नई टिहरी से मात्र 6 किलोमीटर चंबा की तरफ बढ़ने पर एक कच्चा सा अनजान रास्ता ऊपर गॉंव की तरफ जाता है. इस रास्ते पर बमुश्किल 1 किलोमीटर की दूरी पर आपको एक भव्य मंदिर नजर आता है जिसे रैसाड़ देवता के नाम से जाना जाता है. (Raisad Devta Temple)
भगवान शिव को समर्पित यह मंदिर हाल ही में अपने भव्य स्वरूप में आया है. इस मंदिर के निर्माण कार्य में गॉंव के लोगों ने अपना भरपूर योगदान दिया है. रैसाड़ को लामकोट गॉंव का कुल देवता माना जाता है. (Raisad Devta Temple)
किवदंति है कि एक बार गॉंव में कुछ चोर आए तो गॉंव वालों को आगाह करने के लिए खुद रैसाड़ देवता बाहर आए और लोगों को चोरों से सतर्क करने लगे. मंदिर के निर्माण कार्य पूर्ण होने तक गर्भ गृह की मूर्ति को मंदिर प्रांगण में ही एक छोटे टिन सेड के नीचे स्थापित किया गया जहॉं पर गॉंव के लोग पूजा अर्चना करने आते थे. मंदिर के निर्माण कार्य पूर्ण होने के साथ ही गाजे-बाजे व पूजा-पाठ के साथ ही मूर्ति को यथावत नये मंदिर में स्थापित कर दिया गया.
नई टिहरी से लगभग 10 किलोमीटर की दूरी पर है बादशाहीथौल. यहॉं से रैसाड़ देवता का मंदिर पहाड़ की एक ऊंची चोटी पर नजर आता है. बादशाहीथौल से देखने पर तो ऐसा लगता है जैसे कि मंदिर तक पहुँचना बहुत ही दुर्गम व कठिन होगा.
पहाड़ों की भौगोलिक बनावट कई बार अलग-अलग कोणों से अलग-अलग नजर आती है लेकिन वास्तविकता में जब उस जगह जाओ तो वह बिल्कुल सहज नजर आने लगती है. इतना ही सहज है रैसाड़ देवता मंदिर तक पहुँचना. आधुनिक व पहाड़ी पत्थरों से निर्मित यह मंदिर बहुत ही सुंदर व सुडौल है. मंदिर के बोर्ड पर सौजन्य से त्रिलोक सिंह नेगी सपरिवार लिखा गया है तो इससे यही निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि मंदिर निर्माण में नेगी जी व उनके परिवार का विशेष योगदान रहा होगा.
मंदिर के पिछले हिस्से से प्रकृति का एक मनोरम दृश्य नजर आता है. दूर तक घाटी में बसा शहर बादशाहीथौल व चंबा देखकर आँखें एक बार को ठहर जाती हैं. एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय का एसआरटी कैंपस दूर से ही हरा-भरा चमकता दिखाई पड़ता है. कई बार स्कूली बच्चे इस मंदिर के आस-पास ट्रेकिंग के लिए आते हैं क्योंकि यहॉं से प्रकृति व घाटियों का नजारा ही अप्रतिम नजर आता है.
किस्मत अच्छी हो और बादल घिर आएँ तो फिर एक पल के लिए समय ठहर सा जाता है. मौसम साफ होने पर दूर प्रसिद्ध खैंट पर्वत दिखाई देता है. खैंट पर्वत थात गॉंव में स्थित है, जिसे परियों का देश भी कहा जाता है. लोगों का मानना है कि यहॉं परियों का वास है जो अचानक ही लोगों को दिख जाती हैं. कई लोगों का यह भी मानना है कि ये परियॉं आस-पास के गाँवों की संकट से रक्षा करती हैं. थात गॉंव में परियों की पूजा की जाती है और जून के महीने में भव्य मेला भी लगता है.
नई टिहरी जाने वाले हर मुसाफिर को रैसाड़ देवता न सिर्फ भगवान शिव के दर्शन के लिए बल्कि प्रकृति का आनंद लेने के लिए भी जरूर जाना चाहिए. यकीन मानिये मंदिर से घाटी की ओर बिखरी छटा को देखकर आप वाह-वाह करते हुए ही वापस लौंटेंगे.
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नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.
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