चारों युगों में बद्रीनाथ धाम चार अलग-अलग नामों से जाना गया है. सतयुग में बद्रीनाथ धाम का नाम मुक्तिप्रद क्षेत्र, त्रेता युग में योगसिद्धि प्रद क्षेत्र, द्वापर युग में विशाला नाम से जाना जाने वाला यह पवित्र क्षेत्र कलयुग में बद्रीकाश्रम कहलाया. बद्रीकाश्रम के आस-पास की भूमि कहलायी बद्री क्षेत्र जिसमें निवास करते हैं पंच बद्री. बद्रीविशाल, भविष्य बद्री,वृद्ध बद्री, योग ध्यान बद्री और आदि बद्री ही पंच बद्री हैं.
(Panch Badri Vishnu Temples Uttarakhand)
बद्रीनाथ भगवान ज्यू की कथा
पुराणों में ऐसा कोई पुराण नहीं जिसमें बद्रीनाथ की चर्चा न हो. ऋषियों की इस तपोभूमि में कृष्ण द्वैवायन व्यास ने यहाँ बैठकर महाभारत रचा, तपस्या कर ऋतम्भरा ज्ञान आदि ऋषि नारायण ने यहीं प्राप्त किया. बद्ररीनाथ जो विष्णु की मूर्ति कही जाती है, उनके साथ नर और नारायण की मूर्ति भी है तथा अन्य प्रतिमा नारद, गरूढ़ उद्धव, कुबेर और गणेशजी की है तथा लक्ष्मी जी की प्रतिमा मुख्य मन्दिर के बाहर है.
भविष्य बद्री का मन्दिर जोशी-मठ से कुछ आगे 18 किमी की दूरी पर है. माना जाता है कि जब नर, नारायण पर्वत ढह जाने से जब विशाल बद्री का मार्ग अवरूद्ध हो जाएगा तो भविष्य में यहीं बद्रीनाथ जी की स्थापना होगी और तीर्थ यात्री यहीं जाया करेंगे.
जोशीमठ से 7 किमी. की दूरी पर 4000 फुट की ऊँचाई पर वृद्ध बद्री मन्दिर है. वृद्ध बद्री तीसरा बद्री धाम है. वृद्ध बद्री में लक्ष्मीनारायण की मूर्ति शोभायमान है. माना जाता है कि बद्रीनाथ मन्दिर की स्थापना से पहले भगवान विष्णु की पूजा वृद्ध बद्री में ही होती थी. इसका नाम वृद्ध बद्री इसी कारण से है. वृद्ध बद्री को नारायण की तपस्थली भी कहा जाता है.
(Panch Badri Vishnu Temples Uttarakhand)
योगाध्यान बद्री पंच बद्री का चौथा बद्री धाम है.मान्यता है कि जब पाण्डवों ने हस्तिनापुर का राज्य परीक्षित को सौंप कर हिमालय की ओर रुख किया तो उन्होंने पाण्डुकेश्वर स्थित योगाध्यान बद्री में विश्राम किया था. जोशीमठ से लगभग 24 किमी. दूर स्थित योगाध्यान बद्री में ही राजा पाण्डु को मोक्ष प्राप्त हुआ था.
आदि बद्री पाँचवा बद्री धाम है. समुद्र तल से 1230 मीटर की ऊँचाई पर बेनी पर्वत की पनढाल पर स्थित आदि बद्री कर्णप्रयाग से लगभग 17 किमी. दूर है. आदि बद्री भगवान की तपस्थली कहा जाता है. आदि बद्री 14 मन्दिरों का एक समूह है जो समय-समय पर प्राकृतिक आपदाओं के कारण क्षतिग्रस्त हुए. आदि बद्री स्थल का प्राचीन नाम नाठा यानी नारायण मठ है. आदि गुरू शंकराचार्य के आने के बाद से यह आदि बद्री हो गया. यहाँ स्थित विष्णु मन्दिर 16 छोटे-छोटे मन्दिरों के समूह में है. आदि बद्री में 3 फुट ऊँचे काले रंग की नारायण की मूर्ति है. आदि बद्री के अतिरिक्त सत्यनारायण, गणेश, सूर्य, अन्नपूर्णा, गरूण, शिव, दुर्गा आदि के मन्दिर भी यहां हैं. थापली गाँव के थपलियाल आदि बद्री मन्दिर के पुजारी हैं.
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