पूर्णागिरि मंदिर उत्तराखण्ड राज्य के चम्पावत जिले के टनकपुर नगर में काली नदी, जिसे शारदा नदी भी कहते हैं, के दाएं किनारे पर स्थित है. चीन, नेपाल और तिब्बत की सीमाओं से घिरे और सामरिक दृष्टि से अति महत्त्वपूर्ण चम्पावत जिले के प्रवेशद्वार टनकपुर से 19 किलोमीटर दूर स्थित यह शक्तिपीठ माँ भगवती की 108 सिद्धपीठों में से एक है. यह शक्तिपीठ टनकपुर के पर्वतीय अंचल में स्थित अन्नपूर्णा चोटी के शिखर में लगभग 3000 फीट की उंचाई पर स्थापित है.
पूर्णागिरि मंदिर की स्थापना व इतिहास
पूर्णागिरि मंदिर की यह मान्यता है कि जब भगवान शिवजी तांडव करते हुए यज्ञ कुंड से सती के शरीर को लेकर आकाश गंगा मार्ग से जा रहे थे तब भगवान विष्णु ने तांडव नृत्य को देखकर सती के शरीर के टुकड़े कर दिए जो आकाश मार्ग से पृथ्वी के विभिन्न स्थानों में जा गिरे. कहा जाता है माता सती की नाभि चम्पावत जिले के पूर्णा पर्वत पर गिरने से पूर्णागिरि मंदिर की स्थापना हुई.
पौराणिक कथा पूर्णागिरि मंदिर
पुराणों के अनुसार महाभारत काल में प्राचीन ब्रह्मकुंड के निकट पांडवों द्वारा देवी भगवती की आराधना तथा बह्मदेव मंडी में सृष्टिकर्ता ब्रह्मा द्वारा आयोजित विशाल यज्ञ में एकत्रित अपार सोने से यहां सोने का पर्वत बन गया. सन 1632 में कुमाऊं के राजा ज्ञान चंद के दरबार में गुजरात से पहुंचे श्रीचन्द्र तिवारी को इस देवी स्थल की महिमा स्वप्न में देखने पर उन्होंने यहां मूर्ति स्थापित कर इसे मंदिर का रूप दिया. इस शक्तिपीठ में पूजा के लिए वर्ष-भर यात्री आते-जाते रहते हैं परन्तु चैत्र मास की नवरात्र में यहां का विशेष महत्व माना जाता है.
सिद्ध बाबा मंदिर की कथा
पूर्णागिरि मंदिर के सिद्ध बाबा मंदिर के बारे में कहा जाता है कि एक साधु ने जिद से माँ पूर्णागिरि के उच्च शिखर पर पहुंचने की कोशिश की तो देवी ने क्रोध में साधु को नदी के पार फेंक दिया. मगर देवी ने इस संत को सिद्ध बाबा के नाम से विख्यात कर उसे आशीर्वाद दिया कि जो व्यक्ति मेरे दर्शन करेगा, उसे सिद्ध बाबा के दर्शन भी करने होंगे तभी उसकी मनोकामना पूरी होगी. इसलिये जो भी पूर्णागिरि जाता है वो नेपाल में स्थित सिद्ध बाबा के दर्शन हेतु भी जरूर जाता है.
पूर्णागिरि मंदिर में स्थित ‘झूठे का मंदिर’ की कहानी
कहा जाता है कि एक बार संतानहीन सेठ को देवी ने सपने में कहा – “मेरे दर्शन के बाद ही तुम्हे पुत्र होगा”. सेठ ने माँ पूर्णागिरि के दर्शन किये और कहा कि यदि उसका पुत्र होगा तो वह देवी के लिए सोने का मंदिर बनाएगा. मनोकामना पूरी होने पर सेठ ने लालच कर सोने के मंदिर की जगह तांबे के मंदिर में सोने की पॉलिश लगाकर देवी को अर्पित करने के लिए मंदिर की ओर जाने लगा तो टुन्यास नामक स्थान पर पहुंचकर वह तांबे के मंदिर को आगे नहीं ले जा सका तब सेठ को उस मंदिर को उसी स्थान में रखना पड़ा. इसलिये उसे झूठे का मंदिर नाम से जाना जाने लगा. पूर्णागिरि मंदिर के बारे में यह भी मान्यता है कि इस स्थान पर मुंडन कराने पर बच्चा दीर्घायु और बुद्धिमान होता है.
पूर्णागिरि पुण्यगिरी और पुन्यागिरि के नाम से भी जाना जाता है. यहां से काली नदी निकल कर मैदान की ओर जाती है जहां इसे शारदा नदी के नाम से जाना जाता है.
इस समय यहां पर कई दुकानें और धर्मशालायें बन गयी हैं. इन दुकानों के दुकानदार यात्रियों को मनमानी कीमत पर सामान बेचते हैं और यात्रियों के मना करने पर उनसे लड़ने तक को तैयार हो जाते हैं. शासन-प्रशासन को इस ओर ध्यान देना चाहिये और इस तरह की मनमानियों और गुंडागर्दी पर रोक लगानी चाहिये ताकि इस स्थान की पवित्रता बनी रहे.
विनीता यशस्वी
विनीता यशस्वी नैनीताल में रहती हैं. यात्रा और फोटोग्राफी की शौकीन विनीता यशस्वी पिछले एक दशक से नैनीताल समाचार से जुड़ी हैं.
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