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1942 में आज ही के दिन हुई थी सालम क्रांति

‘भारत छोड़ो’ आंदोलन में कुमाऊं के जनपद अल्मोड़ा में स्थित सालम पट्टी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है. अल्मोड़ा जनपद के पूर्वी छोर पर बसे सालम क्षेत्र को पनार नदी दो हिस्सों में बांटती है. यहां की 25 अगस्त 1942 की अविस्मरणीय घटना इतिहास के पन्नों में ‘सालम की जनक्रांति’ के नाम से जानी जाती है.

राम सिंह धौनी

उन्नीसवीं सदी के अंत तक कुमाऊं के अन्य जगहों की भांति इस पिछड़े क्षेत्र में भी स्वतंत्रता संग्राम की अलख जल चुकी थी. बाद में सालम के बिनौला गांव के नवयुवक राम सिंह धौनी के प्रयासों से इस इलाके में और अधिक जागृति आने लगी. राम सिंह धौनी अल्मोड़ा में पढ़ाई के दौरान ही शिक्षा, देशप्रेम और राष्ट्रभाषा हिन्दी के प्रसार के काम में जुट गये थे. स्वामी सत्यदेव परिव्राजक द्वारा स्थापित संस्था शुद्ध साहित्य समिति से जुड़कर उन्होंने देश सेवा का अद्भुत काम किया.

1919 में इलाहाबाद से बीए पास करने के उपरान्त धौनी जी ने सालम के बांजधार में पुस्तकालय व कताई बुनाई केन्द्र की स्थापना की और साथी रेवाधर पांडे, जगत सिंह भण्डारी व अन्य सहयोगियों के साथ पैदल घूम-घूम कर स्वराज्य प्राप्ति के लिए युवकों को प्रेरित करने का कार्य किया. वे अल्मोड़ा जिला परिषद् के सदस्य व अध्यक्ष भी रहे. नवम्बर 1925 में वे शक्ति के सम्पादक भी बने. 1929 में मुम्बई में अध्यापन कार्य के दौरान उन्होंने राष्ट्रीय आंदोलन के लिए प्रवासी पर्वतीय लोगों से चन्दा भी एकत्रित किया. 1930 में मुम्बई में चेचक के प्रकोप से राम सिंह धौनी बीमार हो गये ठीक होने के कुछ दिन उपरान्त 12 नवम्बर 1930 को उनकी मृत्यु हो गयी.

1930 में सालम के दुर्गादत्त पांडे शास्त्री जब बनारस से संस्कृत की पढ़ाई कर घर लौट आये तो उन्होंने धौनी का नेतृत्व संभाल लिया और राष्ट्रीय जन जागरण के काम में जुट गये. पुभाऊं गांव में शास्त्री जी भाषण देते समय पुलिस ने गिरफ्तार कर अल्मोड़ा कारागार में भेज दिया था. जेल से रिहा होने के बाद वे पुनः रेवाधर पांडे, प्रताप सिंह बोरा, मानसिंह, मर्चराम, जमन सिंह नेगी व मानसिंह धानक के साथ स्वराज्य प्राप्ति के अभियान में सक्रिय हो गये. 1938 में सालम के एक और क्रांतिकारी रामसिंह आजाद भी स्वराज्य आंदोलन में सक्रिय हो गये.

1941 में महात्मा गांधी के सविनय अवज्ञा आंदोलन का असर सालम में भी पड़ा कई जगहों पर सत्याग्रहों का दौर चला जिसमें यहां के दो दर्जन के करीब कांग्रेसी कार्यकताओं को गिरफ्तार कर उन्हें अल्मोड़ा जेल भेज दिया गया. सालम के प्रवेश द्वार शहरफाटक में 23 जून 1942 को मण्डल कांग्रेस के तत्वाधान में एक बड़ी सभा आयोजित की गयी. जिसमें हर गोविन्द पंत ने झण्डा फहराया. 1 अगस्त 1942 को तिलक जयन्ती पर सालम के 11 जगहों पर झण्डा फहराने का निर्णय किया. मुम्बई में अखिल भारतीय कांग्रेस कार्य समिति के अधिवेशन में ‘भारत छोड़ो’ और ‘करो या मरो‘ का प्रस्ताव पास होने के बाद 9 अगस्त की सुबह ही महात्मा गांधी व गोविन्द बल्लभ पंत की गिरफ्तारी का असर कुमाऊं में भी पड़ा कई नेताओं व कार्यकर्ताओं की धर पकड़ हुई.

