफ़ डाइस’ में वेशभूषा डिजायन और आर्ट डायरेक्शन मे असिस्टेंट का काम किया.
इसके बाद दोनों बर्लिन में फिल्म निर्माण का प्रशिक्षण लेने जर्मनी चले गए. इसके बाद अपनी पहली फिल्म ‘कर्मा’ (1933) में हिमांशु ने खुद नायक का रोल किया और देविका ने नायिका का. यह फिल्म हिन्दी और अंगरेजी दोनों भाषाओं में एक साथ बनाई गयी. फिल्म का प्रीमियर 1933 में इंग्लैण्ड में हुआ. इस फिल्म में नायक-नायिका के बीच एक लंबा चुम्बन दृश्य था जिस कारण यूरोप के लोगों ने फिल्म में बहुत दिलचस्पी ली अलबत्ता भारत में यह फ्लॉप हो गयी.
1934 में दोनों वापस भारत लौटे. हिमांशु राय ने बॉम्बे टॉकीज नाम का प्रोडक्शन स्टूडियो खोल लिया और अगले पांच-छः वर्षों तक अनेक हिट फ़िल्में बनाईं. इनमें से अनेक में देविका रानी ने नायिका की भूमिका निभाई.
अशोक कुमार के साथ देविका रानी की जोड़ी दर्शकों को खूब भाई. 1940 में राय की मृत्यु हो गयी और देविका रानी ने स्टूडियो का काम सम्हाल लिया और 1945 में फिल्मों से संन्यास ले लिया.
इसके बाद उन्होंने मशहूर रूसी चित्रकार निकोलस
रोरिख के बेटे स्वेतोस्लाव रोरिख से विवाह कर लिया और अगले पांच दशक तक वे बंगलौर के समीप स्थित उन्हीं की एस्टेट में रहीं.
पदमश्री, दादासाहेब फाल्के पुरूस्कार और सोवियत लैंड नेहरू पुरूस्कार से सम्मानित देविका रानी अपने समय से बहुत आगे की महिला थीं और भारतीय सिनेमा के इतिहास में उनका स्थान अद्वितीय है.
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