प्रकृति सावन के इस मौसम में अपने अप्रतिम रूप में है. चारों तरफ सिर्फ हरियाली ही हरियाली नजर आ रही है. पहाड़ों में कुदरत की इस छटा को महसूस करना एक अलग ही अनुभव देता है. श्रीनगर शहर गढ़वाल मण्डल में एक घाटी में बसा है. आम दिनों में यह शहर बद्रीनाथ, केदारनाथ व हेमकुंड साहिब जाने वाले यात्रियों के लिए विश्राम का प्रमुख केंद्र रहता है लेकिन इस वर्ष कोरोना महामारी के चलते शहर लगभग सुनसान है. लॉकडाउन के नियमों के चलते उत्तराखंड के साथ ही अन्य राज्यों से भी यात्रियों व पर्यटकों का आना लगभग न के बराबर है.
(Photos of Pauri and Khirsu)
पहाड़ों का नाम सुनते ही हर सैलानी के मन में ठंडी जलवायु व सुहाना मौसम ही आता है लेकिन श्रीनगर की जलवायु घाटी में बसे होने के कारण लगभग तराई क्षेत्र जैसी ही है. जहॉं गर्मियों में बहुत ज्यादा गर्म व सर्दियों में बहुत ज़्यादा ठंड पड़ती है. मई जून के महीने में जंगलों में आग लगने की घटनाओं को अमूमन यहॉं देखा जा सकता है जिस वजह से गर्मी का स्तर कुछ डिग्री सेल्सियस और बढ़ जाता है. इस साल लगातार अंतराल में बारिश होने के कारण जंगलों में लगने वाली आग से निजात मिली है जिसके परिणामस्वरूप प्रकृति मनमोहक रूप लिए हुए है.
यूँ तो गर्मियों में श्रीनगर में रहना कोफ्त से भर देता है. चिलचिलाती गर्मी में हमेशा यही अहसास होता है कि चारों तरफ पहाड़ों से घिरा यह शहर आखिर इतना गर्म क्यों हैं? लेकिन बारिश के दिनों में मद्धम पंखे व चादर ओढ़ने की नौबत आने पर यह कोफ्त कुछ हद तक कम हो जाती है. श्रीनगर शहर से दो विपरीत दिशाओं में लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पौड़ी व खिर्सू गर्मियों में अपने सुहाने मौसम के लिए मशहूर हैं. अक्सर सैलानी व श्रीनगरवासी गर्मी से निजात पाने के लिए इन दो गंतव्यों का रुख करते हैं. सावन के महीने में बादलों की ऑंख मिचौली के बीच इन दोनों गंतव्य तक पहुँचने के दौरान रास्ते में आपको इतने पसंदीदा स्पॉट नजर आ जाएँगे कि आप एक पल को गाड़ी साइड में लगाकर फोटो खींचने से खुद को रोक नहीं पाएँगे.
पौड़ी और उसके मौसम के बारे में हमने बहुत कुछ सुना और पढ़ा है लेकिन एक गंतव्य के तौर पर खिर्सू पिछले कुछ ही समय में उभरकर सामने आया है. उत्तराखंड सरकार भी खिर्सू को पर्यटन स्थल के रूप में बढ़ावा दे रही है. पर्यटन मंत्रालय की होम स्टे स्कीम को खिर्सू में आकार लेते देखा जा सकता है. श्रीनगर शहर से लगभग 30 किलोमीटर दूर हेमवती नंदन बहुगुणा के पैतृक गॉंव बुघाणी होते हुए खिर्सू पहुँचा जा सकता है. रास्ते में बुघाणी गॉंव रुककर बहुगुणा जी के पैतृक घर में बने संग्रहालय को देखना भी एक नया अनुभव देता है. इस रास्ते पर चलते हुए श्रीनगर से लगभग 8-10 किलोमीटर दूर खोला गॉंव के आस पास से श्रीनगर शहर का सुंदर नजारा दिखाई पड़ता है.
(Photos of Pauri and Khirsu)
पौड़ी और टिहरी जिले को अलग करती अलकनंदा नदी दोनों जिलों के ठीक बीच से बहती हुई नजर आती है. साथ ही दोनों जिलों को जोड़ने वाला चौरास पुल भी पहाड़ की ऊँचाई से देखने पर ऐसा लगता है मानो नदी ने अपने सीने में इतना बड़ा बोझ सिर्फ इसलिए ढो रखा है ताकि लोगों को आने-जाने में असुविधा ना हो. ऊपर से देखने पर श्रीनगर शहर का एक कोना भारत के नक्शे के दक्षिणी हिस्से जैसे दिखाई पड़ता है जिसके ठीक नीचे समुद्र/नदी है. साथ ही इतनी ऊँचाई से गढ़वाल विश्वविद्यालय का चौरास कैंपस भी बेहद खूबसूरत नजर आता है.
सावन के मौसम में पहाड़ों में इस तरह की छोटी-छोटी यात्राएँ बहुत ही सुखद व आनंदमयी होती हैं जहॉं पर आपको प्रकृति के सैकड़ों रंग देखने को मिलते हैं जिनका आनंद लेने के साथ-साथ आप उन्हें अपनी स्मृति के लिए कैमरे में कैद भी कर सकते हैं. पौड़ी व खिर्सू के रास्ते खींची गई कुछ ऐसी ही तस्वीरें.
(Photos of Pauri and Khirsu)
नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं.
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वाह !
अद्भत फोटोग्राफी और कमाल लेखनी