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हर ‘जिंदगी’ को धुएं में उड़ाता चला गया !

अंग्रेजी अखबार हिन्दुस्तान टाइम्स में प्रकाशित खबर ‘ग्लोबल हेल्थ रिसर्च पेपर’ की रिपोर्ट के हवाले से पता चला हैं कि क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) का कारण  80% विकसित देशों में धुम्रपान है. ग्लोबल हेल्थ रिसर्च पेपर के मुताबिक भारत में आधे से ज्यादा (54%) मामलें घर के बाहर और अंदर होने वाले वायु प्रदूषण के कारण होते है.

सीधे तौर पर श्वसन रोगों पर रिसर्च पेपर की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में लगभग 25% क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) मामले धूम्रपान करने के लिए जिम्मेदार हैं. यह ह्रदय रोगों का पूरा एक समूह है, जिसके कारण प्रतिवर्ष लगभग ‘ग्लोबल बर्डन डिजीज की रिपोर्ट’ के मुताबिक़ पांच लाख सत्ताईस हज़ार लोगों की मौत हर वर्ष भारत में होती है.

चिंताजनक है कि 1990 में भारत में सीओपीडी मामले 28.1 मिलियन से बढ़कर 2016 में 55.3 मिलियन हो गए. अन्य धूम्रपान स्रोत भी फेफड़ों को भी प्रभावित करते हैं. “उदाहरण के लिए, मॉस्किटो कॉयल एक से धुआं 100 सिगरेट धूम्रपान करने और एक धुप,अगरबत्ती जलाने से  500 सिगरेट धूम्रपान करने के समान हानिकारक हो सकता है क्योंकि उन्हें आम तौर पर घर के अंदर जलाया जाता है.

गौरतलब है कि विश्व व्यापार संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक़  घरों के अंदर होने वाला प्रदूषण वैश्विक पर्यावरण की सबसे बड़ी समस्या है. विश्व भर में घरों में होने वाले प्रदूषण से प्रतिवर्ष 45 लाख लोगों की जान जाती है.

सीओपीडी के अलावा, वायु प्रदूषण कैंसर, हृदय रोग और मधुमेह का खतरा बढ़ाता है. वायु प्रदूषण भारत में लगभग 4-5% मधुमेह के मामलों का कारण है. विश्व वयस्क तंबाकू सर्वेक्षण 2016-17 के अनुसार, लगभग 10.7% भारतीय धूम्रपान करते हैं. लेकिन इस रिपोर्ट में एक तथ्य और भी बताया गया है कि भारत में सीओपीडी मामलों का एक बड़ा हिस्सा उन लोगों में होता है जिन्होंने कभी धूम्रपान नहीं किया है.

एक्सपर्ट्स का मानना है कि वायु प्रदूषण कैंसर का 3.3% और फेफड़ों के कैंसर के लिए 43% का जोखिम का कारक है. हैरानी की बात यह है कि जम्मू-कश्मीर हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड और हरियाणा के संयुक्त उत्तरी राज्यों में सीओपीडी के मामले बढ़ रहे हैं.

जबकि इन राज्यों में कमोबेश वायु प्रदूषण बड़े शहरों की तुलना में कम माना जाता है. लेकिन इन पहाड़ी राज्यों में हीटिंग और खाना पकाने में निकलने वाले धुंए के कारण ऐसा हो रहा है. कई रिपोर्ट्स में यह बताया जा चुका है कि घर के बाहर से ज्यादा घर के अंदर होने वाले प्रदूषण अधिक नुकसानदायक है.

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