डोटी की राजकुमारी रुद्रचंद की मां ने तोहफे में अपने भाई से सीरा मांगा, लेकिन भाई ने उसे देने से इनकार कर दिया. रुद्रचंद के पिता की मृत्यु हो जाने पर भी उसकी मां सती नहीं हुई. उसने कहा ‘जब मेरा बेटा सीरागढ़ पर अधिकार कर लेगा मैं तभी अपने पति से मिलूंगी.’ (Purkhu Captured the Siragarh Fort in This Way)
जब रुद्रचंद मैदानी क्षेत्र से वापस लौटा तो उसकी मां ने उससे कहा कि वह सीरा के लिए हथियार उठाए और सीरा को कुमाऊं में मिलाने की अपने पिता की इच्छा पूरी करे. वह अपने पति से जल्द मिलना चाहती है लेकिन जब तक सीरा पर कब्ज़ा करने की उनकी इच्छा पूरी नहीं होती वह ऐसा नहीं कर सकती.
मां की आज्ञा से रुद्रचंद ने सीरा पर आक्रमण कर दिया लेकिन रैंका राजा हरिमल्ल ने उसे हरा दिया. वह अपनी बची हुई सेना के साथ गंगोली लौटने को विवश हो गया.
लौटते हुए अधिकांश साथियों से अलग-थलग पड़ा, दौड़-भागकर थका-हारा रुद्रचंद जब एक पेड़ के नीचे सुस्ता रहा था तभी उसकी नजर एक मकड़े पर पड़ी. मकड़ा एक जाला बन रहा था और उस जाले के दो छोरों को आपस में मिलाने की असफल कोशिशों में जुटा हुआ था. छह बार असफल होने के बाद सातवीं बार उसे अपने प्रयास में सफलता मिल ही गयी. जाल पूरा बन जाने के बाद मकड़ा उसमें फंसने वाली मक्खियों को खाने लगा. रुद्रचंद ने सोचा कि जब छोटा सा मकड़ा अपनी दृढ़ इच्छा और संकल्पशक्ति से अपने लक्ष्य को हासिल कर सकता है तो वह ऐसा क्यों नहीं कर सकता.
अल्मोड़ा लौटने पर उसने दरबारियोंका किस्सा सुनाया. दरबारियों ने एक स्वर में कहा कि रास्ते की यह घटना एक शगुन है. उन्होंने राजा को सलाह दी कि सीरागढ़ की ताकत और सुरक्षा प्रबंधों का अंदाजा लगाने के बाद अगला प्रयास करना चाहिए.
संयोग से सीरा में रहने वाले बिचराल ब्राह्मण की बहन का बेटा गंगोली में रहता था, इसका नाम पुरुषोत्तम उर्फ़ पुरखू पंत था. वह बहुत साधन संपन्न और रसूख वाला था. मनकोटी राजा के खजाने का बड़ा हिस्सा भी उसी के पास था.
रुद्रचंद ने पुरखू को बुलाया लेकिन वह नहीं आया. राजा ने अपने आदेश की अवहेलना के लिए उस पर 1 लाख रुपए का दंडकर लगाया और प्रस्तुत न होने पर और कठोर दंड दिए जाने की धमकी दी. इसके बाद पुरखू दरबार में हाजिर हुआ और उसने कहा कि मेरे पास धन-संपत्ति नहीं है. लेकिन मैं सीरागढ़ और बधाणगढ़ को जीतकर उन्हें सौंप सकता हूं. पुरखू के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर उसे उस सेना का सेनापति नियुक्त किया गया जिसने सीरा पर धावा बोला.
सीरा किले पर कब्ज़ा करने की रुद्रचंद की सेना ने तीन बार कोशिश की लेकिन कामयाबी नहीं मिली. इस तरह पुरखू की सेना भी छिन्न-भिन्न हो गयी.
इस अभियान से लौटते हुए पुरखू जब एक पेड़ के नीचे सुस्ता रहा था तो उसे भी रुद्रचंद की तरह कुछ दिखाई दिए. ये एक गुबरैला था जो गोबर के एक बड़े गोले को बिल के भीतर ले जाने में लगा था. चार बार गोला गिर गया और पांचवी बार गुबरैला गोबर के गोले को बिल में ले जाने में कामयाब हुए.
इस घटना के बाद जब पुरखू भोजन कर रहा था तो उसे केले के पत्ते में खीर परोसी गयी. खाते हुए काफी खीर पत्ते के बाहर गिर जा रही थी. एक बूढ़ी आमा इसे देख रही थी. उसने कहा “तुम भी पुरखू की तरह महामूर्ख लगते हो, वो सीरा नहीं ले सका और तुम खीर नहीं खा पा रहे हो. क्यों नहीं तुम बाहर से खाना शुरू करते, बीच में तो खुद ही पहुंच जाओगे और जरा भी खीर नीचे नहीं गिरेगी. अगर पुरखू भी सीरा के बाहरी छोरों पर हमला करे और जुहार से रसद की आपूर्ति व नदी का भूमिगत रास्ता बंद कर दे तो सीरा की सेना को आत्मसमर्पण करना ही पड़ेगा.” पुरखू अपना परिचय दिए बिना वहां से उठकर चला गया.
पुरखू ने दोबारा अपनी सेना इकठ्ठा की और बूढी आमा की सलाह पर अमल करते हुए किले की घेराबंदी कर दी. उसने जुहार से आने वाली सामाग्री रुकवा दी और चुंगपाथ वह सुरंग भी बंद करवा दी जहाँ से किले को पानी की आपूर्ति हुआ करती थी. परिणाम के तौर पर हरिमल्ल को किला छोड़कर डोटी भागना पड़ा और सीरा पर कुमाऊं का क़ब्ज़ा हो गया.
रुद्रचंद ने कई गांव पुरखू को ईनाम में दे डाले, जिन्हें ताम्रपत्रों में दर्ज कर दिया गया. गंगोली में रहने वाले पुरखू के वंशजों के पास आज भी वे ताम्रपत्र हैं.
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थोकदार: मध्यकालीन उत्तराखण्ड का महत्वपूर्ण पद
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