साल 2002 में जब विस्डन के सामने पिछली शताब्दी में किसी भी भारतीय गेंदबाज द्वारा किये गए सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन को चुनने का मौक़ा आया तो सभी निर्णायक एक ही नाम पर सर्वसम्मत हुए (Remembering Bhagwat Chandrashekhar).
अगस्त 1971 में भारतीय टीम अजित वाडेकर के नेतृत्व में इंग्लैण्ड के दौरे पर थी. भारत ने उस समय तक इंग्लैण्ड में एक भी टेस्ट मैच नहीं जीता था अलबत्ता उसे क्रिकेट खेलते हुए चालीस साल होने को थे. वहीं इंग्लैण्ड क्रिकेट का स्वर्णकाल चल रहा था. पिछले तीन साल और छब्बीस टेस्ट मैच से उसकी टीम अपराजित रही थी. ओवल में सीरीज का तीसरा और अंतिम टेस्ट हुआ. इसके पहले के दोनों टेस्ट ड्रा रहे थे.
इंग्लैण्ड ने पहली पारी में 355 रन बनाए जबकि जवाब में भारत ने 284. ब्रायन लॉकहर्स्ट, जॉन एल्ड्रिच, कीथ फ्लेचर, बेसिल डी’ओलिवेरा और एलन नॉट जैसे खिलाड़ियों से सुसज्जित इंग्लैण्ड की मजबूत बल्लेबाजी को देखते हुए लगता था कि इस लीड के चलते भारत को चौथी पारी में बड़ा स्कोर बनाने की चुनौती मिलेगी. लेकिन भगवत चंद्रशेखर की फिरकी के सामने इंग्लैण्ड असहाय हो गया और कुल 101 के स्कोर पर धराशाई हुआ. चंद्रशेखर ने कुल 38 रन देकर 6 विकेट लिए और भारत ने 4 विकेट से मैच जीत लिया.
भारतीय क्रिकेट में इतिहास लिखा गया था और इस कारनामे को अंजाम तक पहुंचाने वाले चंदू यानी भगवत चंद्रशेखर के इस प्रदर्शन को विस्डन ने बीसवीं शताब्दी में किसी भी भारतीय गेंदबाज द्वारा किया गया सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करार दिया गया.
1960 और 1970 के दशक भारतीय क्रिकेट का स्पिन युग कहे जा सकते हैं. बिशनसिंह बेदी, एरापल्ली प्रसन्ना, श्रीनिवास वेंकटराघवन और भगवत चंद्रशेखर की स्पिन-चौकड़ी की उस वक्त दुनिया भर में धूम थी.
चंद्रशेखर मात्र छः साल के थे जब उनके दायें हाथ में लकवा पड़ गया. इस विपदा को उन्होंने अपने जीवन में वरदान बना लिया. उनकी लेग स्पिन बल्लेबाजों की समझ में ही नहीं आती थी. उनके हाथ से निकली गेंद की रफ़्तार इतनी तेज होती थी कि कई बार भारतीय क्रिकेट टीम का सबसे तेज गेंदबाज भी उतनी तेजी नहीं निकाल पाता था.
भारत के लिए इस गेंदबाज ने कुल 58 टेस्ट खेले जिसमें से 10 में उन्होंने अपने बूते पर भारत को जीत दिलाई. उनके बारे में एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि इन मैचों में उन्होंने रन कम बनाए और विकेट ज्यादा लिए. उन्होंने 242 विकेट लिए लेकिन रन बनाए कुल 167. वे कुल 23 दफा शून्य पर आउट हुए.
1977-78 के ऑस्ट्रेलिया के दौरान उन्होंने कुल 4 बार जीरो का स्कोर किया. इस उपलब्धि के लिए ‘सम्मानित’ करते हुए उन्हें मशहूर कम्पनी ग्रे-निकल्स का एक विशेष बल्ला भेंट किया गया जिसके बीच में क्रिकेट की गेंद के बराबर का एक छेद बनाया गया था.
भगवत चंद्रशेखर क्रिकेट के उस वक्त के सुपरस्टार थे जब विनम्रता और खेल की भावना क्रिकेट को परिभाषित किया करते थे. उनके समकालीन इस बात पर एकमत थे कि चंदू जैसा विनम्र खिलाड़ी भारत में दूसरा कोई न था. बिशन सिंह बेदी ने तो यहाँ तक कहा था कि आने वाले समय में लोग यकीन नहीं कर सकेंगे कि वैसा कोई खिलाड़ी कभी भारत के लिए खेला था.
यार-दोस्तों के बीच चंदू के नाम से जाने जाने वाले इन्हीं भागवत सुब्रहमन्यम चंद्रशेखर का आज 74वां जन्मदिन है.
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