आजादी के बिगुल: सोर घाटी पिथौरागढ़
-प्रोफेसर मृगेश पाण्डे
ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ मारो और मरो की हसरतें पाले अवध लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह ने 1857 में कूर्मांचल के जुझारू कालू सिंह महरा के नाम एक खुफिया चिट्ठी भेजी जिसका आह्वान था कि अस्त्र-शस्त्र की इस जुझारू जंग में फतह मिलेगी और हिमाला से घिरे संयुक्त प्रांत के पहाड़ी इलाके आजाद सूबे की जिंदगी जियेंगे. नवाब के इस कौल पे पहाड़ के सूरमा कालू सिंह महर की रगें फड़क उठी. आजाद हिन्दुस्तान के मंसूबे को पुख्ता करने के लिये उसने फौज तैयार की. धड़ों में बंटे महर-फर्त्यालों को एक किया. पर अभी तैयारियां मुकम्मल भी न हो पायी थीं कि सारी खबर किसी भेदिये ने अंग्रेज हुकमरानों तक पहुंचा दी. कुमाऊँ कमिश्नर रामजे ने चारों ओर से अपनी पलटन भिजवा दी और कालू सिंह महर को घेर दिया. हथियार जब्त कर लिये गये. समुचा कुमूं हाय-हाय कर उठा. न जाने कितने सूरमा और आम जन गोली का शिकार बने. अनेकों को पेड़ों पर रस्सी से लटका फांसी चढ़ा दी गयी. नैनीताल में फांसी गधेरे में बगावत करने वाले सूरमाओं के गले में फंदा लटका दिया गया. कालू सिंह महर कैद कर लिये गये और कारावास में भयावह यातनाओं से गुजरे.
आजादी की लहर कुमाऊँ में निरन्तर बलवती होती रही. अंग्रेज सरकार ने इसे थामने को कई हथकंडे अपनाये. 1815 में ही कुमाऊँ पर अपने पांव पसारने के बाद अंग्रेजों ने हर गांव के पधान को आदेश दिया कि सरकारी अधिकारियों के दौरे के समय से अपने गांव से कुली और खाने-पीने की दुरुस्त व्यवस्था करें. सरकार ने गांव के पधानों को कुली बेगार का रजिस्टर भी थमा दिया जिससे प्रत्येक गांव में कुली बेगार देने का ब्यौरा रखा जा सके. हालांकि अल्मोड़ा जिले के पिथौरागढ़ तहसील की पट्टी तल्ला-वल्दिया के बिशाड़ गांव ने अंग्रेज हुकूमत के कुली बेगार फरमान को मानने से इंकार कर दिया. अंग्रेजों ने कुमाऊँ पर जबरन वन कानून थोपा. इसके विरोध में सन् 1916 में कुमाऊँ परिषद की स्थापना हुई. इस परिषद के सदस्य हर्षदेव ओली और उनके मित्रों ने अंग्रेजों के जबरन वन कानून की खिलाफत की. लोगों तक अपनी बात पहुंचाई और वह अपनी कोशिश में कामयाब भी हुए.
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी जगत सिंह चौहान बताते थे कि पिथौरागढ़ तहसील में आजादी का बिगुल फूंकने के प्रमुख सूत्रधार ग्राम हलपाटी के प्रयागदत्त पंत थे जो 1921 में महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन से ऊर्जामय हो गये. प्रयागदत्त पंत इलाहाबाद विश्वविद्यालय के स्नातक थे. कुमाऊँ केसरी बदरीदत्त पांडे के दिशा निर्देश पर कुली बेगार आंदोलन में सोर के सपूतों ने जमकर हिस्सेदारी की. हालांकि 6 दिसंबर 1847 के एक सरकारी आदेश से बिशाढ़ गांव के लोगों ने कई बार इसके विरोध में मुकदमा लड़ा जिसमें रावल और वाल्दिया पट्टियों के थोकदार और जमींदारों ने पूरा सहयोग किया. 6-7-1915 को त्रिलोचन भट्ट मालगुजार, हरीराम भट्ट, रामदत्त भट्ट, अम्बादत्त भट्ट, हरीदत्त भट्ट, और बदरीदत्त भट्ट के हस्ताक्षर से डिप्टी कमिश्नर अल्मोड़ा को पिटीशन दायर की गयी. कुली-बेगार का अंत 1921 में बागेश्वर में मकर संक्रान्ति के मेले में हुआ जिसमें बेगारी से संबंधित सभी मालगुजारों के रोजनामचे भारत माता की जय उद्घोष के साथ सरयू नदी में प्रवाहित कर दिये गये.
