नंदा देवी अल्मोड़ा का मेला इन दिनों बड़ी संख्या में लोगों को आकर्षित कर रहा है. अल्मोड़ा की लाला बाज़ार में घुसते ही आप को मेले का अहसास होने लग जाता है, यहां से नंदा देवी मंदिर तक आप मेले का आनंद ले सकते हैं और फिर मंदिर प्रांगण में छोलिया नृत्य और मंदिर दर्शन किए जा सकते हैं. इस साल अल्मोड़ा में चल रहे नंदा देवी के मेले के झलकियां जयमित्र बिष्ट के कैमरे से. (Photos of Nandadevi Festival Almora 2021)
प्रतिवर्ष अल्मोड़ा जनपद के मुख्यालय तथा गरूड़ (बैजनाथ) में स्थित कोट नामक स्थान में भाद्र शुक्ल पक्ष अष्टमी को मनाये जाने वाला नन्दाष्टमी का मेला एक ऐतिहासिक एवं धार्मिक मेला है. इस मेले का आरम्भ तत्कालीन कुमाऊं नरेश राजा बाजबहादुर चन्द उर्फ बाजा गुसाई (सन् 1638-1678) द्वारा गढवाल के जूनागढ़ के किले से नन्दादेवी की शक्त्ति पीठ को गढ़वाल विजय के अनन्तर विजय प्रतीक के रूप में प्राप्त कर अल्मोड़ा कचहरी जो तत्समय कुमाऊँ नरेश के मल्ला महल के नाम से विख्यात राज प्रसाद था, में निर्मित देवालय में प्रतिष्ठित कर दिये जाने से हुआ.
सन् 1790 से सन् 1815 तक के अराजकतापूर्ण गोरखा शासन काल में, जिसे गोरख्योला के नाम से जाना जाता है, कुमाऊं की सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक विरासत से सम्बद्ध अधिकांश अभिलेख नष्ट कर दिया गया था. अत: परम्परागत जनश्रुति है कि जूनागढ़ के किले से प्राप्त देवी विग्रह विजयोपरान्त वापसी यात्रा में कोट नामक स्थल में स्वत: दो भागों में विभक्त हो जाने पर राज ज्योतिषियों के परामर्श पर एक भाग को कोट में और दूसरे भाग को मल्ला महल में स्थापित कर दिया गया था…विस्तार से पढ़ें>>>
जयमित्र सिंह बिष्ट
अल्मोड़ा के जयमित्र बेहतरीन फोटोग्राफर होने के साथ साथ तमाम तरह की एडवेंचर गतिविधियों में मुब्तिला रहते हैं. उनका प्रतिष्ठान अल्मोड़ा किताबघर शहर के बुद्धिजीवियों का प्रिय अड्डा है. काफल ट्री के अन्तरंग सहयोगी.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…
उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…
(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…