सालम में भी 11 अगस्त को पटवारी दल सांगण गांव में रामसिंह आजाद के घर पंहुचा जहां बड़ी संख्या में कौमी दल के स्वयंसेवक मौजूद थे. रामसिंह आजाद शौच के बहाने से फरार हो गये. 19 अगस्त को स्वयंसेवकों के सचल दल की जब नौगांव में आगामी कार्यक्रमों की रूप रेखा तय की जा रही थी तो प्रशासन के पुलिस बल ने गांव को चारों तरफ से घेरे दिया और बैठक में शामिल 14 कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार कर लिया. पुलिस बल की गिरफ्त इन कार्यकर्ताओं के आजादी के गीत रात के सन्नाटे को चीरते हुए पहाड़ियों से टकरा रहे थे. गांवों में खबर फैलते ही लोग रात में ही एकत्रित हो गये. भीड़ के तेवर देखकर पुलिस का अमला बुरी तरह घबरा गया. गिरफ्तार स्वयंसेवकों को एक ओर बैठाकर जनता ने पुलिस बल को ललकारते हुए इन स्वयंसेवकों को छोड़ने को कहा.

रामसिंह आज़ाद

डराने की नीयत से जैसे ही पटवारी ने हवाई फायर किया जनता मशालों के उजाले में ही पुलिस बल पर टूट पड़ी और उन्हें लहुलुहान कर उनकी बन्दूकें छीन लीं. पुलिस बल के भाग जाने के बाद पंच सयाने कार्यकर्ताओं (रामसिंह आजाद, रेवाधर पांडे, लछमसिंह ,मानसिंह धानक तथा लछमसिंह बोरा) ने जनता के मध्य तय किया कि अगले एक दो दिन इलाके के लोग धामदेव व जैंती के स्कूल में एकत्रित होंगें. जनता ने रात में ही जैंती के सरकारी स्कूल में रखा सरकारी कारिंदों का सामान भी अस्त-व्यस्त कर दिया.

25 अगस्त की सुबह से ही आसपास के दर्जनों गांवों की जनता तिरंगे और ढोल बाजों के साथ देशप्रेम के नारे लगाते हुए धामदेव के तप्पड़ में एकत्रित होने लगी. कुछ ही देर बाद सूचना मिली कि गोरों की फौज पूरी शक्तिबल के साथ थुवासिमल पहुंच गयी है जिसे कुमाऊं कमिश्नर ओर से सालम की बगावत का सख्ती से दमन करने के आदेश मिले हैं.

यह खबर मिलते ही जनता में उबाल आ गया और वे गोरों की फौज से डटकर मुकाबला क़रने की तैयारी में जुट गये. हजारों की संख्या में एकत्रित लागों का जोश बढ़ता ही जा रहा था. कुछ ही देर में जब गोरों की फौज पहाड़ पर पहुंचने लगी तो जनता को भयभीत करने के लिए उन्होंने हवाई फायर करनी शुरू कर दी. तब जनता ने अपना बचाव करते हए उन पर पत्थरों की बौछार करनी शुरू कर दी. इस समय धामदेव का मैदान पूरी तरह रणभूमि में बदल गया था.

एक ओर गोरो की फौज तो दूसरी तरफ आजादी के रणबांकुरे. पत्थरों की मार और गोलियों की धांय-धांय से चारों ओर हाहाकार  मचने लगा. दो उत्साही नौजवान चैकुना गांव का नर सिंह धानक तथा काण्डे गांव का टीका सिंह कन्याल पहाड़ी की ओट से फौज की पोजीशन देखकर पत्थरों की मार करने का निर्देश देने में लगे थे तभी गोरों की फौज की तरफ से एक गोली नर सिंह धानक के पेट में जा लगी और वह वहीं पर शहीद हो गये. गोरों की फौज के साथ सालम के रणबांकुरों का संघर्ष चल ही रहा था कि कुछ ही अन्तराल में एक गोली टीका सिंह कन्याल को भी लगी और वह गंभीर रूप से घायल हो गये. जिनकी अगले दिन अल्मोड़ा के अस्पताल में मृत्यु हो गयी. शाम होने तक आजादी के लिए किया गया यह अभूतपूर्व संघर्ष धीरे-धीरे समाप्त हो गया. बारदात के समय पकड़ गये कौमी सेवादल के कार्यकर्ताओं की रायफल के बटों से बुरी तरह पिटाई कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. सालम के इस गोलीकाण्ड में दो लोगों के शहीद होने के साथ ही 200 से ज्यादा लोगों को चोटें आयी थी. गिरफ्तार किये गये तमाम क्रांतिकारियों में प्रताप सिंह भी शामिल थे. पुलिस जब उन्हें अपने साथ जेल ले जा रही थी तब वे तन्मय होकर आजादी का यह अमर गीत गा रहे थे-

हर जगह दल क्रांति के हों, तब बेड़ा पार हो
दुश्मनों का नाश हो, अपना वतन गुलजार हो


चंद्रशेखर तिवारी. पहाड़ की लोककला संस्कृति और समाज के अध्येता और लेखक चंद्रशेखर तिवारी दून पुस्तकालय एवं शोध केन्द्र, 21,परेड ग्राउण्ड ,देहरादून में रिसर्च एसोसियेट के पद पर कार्यरत हैं.

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Girish Lohani

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