सोर घाटी पिथौरागढ़ तहसील में लगान और कर के विरोध, विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार के स्वर को प्रयागदत्त पंत ने लगातार मुखर किया. वह अंग्रेजी हुकुमत की आंखों की किरकिरी बने. उन्होंने कई बार जुर्माना भरा और जेल की यातना सही. 1930-31 तक असहयोग आंदोलन और नमक सत्याग्रह तक सोरवासियों की भागीदारी मुखर होती गयी. उपराड़ा के ईश्वरीदत्त पंत, पिथौरागढ़ के कृष्णानंद उप्रेती, सिमलकोट के जमनसिंह वाल्दिया, चैंसर के लक्ष्मण सिंह महर, बाराकोट के चन्द्र सिंह व कल्याण सिंह अधिकारी, कोटगाड़ी के बची राम जोशी, बजेटी के स्वामी सुरेशानंद उर्फ डाॅ. बाजी, लिंठ्यूड़ा के चिंतामणि जोशी ने सरकारी हुकूमत और उनके फरमानों का प्रबल विरोध किया और जन-जन को चेताया. इन पर सरकारी कोप लगातार बना रहा, दंड सहा, कारावास भुगता.
पिथौरागढ़ तहसील के अस्कोट, मुन्स्यारी व अन्य तालुकों के जमींदार भूमिस्वामी, तालुकेदार आम खेतीहर किसानों, बटाईदारों का नानाविध शोषण करते थे. 1937 से 1946 तक इस इलाके के किसानों ने अपने पर हो रहे अत्याचारों का विरोध करने के लिये गांव-गांव में किसान सभा का गठन किया. जमींदारों द्वारा लिये जाने वाले बेट, बेगार, कर, हारा, नाली-नजराना और बेदखली के खिलाफ भिदहुए किसान तक आंखें तरेरने लगे. सन् 1938 की बात रही होगी जब पंडित गोविन्द बल्लभ पंत की मुखियागिरी में कांग्रेसी एकजुट बने तो आजादी के मतवाले धुन के पक्के पहाड़ियों का एक जत्था कितने मीलों पैदल चल लखनऊ पहुंचा और खेतिहर बटाईदारों पर हो रहे जुल्म की बात पंतज्यू को सुनाई. समय तो लगा पर आखिरकार 1946 में किसानों को जमींदारों, माफीदार, तालुकेदारों की जी हजूरी से निजात मिली और किसी हद तक वो जमीन के मालिकाना हक पाने के हिस्सेदार बने.
