Featured

सुमेर अधिकारी ने बनवाया था अल्मोड़ा का पाताल देवी मन्दिर

माँ दुर्गा के नौ रूपों को समर्पित नौ मंदिर हैं. पाताल देवी का मंदिर उन्हीं में से एक है. अल्मोड़ा से पांच-छः किलोमीटर दूर यह मंदिर ग्राम शैल में है. कोई 250 वर्ष पुराने इस मंदिर के आसपास एक ज़माने में पानी के चार प्राकृतिक स्रोत हुआ करते थे. मंदिर के नीचे एक बड़ा कुंड भी है जिसे गौरी कुंड कहा जाता है. एक समय यह कुंड पानी से लबालब भरा रहता था. आज यह सूख चुका है.

मंदिर के प्रवेशद्वार पर क्षेत्रीय पुरातत्व इकाई, अल्मोड़ा और संस्कृति निदेशालय, उत्तराखंड द्वारा लगाए गए सांस्कृतिक पट्ट पर यह इबारत अंकित है:

“पाताल देवी मंदिर चन्द वंशीय राजा दीप चन्द के शासनकाल (1748-1777) में एक बहादुर सैनिक सुमेर अधिकारी द्वारा बनाया गया. कालान्तर में यह मंदिर टूट गया. तदुपरांत गोरखों के शासनकाल में (1790-1815) नए सिरे से बनाया गया.

यह मंदिर स्थानीय प्रसाधित प्रस्तरों से निर्मित किया गया. भूमि व विन्यास के अंतर्गत इसमें मिरथ रेखा-शिखर, गर्भगृह तथा चारों ओर स्तंभों पर आधारित प्रदक्षिणा पथ बनाया गया है. देवालय के गर्भगृह में शक्तिपीठ विद्यमान हैं. शिखर के मध्य में आगे निकली हुई एक-एक शिलापट्ट पर गज, सिंह तथा पूर्वाभिमुख मंदिर के समक्ष एक लधु चबूतरे पर बैठे हुए नन्दी की प्रतिमा बनाई गयी है.”

मंदिर के समीप ही माँ आनंदमयी आश्रम है जिसकी स्थानीय जनता के अलावा बंगाली जनमानस में आज भी बड़ी मान्यता है. एक ज़माने में यहान बंगाल के छात्र आकर विद्याध्ययन किया करते थे.

मंदिर के पीछे के हिस्से की छत ने एक स्थान पर बैठना शुरू कर दिया था जिसकी वजह से उसके बरामदे में बने स्तंभों के बीच बने झरोखों के ध्वस्त हो जाने का ख़तरा पैदा हो गया था. इस खतरे से निबटने के लिए पुरातत्व विभाग द्वारा लोहे के फ्रेम बनाकर सभी स्तंभों-झरोखों को बचाने का प्रयास किया गया है.

यह अलग बात है कि मंदिर के केयरटेकर और पुजारी पाण्डे जी पुरातत्व विभाग की अनदेखी से नाखुश दिखे. उनका कहना था कि ग्राम शैल के निवासियों द्वारा उन्हें हर महीने तीन हज़ार रुपये की सहायता दी जाती है जिसकी मदद से मंदिर का संचालन किया जाना होता है और उन्हें अपना पेट भी पालना होता है.

देखिये पाताल देवी मंदिर की कुछ आकर्षक छवियां.

सभी फोटो: अशोक पाण्डे

परिसर में नंदी
कुंड के बगल में बने कमरे
सूखा हुआ कुंड
गौरी कुंड से मंदिर की तरफ
मंदिर के पुजारी पाण्डे जी
अल्मोड़ा से मंदिर को जाने वाला रास्ता

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

उत्तराखंड में सेवा क्षेत्र का विकास व रणनीतियाँ

उत्तराखंड की भौगोलिक, सांस्कृतिक व पर्यावरणीय विशेषताएं इसे पारम्परिक व आधुनिक दोनों प्रकार की सेवाओं…

3 days ago

जब रुद्रचंद ने अकेले द्वन्द युद्ध जीतकर मुगलों को तराई से भगाया

अल्मोड़ा गजेटियर किताब के अनुसार, कुमाऊँ के एक नये राजा के शासनारंभ के समय सबसे…

7 days ago

कैसे बसी पाटलिपुत्र नगरी

हमारी वेबसाइट पर हम कथासरित्सागर की कहानियाँ साझा कर रहे हैं. इससे पहले आप "पुष्पदन्त…

7 days ago

पुष्पदंत बने वररुचि और सीखे वेद

आपने यह कहानी पढ़ी "पुष्पदन्त और माल्यवान को मिला श्राप". आज की कहानी में जानते…

7 days ago

चतुर कमला और उसके आलसी पति की कहानी

बहुत पुराने समय की बात है, एक पंजाबी गाँव में कमला नाम की एक स्त्री…

7 days ago

माँ! मैं बस लिख देना चाहती हूं- तुम्हारे नाम

आज दिसंबर की शुरुआत हो रही है और साल 2025 अपने आखिरी दिनों की तरफ…

7 days ago