महाराष्ट्र में पिछले एक महीने में सामने आए घटनाक्रम पर अगर गौर फरमाएंगे, तो होश उड़ जाएंगे. जनता बेचारी सिर्फ तमाशबीन बनकर हैरान हो रही है. वह करे भी तो क्या. उसके हाथ में कुछ नहीं. एक वोट था, उसका वह उपयोग कर चुकी. उसने जिस पार्टी को सबसे ज्यादा वोट दिए, वह सत्ता में नहीं आ पाई. सत्ता पाते-पाते रह गई. तो वह पार्टी जाहिरा तौर पर बौखलाई हुई है. तो रोज ही नए हैरतअंगेज रहस्य खुलकर सामने आ रहे हैं. रोज ही जनता सकते में आ रही है. ऐसा लगता ही नहीं कि राष्ट्र, राज्य, शहर और क्षेत्र विशेष के विकास के लिए चुनाव किए जाते हैं.
(Political Drama in Mahrashtra)
प्रधानमंत्री ने कभी स्वयं को प्रधान सेवक कहकर इस ओर ध्यान खींचा था कि सेवा ही नेताओं का धर्म होना चाहिए. मगर महाराष्ट्र में पार्टियों के बीच ऐसी तनातनी चल रही है कि सारे नेता अपना धर्म भूल गए दिखते हैं. महाराष्ट्र सरकार को देख ऐसा लगता है कि एक से बढ़कर एक साजिशों के पर्दाफाश वाला कोई धारावाहिक जारी है.
इसकी शुरुआत सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या की तस्वीर के वायरल होने से शुरू हुई थी. आत्महत्या के सवाल के साथ एक दूसरा सवाल यह था कि तस्वीर वायरल कैसे हुई? हुई या की गई. उसके बाद कई तरह की अफवाहों से सोशल मीडिया भरा रहा. ऐसा लग रहा था कि विपक्षी पार्टी को सत्तारूढ़ पार्टी के खिलाफ कोई बहुत बड़ा सबूत हाथ लग गया था. जिस तरह सुप्रीम कोर्ट ने मामले की जांच को नाटकीय तरीके से सीबीआई को सौंपा, बिहार चुनाव की रोशनी में भी चीजों को देखा जा रहा था. अरनब का चैनल चीख-चीखकर रिया चक्रवर्ती और सत्तारूढ़ पार्टी के बेहद ताकतवर युवा नेता को कटघरे में कैद करने की कोशिश कर रहा था, लेकिन बिहार चुनाव के खत्म होते-होते सीबीआई की जांच भी मंथर पड़ती गई और कई दिनों तक जेल में रहने के बाद रिया को आखिर रिहाई मिल गई.
(Political Drama in Maharashtra)
मर्डर मिस्ट्री की तरह पेश की जा रही सुशांत की मौत का मामला नारकोटिक्स के अवैध इस्तेमाल में बदल दिया गया. पर इसमें भी बॉलिवुड सितारों के नाम जोड़कर मीडिया को भरपूर मसाला दिया गया. अरनब को मुंबईकरों ने अपने पुलिस कमिश्नर का चीख-चीखकर नाम लेते सुना. जल्दी ही अरनब ने खुद को कटघरे में खड़ा पाया. उसके खिलाफ पहले एक पुराना आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला आया और उसकी आग शांत होने से पहले मुंबई के कमिश्नर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके टीआरपी मामले का भंडाफोड़ कर दिया. जनता को बात समय में आ रही थी. अरनब ने कमिश्नर का अपमान किया था, तो उसे कीमत चुकानी ही थी. यह सब जब प्रत्यक्ष में चल रहा था, तो परोक्ष में बीजेपी और शिवसेना के शीर्ष नेताओं के बीच बयानबाजी किसी बैकग्राउंड संगीत की तरह चालू थी. नागरिकों का फुल एंटरटेनमेंट हो रहा था.
कोरोना का मुकाबला करने में यह रोमांचक धारावाहिक अहम भूमिका निभा रहा था. अरनब को कोर्ट से रियायत मिलने के बाद धारावाहिक जरा-सा उबाऊ हुआ नहीं कि उसमें सचिन वाझे और मनसुख की धमाकेदार एंट्री हुई. पहले दुनिया के लगभग सबसे रईस व्यक्ति के घर के बेहद करीब विस्फोटक जिलेटिन से भरी लावारिस गाड़ी मिली और उसके कुछ ही दिनों बाद मनसुख ही खाड़ी में तैरती लाश. मुंबई की एटीएस और केंद्र सरकार की एनआईए का मसला गर्माया और देखते ही देखते एनआईए सचिव वाझे को ले उड़ी. महाराष्ट्र सरकार की इससे बड़ी क्या फजीहत होती. खबर आई की सरकार ने इस फजीहत का जिम्मा उसके सिर फोड़ते हुए कमिश्नर ही बदल दिया.
(Political Drama in Maharashtra)
नए कमिश्नर ने आकर अभी कुर्सी संभाल खुद को लाइमलाइट में एडजस्ट तक नहीं किया था कि पुराने कमिश्नर ने लाइमलाइट वापस खुद पर खींचते हुए जिलेटिन से ज्यादा बड़ा धमाका कर दिया. उन्होंने सरकार के गृहमंत्री के बारे में खुलासा किया कि वह मुंबई से हर महीने उनसे 100 करोड़ रुपये उगाही करवाना चाहते थे. उन्होंने इंस्पेक्टर सचिन वाझे को भी इसी उगाही के काम में लगाया हुआ था. कमिश्नर के खुलासे से पूरा देश सकते में था.
जनता को अंदाजा तो था कि ऐसा होता है, पर उस पर एक मैट्रोपोलिटन का पुलिस कमिश्नर ऐसी मुहर लगा देगा और राज्य के गृहमंत्री के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट तक चला जाएगा, यह तो बॉलिवुड की किसी मसालेदार फिल्म से ज्यादा मसालेदार था. इन पंक्तियों के लिखे जाने तक राज्य सरकार अपने तरीके से जवाब देने की तैयारी कर रही थी. उसने विपक्ष के जासूस के रूप में बैठे कुछ नौकरशाहों की शिनाख्त कर ली थी.
(Political Drama in Maharashtra)
महाविकास आघाडी में शिवसेना का मुख्यमंत्री है और एनसीपी का गृहमंत्री. कांग्रेस परेशान है. उसे सूझ नहीं रहा कि उसे क्या करना चाहिए. मॉल में चल रहे एक अस्पताल में आग लगने से मुख्यमंत्री को वहां का दौरा करने जाना पड़ा. इसीलिए घटनाक्रम के आगे बढ़ने में थोड़ा अंतराल. बहरहाल, सुशांत के शव की तस्वीरों से शुरू मनसुख की क्लोरोफार्म सुंघाकर हत्या किए जाने के खुलासे तक महाराष्ट्र सरकार के आंगन में महाविकास आघाडी के सत्तारूढ़ रहते हुए जो महा-धारावाहिक चल रहा है, उसमें ‘विकास’का कहीं जिक्र ही नहीं मिलता. इस धारावाहिक के बाहर जनता के सामने सिर्फ कोरोना है, जिसकी दूसरी लहर में मुंबई अब बस डूबने-डूबने को है.
देश की राजनीति पर पड़ा ये कैसा साया है
क्या ख्वाब देखे थे, क्या मंजर नुमाया है.
-सुंदर चंद ठाकुर
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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