साम्राज्यवादी शक्तियों के बीच आपस में एक दूसरे को अपनी ताकत दिखाने के दौर में ब्रिटिश हुकूमत ने हिंस्दुस्तान के जवानों को काफी अधिक संख्या में फौज में भर्ती किया. विश्वयुद्ध का साया मंडराने लगा था. किसानों मजदूरों तक से भी वाॅर-फंड के लिये चंदा उगाहा जाने लगा. सोर के सेनानियों ने इसके विरोध में जनसभायें की. राष्टीय नेताओं ने ब्रिटेन की नीति और हर हथियार बंद लड़ाई का शांतिपूर्ण व अहिंसात्मक तरीेके से विरोध जारी रखा. व्यक्तिगत सत्याग्रह पर अधिक जोर दिया. महात्मा गांधी ने सत्याग्रहियों के लिये उद्घोष पत्र जारी किया. यह लहर पिथौरागढ़ भी फैली. प्रत्येक स्वाधीनता संग्राम सेनानी के लिये सत्याग्रह करने का दिन, समय और स्थान निर्धारित किया गया. अपने निश्चित समय व स्थान में आजादी के ये मतवाले जनसभा में हुंकार भरते कि औपनिवेशक फैलाव की नीयत के इस युद्ध में हमारी तरफ से कोई भी मदद देना पाप समान है. हथियार बंद लड़ाई की खिलाफत जारी रहेगी. ऐसी हर सभा में उद्घोष करने वाले सत्याग्रही बंदी बना लिये जाते थे. पिथौरागढ़ तहसील में सोर के साथ जोहार, सोरा, अस्कोट, धारचूला, गंगोली, बेरीनाग, चंपावत, लोहाघाट, बाराकोट, पाटी जैसे काली कुमूं के अन्य इलाके में ये सिलसिला जारी रहा. सरकारी हुकूमत ने इस शांतिपूर्ण सत्याग्रह को कुचलने के लिये हर दावपेंच खेला. जनता को उत्तेजित किया, लोगों को भड़काया, हिंसा व तोड़फोड़ करने के लिये उकसाया. डर दिखाया और भयभीत किया. प्रलोभन दिये, चारा डाला पर ब्रिटिश मंसूबे धरे के धरे रह गये.
पहले विश्वयुद्ध के बाद दूसरे विश्वयुद्ध की मंडराती छाया में 1930 के बाद तक पिथौरागढ़ के रणबाकुरे गांव-गांव तक आजादी का परचम फैलाने की पुरजोर कोशिश करते रहे. इनके अस्त्र-शस्त्र थे तिरंगा झंडा, गांधी टोपी, तकली-चरखा, खादी और वंदेमातरम का जय घोष. गांव-गांव में होने वाली सभाओं, आपसी बातचीत, सभा सम्मेलनों का बस एक ही मकसद था ब्रिटिश हुकुमत की सोच को नेस्तनाबूत करना. स्वदेश प्रेम के विचार को घनीभूत करना. आजादी हासिल करना जिसके लिये महानिषेध, छुआछूत, खान-पान, ऊँच-नीच के भेदभाव को मिटाना जरूरी पाया गया. हर सामाजिक बुराई और संकीर्णता का समूल नाश, अशिक्षा के अंधकार को दूर करने के लिये लिखने पढ़ने और जागरूक बनना और साथ ही विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार और स्वदेशी का प्रचार जैसी समिधा से अलख लगातार जगाई गयी. पूर्णाहुति अभी बांकी थी.
पिथौरागढ़ में झलतोला, चंपावत व टनकपुर में कुर्मांचल स्तर के आयोजन हुए. मार्च 1942 में झलतोला के सम्मेलन में डाॅ. राम मनोहर लोहिया भी मौजूद थे. फरवरी 1942 तक जनपद के सभी कार्यकर्ता अपनी सजा काट वापस आ चुके थे. तब आजादी के परचम को फहराऐ रखने के लिये जगह-जगह सत्याग्रह आश्रम खोले गये जहां चरखा खादी पर खूब जोर दिया गया. हरिजन और पिछड़े लोगों की माली हालत सुधारने एवं खेतिहर किसानों के लिये कृषक संगठन की स्थापना के मुद्दे सभाओं व गोष्ठियों में फले फूले. जनजागृति को आम आदमी की जबान जनगीतों कोे बोल देने लगी.. अपनी मिट्टी अपनी अपना हक जिसके लिये जान भी जाये तो परवाह किसे. हवायें गुनगुनाने लगीं.
हम छों कुमय्यां हमरो कुमाऊं
हमरा छन ई डाना पहाड़ा.
