किसी भी स्थान अथवा क्षेत्र विशेष के इतिहास, समाज, संस्कृति और वहां की सभ्यता से साक्षात्कार करने की दिशा में यायावरी की एक बड़ी भूमिका रहती है. यात्रा के दौरान एक संवेदनशील एवं जिम्मेदार घुमक्कड़ कुशल चित्रकार की तरह जब स्थानीय प्रकृति, समाज की विशेषताओं, विषमताओं और व्यापकता के साथ ही उसके सौन्दर्य से उपजे विविध रंगों को अपने शब्द चित्रों से परोस देता है तो पाठक को वास्तविकता का बोध खुद-ब-खुद हो जाता है. हिमालय अचंल के चिर-परिचित लेखक और मित्र डॉ. अरुण कुकसाल की पहचान भी एक ऐसे ही यायावर की श्रेणी में आती है. ‘हिमालय के गांवो में‘ तथा ‘चले साथ पहाड़‘ के बाद उनकी तीसरी नवीन यात्रा-पुस्तक ‘परियों के देश खैट पर्वत में‘ पाठकों को उत्तराखण्ड हिमालय, विशेषकर गढ़वाल अंचल के कुछ अद्भुत जगहों की शानदार सैर कराती है.
(Pariyo Ke Desh Khaint Parvat Main)
यात्रा के निर्जन पड़ावों में जहां लेखक पहाड़ के शिखर-घाटियों, पेड़-पौधों, गाड़-गधेरों और जंगली पशु-पक्षियों को अपना सहचर बना लेते हैं, वहीं आबाद पड़ावों के रहवासी पालतू मवेशी, घर-आंगन एवं खेत-खलिहान उन्हें अपने सुख-दुःख का सहभागी बनाने को स्वंय ही तत्पर हो उठते हैं. घुमक्कड़ी के दौरान डॉ. कुकसाल की पैनी नजरें एक समाज विज्ञानी की तरह स्थानीय प्रकृति व वहाँ के जनजीवन से जुड़े तमाम अनछुए बिन्दुओं की जहां-तहां पड़ताल करती रहती हैं.
हिमालय के प्रति स्थानीय निवासियों के अर्न्तमन में छुपी पीड़ा को वे आपसी बातचीत के जरिये अत्यंत सहजता से प्रकट करने में सक्षम रहे हैं. इस यात्रा पुस्तक में ड्राइवर हीरा सिंह भण्डारी, लक्ष्मण नेगी, हुकुम सिंह राणा, अतुल सती, हरीश डिमरी,भगवती प्रसाद कपरवाण, राजीव धस्माना, बड़ी दीदी, मढ़भागी सौड़ के बच्चे, विद्यादत्त पेटवाल, घास का गुठ्यार लाती महिलाएं, होटल का कर्मचारी दिनेश व अनुसूया, त्रिलोक सिंह, बालक कृष्णा और दीपक, विभोर, सीताराम, केदारखण्ड़ी, राजकिशोर, हिमाली, विजय, सौम्या, भूपेन्द्र, सीताराम, राकेश जैसे कई अन्य व्यक्ति एक सशक्त पात्र के रुप में उभर कर आये हैं. इन्हीं जीवंत पात्रों के माध्यम से लेखक ने स्थानीय लोक समाज, खेती, पर्यावरण, पर्यटन, संस्कृति से जुड़े अनेकानेक मुद्दों को बहुत प्रवीणता के साथ मुखरित करने का बेहतरीन प्रयास किया है.
(Pariyo Ke Desh Khaint Parvat Main)
इस यात्रा पुस्तक में लेखक ने गढ़वाल अंचल के छःह बेमिसाल जगहों का वर्णन किया है. ‘पैनखण्डा की ओर‘ के यात्रा वृतांत में उर्गम घाटी से जुड़ी मान्यताओं, वहां की नैसर्गिकता, सीमांत नीति घाटी के समाजिक जीवन, पाण्डुकेश्वर की ऐतिहासिकता और पारिस्थिकीय दृष्टि से संवेदनशील नगर जोशीमठ पर मंडराते खतरे को मुख्य विषय बिंदु बनाया है. वहीं लेखक ने सुप्रसिद्ध कवि बाबा नागार्जुंन की सबसे पसंदीदा जगह जहरीखाल और उसके समीपवर्ती जगह ताड़केश्वर महादेव की मान्यता और उस क्षेत्र में पर्यटन से बढ़ते पर्यावरणीय प्रदूषण को ‘बादल जहरीखाल के‘ शीर्षक के तहत दूसरे यात्रा वृतांत में रेखांकित किया है. गढ़वाल के प्रमुख स्थल नागतीर्थ सेम-मुखेम और गंगू रमोला, सिदुवा-बिदुवा व श्रीकृष्ण की गाथा से जुड़े क्षेत्र के इतिहास व उसके भरपूर प्राकृतिक सौन्दर्य का सजीव वर्णन डॉ. कुकसाल ने तीसरे वृतांत ‘नागराज कृष्ण सेम मुखेम‘ में किया है.
