साल 1975, पाब्लो कोकीन के धंधे में पूरी तरह उतर चुका था. कोलंबिया से पनामा और अमेरिका तक वह हवाई जहाजों के जरिए कोकीन पहुंचा रहा था. पाब्लो को कोकीन की तस्करी इसलिए भी रास आई क्योंकि इसमें बाकी सामानों की तस्करी से कम रिस्क था. ड्रग कार्टेल अभी बने नहीं थे और पुलिस वाले भी इसपर उतना ध्यान नहीं देते थे. बाकी अमेरिका तो अभी गांजा पकड़कर ही खुश था.
पाब्लो का धंधा जम गया, बुरी तरह जम गया. इतनी कमाई होने लगी कि पाब्लो को समझ ही नहीं आता था कि इन पैसों का क्या करें. पाब्लो मेडेइन के जिस इलाके में पला-बढ़ा था वहां उसने गरीबों के लिए बहुत से घर, स्कूल और फुटबॉल के मैदान बनवाए. पाब्लो का भाई और अकाउंटेंट रॉबर्टो इन पैसों को इधर-उधर खेतों में दफन करवा रहा था लेकिन पैसे इतने ज्यादा थे कि सिर्फ दफन करने से बात नहीं बनने वाली थी.
जब रॉबर्टो से काम नहीं हुआ तो पाब्लो ने अपना दिमाग लगाया. जैसा कि आपको पता है कि पाब्लो को फुटबॉल से दीवानगी की हद तक प्यार था. कोलंबिया नेशनल टीम के मैच देखने/सुनने के लिए पाब्लो किसी भी हद तक जा सकता था. उस दौर में कोलंबिया नेशनल टीम का हाल बुरा था.दूसरी तरफ कोलंबियन क्लब्स भी कॉन्टिनेंटल लेवल पर कुछ खास नहीं कर पा रहे थे.
1938 में अपना पहला मैच खेलने वाली कोलंबियन नेशनल टीम 1964 में आखिरी बार वर्ल्ड कप खेली थी जहां उसे ग्रुप स्टेज में ही बाहर होना पड़ा था. कोलंबियन क्लब्स भी कोपा लिबेर्टाडोरेस (लैटिन अमेरिकी क्लब फुटबॉल का सबसे बड़ा इवेंट) के पहले-दूसरे राउंड से बाहर हो रहे थे. ऐसे में पाब्लो ने प्यार में इंवेस्ट करने की सोची.
कहते हैं कि पाब्लो ने 80 के दशक से फुटबॉल में पैसा लगाना शुरू किया और लोगों ने बहुत जल्दी पैसे का रंग देखा. कोलंबियन फुटबॉल तेजी से उठने लगी और इसमें बड़ा रोल पाब्लो के पैसे का था. पाब्लो फुटबॉलर भी अच्छा था, वह मैदान के बाईं तरफ (लेफ्ट विंग पर) खेलना पसंद करता था और उसे कट करते हुए अंदर की तरफ आने में महारत हासिल थी.
पाब्लो बहुत एथलेटिक तो नहीं था लेकिन उसमें फुटबॉलिंग सेंस जबरदस्त थी. फुटबॉल में पैसा लगाने से पाब्लो को बहुत तरह के फायदे हुए उनमें से एक फायदा यह भी था कि उसकी बहुत से प्लेयर्स से दोस्ती हो गई. ऐसे कई प्लेयर्स आगे जाकर कोलंबियन फुटबॉल के स्टार्स बने.
कोलंबिया के लिए 61 इंटरनेशनल मैच खेलने वाले चोंटो हरेरा के मुताबिक, ‘कम्यूना (स्लम टाइप) में रेगुलर टूर्नामेंट होते थे। सारे लोग अपनी तकलीफें भूलकर उसमें खेलते थे. मैं बेहद गरीब था लेकिन पिच पर मेरी, हमारी अहमियत होती थी और हम एक परफेक्ट लाइफ जीते थे.’
एलेक्स गार्सिया (25 कैप), चिचो सरना (51 कैप), रेने हिगुएता (68 कैप), फ्रांसिस्को पाचो मटुराना (6 कैप) जैसे तमाम प्लेयर्स पाब्लो की बनाई पिचों पर खेलकर आगे बढ़े. ऐसे ही एक प्लेयर लियोनल अल्वारेज़ (101 कैप) के मुताबिक, ‘सब पूछते थे कि पिच किसने बनवाई और फिर लोग ड्रग लॉर्ड होने के लिए पाब्लो की आलोचना करते थे. लेकिन हम इसी को अपनी खुशकिस्मती मानते थे कि हमारे पास पिच थी.’
पिच बनवाने में पाब्लो का इतना खर्च नहीं हो पा रहा था कि बात बने और फिर रॉबर्टो ने पाब्लो को किसी क्लब में पैसे लगाने का सुझाव दिया. पाब्लो मेडेइन में पला-बढ़ा था और जब वह अपने एम्पायर के शुरुआती चरण (1973) में था उसी वक्त मेडेइन स्थित एटलेटिको नैसिओनल ने अपने इतिहास में सिर्फ दूसरी बार कोलंबियन लीग जीती थी.
80 के दशक में पैसों की बेतरतीब आवक से हैरान पाब्लो को इस क्लब की गरीबी (टाइटल्स की ऑफकोर्स) पर तरस आ गया और उसने इसमें पैसे लगाने की सोची. पाब्लो ने नैसिओनल को साउथ अमेरिका का बेस्ट फुटबॉल क्लब बनाने की नीयत से पैसे बहाने शुरू किए.
जारी…..
सूरज पाण्डेय (पत्रकार )
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