इजर भाबर हमरा छन
हमरी छन ई घट गाड़ा..
महात्मा के पीछे सब चलने को तैयार थे.
कतुवा कातुला गांधी, तेरी जय-जय बोला.
पैरुला खादी गांधी, तेरी जय-जय बोला..
कतुआ कांतुला गांधी, बटुवा भरुंला.
स्कुल पढूला गांधी, साक्षर बणूंला..
कतुआ कांतुला गांधी, स्वराज दिलाला.
जब होला स्वराज गांधी, घी चीनी खूंला..
कांग्रेसी नेताओं ने अंग्रेजों से पूर्ण स्वराज की मांग रखी जिसे ब्रिटिश हुकमरानों ने अस्वीकार कर दिया था. 7 व 8 अगस्त 1942 को बंबई में तब वह महाधिवेशन हुआ जिसमें ‘अंग्रेजो भारत छोड़ो’ का बिगुल बजा. गांधी बाबा के वचन जन-जन के हृदय को छू गये. हड़ताल और अहिंसा के हर औजार से हर आदमी सत्याग्रह के चरम तक जाने को तत्पर है. सत्साग्रही मरने के लिये बाहर निकलेंगे. करेंगे या मरेंगे.
9 अगस्त 1942 को गांधीजी बंदी बना लिये गये साथ में सभी मुख्य नेता कैद में डाले गये. इस गिरफ्तारी की खबर से पूरा देश उद्वेलित हुआ. सीमान्त पिथौरागढ़ तक आजादी का ज्वार उफन गया. तब संचार व्यवस्था सीमित थी. समाचार पत्र बहुत देरी से पहुंचते थे. सीमांत की दुरूह दशाओं में भी सोर-पिथौरागढ़ की उपत्यका तक अंग्रेजों भारत छोड़ों के गगन भेदी नारे गूंजने लगे. दुरुह और विपरीत परिस्थितियों में ताकत से भरे नौजवान, आस-विश्वास से भरे पर्वतपुत्र, अबाल, वृद्ध सब अनूठे जोश से हिमालय की उपत्यका में आजादी का गीत गाने लगे. जंगलों की तारबाड़ काट कर उसमें आग लगा दी गई. पतरौल, पटवारियों के बस्ते जला दिये गये. सरकारी दमन फिर चला और धरपकड़ हुई. बन्दी बना जंलों में ठूंसना फिर शुरू हुआ. घर परिवार की संपत्ति जब्त करने के फरमान जारी हुए. कुर्की हुई नीलामी हुई. पुलिस-पटवारियों की बड़ी फौज समूची घाटी में दहशत फैलाने के लिये रवाना कर दी गयी. जोहार के राजनीतिक कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार करने डोगरा पलटन भेजी गयी. कार्यकर्ता बंदी बने. उन्होंने यातनायें भोगी. अपना मन विचार प्राण सब दिया.
गुलामी से आजादी पाने तक के दौर में सोर घाटी पिथौरागढ़ तहसील में सत्याग्रही, सर्वोदयी, आजाद हिंद फौज के सूरमा और देश के लिये मर मिट जाने की दास्तान के सूत्रधार रहे. अनगिनत थे वह. अधिकांश ऐसे भी जिन्होंने हर तरह से इस लहर को मन प्राण से स्वीकार किया. जिये लड़े मरे और वह पाया जिसकी आस इस पूरे देश ने की थी. बरसो से चले आये संघर्ष में अपनी जमीन अपनी जड़ों को तलाशने की कशमकश में विजय की उम्मीद.
