समाज

गीत-नाट्य शैली पर आधारित है कुमाऊं में प्रचलित रामलीला

कुमाऊं अंचल में प्रचलित रामलीला गीत-नाट्य शैली में प्रस्तुत की जाती है. इसमें शास्त्रीयता का पुट मिलता है. कहा जाता है कि रामलीला प्रदर्शन की परंपरा ब्रज से होते हुए कुमाऊं तक पहुंची. रामलीला की शैली, गायन, ताल, छंद का जो नाट्य रूप था, इसी से अभिप्रेरित होकर कुमाऊं के विद्वानों के मन में रामलीला को नया रूप देने का विचार आया और यहीं से ‘कुमाऊं की रामलीला’ उभर कर आई.

कुमाऊं की रामलीला के मर्मज्ञ इस बात को मानते हैं कि ब्रज की रासलीला के अतिरिक्त ‘नौटंकी शैली’ व पारसी रंगमंच का प्रभाव भी कुमाऊं की रामलीला में मिलता है. लेखक चंद्रशेखर तिवारी के मुताबिक कुमाऊं की रामलीला विशुद्ध मौखिक परंपरा पर आधारित थी, जो पीढ़ी दर पीढ़ी लोक मानस में रचती-बसती रही. शास्त्रीय संगीत के तमाम पक्षों का ज्ञान न होते हुए भी लोग सुनकर ही इन पर आधारित गीतों को सहजता से याद कर लेते थे.

‘कुमाऊं की रामलीला अध्ययन एवं स्वरांकन’ पुस्तक में डॉ. पंकज उप्रेती लिखते हैं कि तमाम विविधता समेटे होने के बावजूद कुमाऊं में प्रचलित होने के कारण यहां की रामलीला को ‘कुमाऊंनी रामलीला’ संबोधित कर दिया जाता है. जबकि लोक का प्रकटीकरण नहीं होने के कारण इसे ‘कुमाऊं की रामलीला’ कहना उचित रहेगा.

ब्रजेंद्र साह ने तैयार की ‘कुमाऊंनी रामलीला’

कुमाऊं अंचल में ‘कुमाऊंनी रामलीला’ का भी प्रचलन है. हालांकि स्वरांकन न हो पाने के कारण यह प्रचलन में कम है. लेखक डॉ. पंकज उप्रेती के मुताबिक ‘कुमाऊंनी रामलीला’ पूरी तरह लोक पर आधारित है. इसकी बोली-भाषा से लेकर संगीत पक्ष तक कुमाऊं से उठाया गया है. 1957 में रंगकर्मी स्व. ब्रजेंद्र लाल साह ने लोक धुनों के आधार पर रामलीला गीता-नाटिका की रचना की. स्व. डॉ. एसएस पांगती के प्रयासों से पिथौरागढ़ के दरकोट में ‘कुमाऊंनी रामलीला’ का मंचन शुरू हुआ, जो आज तक जारी है.

ऑडियो रूप में हो रही संग्रहित

लेखक स्व. शेर सिंह पांगती की प्रेरणा से रंगकर्मी देवेंद्र पांगती ‘देवु’ ‘कुमाऊंनी रामलीला’ को ऑडियो रूप में संकलित करते में जुटे हैं. दो साल की मेहनत के बाद ‘देवु’ ने लोक गायकों की आवाज में सात अध्यायों का संकलित कर लिया है. देवेंद्र पांगती कहते हैं एक बार ऑडियो रूप में संकलित होने के बाद कहीं भी ‘कुमाऊंनी रामलीला’ का मंचन आसान हो जाएगा.

-गणेश पांडे

हल्द्वानी में रहने वाले गणेश पांडे पेशे से पत्रकार हैं. कई प्रतिष्ठित अख़बारों में काम कर चुके गणेश वर्तमान में एक दैनिक अख़बार में संवाददाता हैं. गणेश उत्तराखण्ड के लोकजीवन से गहरा सरोकार रखते हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

1 day ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

5 days ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

5 days ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

5 days ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

5 days ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

5 days ago