इस पुस्तक का शीर्षक है ‘परियों के देश खैट पर्वत में‘. इसी रहस्यमय खैट पर्वत के सौन्दर्य, वहां रहने वाली वन परियां व नवीं सदी के सुदर्शन व बलशाली युवक जीतू बगड्वाल के हरण की गाथा के साथ-साथ स्थानीय महिलाओं की घास-पात के लिए की जाने वाली हाड़-तोड़ मेहनत और पहाड़ के जन-जीवन में बाघ की दहशत को लेखक ने अपने चौथे यात्रा वृतांत में शानदार शब्द चित्रों के साथ पिरोया है. वैडिंग डेस्टिनेशन के रुप में तेजी से उभरकर आने वाली जगह त्रियुगीनारायण का सम्बन्ध शिव-पार्वती के विवाह स्थल से जुड़ा रहा है.
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कोलाहल से दूर इस सुरम्य स्थल का वातावरण अब पर्यटकों की बेतहाशा वृद्धि से प्रदूषित होने लग गया है. जहां-तहां बिखरे प्लास्टिक के कचरे से गन्दगी फैलने लगी है. ‘शिव पार्वती का विवाह स्थल त्रियुगीनारायण‘ वृतांत में लेखक ने होटल कर्मी दिनेश व अनुसूइया के माध्यम से कई महत्वपूर्ण सवालों को प्रभावी रूप से उठाने की कोशिश की है.
इस यात्रा-पुस्तक का अन्तिम वृतांत ‘दीपक का खैनोली गांव‘ है. लेखक डॉ. अरुण कुकसाल ने आठ साल के बाद गाँव लौट रहे दीपक की किशोर मनस्थिति तथा गाँव वालों से मिली पश्चाताप व सहानुभूति को शानदार बिम्बों के साथ इस यात्रा वृतांत में उकेरा है. इस वृतांत में दीपक किसी असाध्य बीमारी के चलते अपने परिवार में पिता, मां और बड़े भाई को खोने और किसी तरह बच सकने तथा दीपक के इलाज लालन-पालन, उसकी शिक्षा-दीक्षा में श्रीनगर के एक नेकदिल इन्सान व सामाजिक कार्यकर्ता विभोर बहुगुणा के मानवीय प्रयासों की मार्मिक कहानी पाठक के अर्न्तमन को हिलाकर रख देती है.
निःसंदेह, डॉ. अरुण कुकसाल की यह पुस्तक गढ़वाल के अनुपम नैसर्गिक स्थलों की यात्रा कराने के साथ ही यहां के जनजीवन के विविध पक्षों की ओर भी स्पष्ट तौर से ध्यान आकृष्ट कराती है. घुमक्कड़ों, अध्येताओं के साथ ही आम पाठक वर्ग के लिए यह पुस्तक बहुउपयोगी साबित होगी. इसके लिए यात्रा लेखक और मित्र डॉ. अरुण कुकसाल साधुवाद के पात्र हैं.
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नोट – पुस्तक प्राप्ति के लिए संपर्क कर सकते हैं.
प्रवीन भट्ट, समय साक्ष्य प्रकाशन
15, फालतू लाइन, दर्शनलाल चौक के समीप, देहरादून.
मो. – 7579243444
चन्द्रशेखर तिवारी
अल्मोड़ा के निकट कांडे (सत्राली) गाँव में जन्मे चन्द्रशेखर तिवारी पहाड़ के विकास व नियोजन, पर्यावरण तथा संस्कृति विषयों पर सतत लेखन करते हैं. आकाशवाणी व दूरदर्शन के नियमित वार्ताकार चन्द्रशेखर तिवारी की कुमायूं अंचल में रामलीला (संपादित), हिमालय के गावों में और उत्तराखंड : होली के लोक रंग पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं. वर्तमान में दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र में रिसर्च एसोसिएट के पद पर हैं. संपर्क: 9410919938
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