पिथौरागढ़ के कुछ सेनानी जो मनसावाचाकर्मणा अपने लक्ष्य के प्रति एक निष्ठ रहे निम्नवत हैं:
त्रिलोकी सिंह पांगती, ग्राम पट्टी मुनस्यारी
ईश्वरी दत्त पंत, उपराड़ा, भरंग पट्टी
उदय राम भट्ट, ग्राम कमतोली, पट्टी बाराबीसी
उमेद सिंह वनकोटी, ग्राम वनकोट, पट्टी आठ गांव
कमल सिंह, ग्राम भुनेड़ा पट्टी, वल्ली आठीगांव
कल्याण सिंह अधिकारी, ग्राम वाराकोट
कृष्ण चन्द्र जोशी, वकील, लोहाघाट
कैलाशानन्द उर्फ कुन्दन सिंह, ग्राम दरकोट, मुन्स्यारी
कृष्णानन्द उप्रेती, ग्राम छुड़ेती
गंगादत्त शर्मा, पिथौरागढ़ बाजार
गणेश सिंह, ग्राम वाराकोट
गुमान सिंह मेहरा, ग्राम सेतमाली, पट्टी तल्ला जोहार
गुसाई सिंह, ग्राम चैकी वल्ली अठीगांव
गुलाब सिंह कार्की, ग्राम भुनेड़ा
गोपाल दत्त पाठक, ग्राम हाट पट्टी, भैरंग
गोपाल सिंह मर्तोलिया, ग्राम सुरिंग, मल्ला जोहार
गोपाल सिंह, ग्राम सुरिंग, मल्ला जोहार
गोवर्धन जोशी, ग्राम बांस बगड़ पट्टी
घनश्याम शास्त्री उर्फ घनानन्द जोशी, ग्राम किमाड़ पट्टी
चन्द्र सिंह, ग्राम टांगा
चन्द्र शेखर जोशी, ग्राम उर्ग, पट्टी खड़ायत
चरण दत्त जोशी, ग्राम वगाजिवला पट्टी
चन्द्र सिंह, ग्राम बाराकोट पट्टी
चिंतामणी, ग्राम धूरा पट्टी
चिन्तामणी शर्मा, ग्राम लिंठयूड़ा
चूणामणी, ग्राम खकरानी
छत्रसिंह आजाद, गांव बोरगांव पट्टी
जगत सिंह पांगती, ग्राम दरकोट
जगत सिंह चैहान, ग्राम सिलपट्टी
जई दत्त, ग्राम चैड़ाकोट पट्टी
जमन सिंह वाल्दिया, ग्राम सिमलकोट
जई दत्त पंत, ग्राम बसैं
जोगा सिंह, ग्राम रावलगांव, गंगोलीहाट
जोहार सिंह, ग्राम विन्दी पट्टी
त्रिलोचन, ग्राम वसई पट्टी, भैरंग
तेज सिंह दरम्वाल, ग्राम बुई, मल्ला जोहार
दयाकृष्ण कोठारी, ग्राम कोठारी पट्टी
दलीप सिंह, गौरीहाट
दीवान सिंह पंवार, ग्राम वजेता पट्टी
दिवान सिंह कार्की, ग्राम भुनेड़ा
दलीप सिंह, ग्राम जोशी पट्टी
दामोदर जोशी, ग्राम कोलीदेक लोहाघाट
दुर्गादत्त जोशी,ग्राम लेजम, पट्टी माली
दुर्गा सिंह रावत, ग्राम जलथ, मल्ला जोहार
दुर्गा सिंह रावत, झलातोला स्टेट
देव सिंह, ग्राम भुनेड़ा पट्टी
धरम सिंह चैहान, ग्राम सिल बाराबासी
नन्दराम कापड़ी, ग्राम सतगढ़ पट्टी
नरीराम, ग्राम ढुंगा, विनली, मुन्स्यारी
नाथू सिंह मर्तोलिया, ग्राम सुरिंग
नित्यानंद तिवारी, ग्राम तोती पट्टी
नेत्र सिंह धामी, ग्राम दारमा, गोरीफाट
नैन सिंह अधिकारी, ग्राम वाराकोट
नारायण दत्त जोशी, ग्राम हुनरा, पट्टी डीडीहाट
नैन सिंह धौनी, ग्राम सिलंग पट्टी
प्रभाकर पाण्डे, ग्राम पाभें
प्रयाग दत्त पंत, ग्राम बजते पट्टी
प्रयाग दत्त पंत, ग्राम हलपाटी
प्राण दत्त जोशी, ग्राम बासबगड़
प्रताप सिंह मर्तोलिया, ग्राम मरतोली, मल्ला जोहार
पीताम्बर दत्त, ग्राम खरिक, पट्टी भैरंग
प्रेम बल्लभ पंत, ग्राम कपतोला, बेरीनाग
फकीर सिंह कफलिया, ग्राम चैमू पट्टी
बच्ची लाल साह, तल्ली बाजार, पिथौरागढ़
बच्ची राम जोशी, सेला, गोरीफाट
बद्री दत्त पाठक, ग्राम हसौली
विजय सिंह, ग्राम वनकोट पट्टी
बेनीराम ध्वाल, ग्राम बढ़ोली पट्टी
विसराम खर्कवाल, ग्राम सुई
बेनीराम, ग्राम चैड़ाकोट
विश्व सिंह, ग्राम कैजा चोरपाल, गंगोली
भगवतानन्द उर्फ भवान सिंह, ग्राम दरकोट, मुन्स्यारी
भवानीदत्त ग्राम भुमलई पट्टी
भीम सिंह, ग्राम जाशा पट्टी
भोलादत्त तिवारी, ग्राम गुरना पट्टी
महेन्द्र सिंह, ग्राम चैकी, अठीगांव
महेन्द्र सिंह, ग्राम वनकोट पट्टी
मायाराम पंत, ग्राम कुनल्टा, अठीगांव
माधो सिंह जंगपांगी, ग्राम दिगतड़ू, डीडीहाट
रघुवर दत्त, ग्रामी खीनड़ा पट्टी
रामचन्द्र, ग्राम चैड़ाकोट
लछमन सिंह महर, ग्राम चैसर पट्टी
लक्ष्मीदत्त, ग्राम बजेत, बेरीनाग
लीलाधर पाठक, ग्राम हाट, भैरंग
बंशीधर ओझा, ग्राम कफतौली
शक्ति सिंह, ग्राम वासीखेत
शेर सिंह अधिकारी, ग्राम बाराकोट पट्टी
शेर सिंह, ग्राम हाट भैरंग
ईश्वरी दत्त पंत, ग्राम चिटगल, पट्टी भैरंग
सुरेश्वरानन्द उर्फ डाॅ. बी तिवारी, बजेटी
हरीश चन्द्र सिंह, ग्राम सुरिंग
स्व. हरी सिंह जंगपांगी, ग्राम दुमर, मुन्स्यारी
हरी दत्त पंत, शास्त्री ग्राम लोजम पट्टी
हर्स देव ओली, ग्राम गोसनी, खेतीखान
केशवदत्त जोशी, ग्राम पोखरी, भैरंग पट्टी
चन्द्र सिंह, ग्राम रायां, तल्ला जोहार
नैन सिंह, जोहार
बिसुन सिंह, ग्राम बजेता
नेत्रसिंह, दारमा, गौरीफाट
नेत्रसिंह, सेरमाली, जोहार
सुदूर सीमांत से आजादी की तड़प से हिमालय में कम्प करने वाने पर्वतपुत्र थे ये मतवाले. कुर्सी आसन तोरण द्वार फूलमालाओं के स्वागत से कहीं दूर छिटके साथ ही ऐसे भी कई सहस्त्रनाम जिनका नाम किसी दस्तावेज में दर्ज नहीं हो पाया. वह जिंदा है. बुजुर्गों द्वारा अचानक सुना दी गयी आजादी की कथा में.
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उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
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लोकरंग से महकता काफल -हरा -लाल -काला. स्तुत्य प्रयास, कड़ी मेहनत. बने रहो.