कॉलम

जहाँ डाल-डाल पर सोने की चिड़ियाँ करतीं हैं बसेरा

घर में मेथी के भुने बीजों में छौंकी गयी लौकी की सब्जी बनी थी जिसे नाश्ते में रात की बासी रोटी के साथ भकोसने के बाद जोसी साहब चंदू पनवाड़ी के खोमचे पर एक हाथ लाल रैक्सीन पर धरे और दूसरे हाथ की उँगलियों में में सुबह की नियत सिगरेट फंसाए हुए अपने चरणों को उसी मुद्रा में बनाए खड़े हैं जिसमें कृष्ण भगवान् जी कैलेण्डर में बंसी बजाते हुए दिखाए जाते हैं. सामने एक प्लाट पर नए मकान के लिए बुनियाद खोदी जा रही है. मजदूरों को काम करता देख जोसी जी के भीतर इतिहास का गुब्बारा फूलना शुरू होता है और वे हवा में एक सूचना उछालते हैं – “इसके ठीक पीछे का जो पलाट है वो किसी जमाने में हमारे ताऊ जी का था. ताऊजी भौब्बड़े आदमी थे. एक जमाने में आधी हल्द्वानी उन्हीं की हुई. सब जुए में हार गए.”

एक क्षण की निचाट खामोशी छाई रहती है. सामने फूलों से लदे अमलतास पर कहीं से उड़ आई प्लास्टिक की थैली को लेकर दो कव्वे कांव-कांव मचाते रार कर रहे हैं.

“वो उप्पर रानीबाग से आगे जो नाला जैसा बहता है उसके उधर भी तो उनकी जमीन थी हमारे दादाजी बताते थे.” यह चंदू है जिसे बकैती की पनवाड़ी-परम्परा के सबसे बड़े ध्वजवाहकों में गिना जाता है.

अगले आधे घंटे के गहन वार्तालाप के उपरान्त पता चलता है कि असल में चंदू पनवाड़ी और जोसी जी दोनों के पुरखों के पास समूचे उत्तर भारत में इतनी प्रापर्टी थी कि आधे हल्द्वानी को नौकर रख सकते थे. बखत खराब था – एक के ताऊ जी जुआरी थे दूसरे के पौने खानदान को काला हैजा लील गया, पार्टनरों ने गद्दारी कर दी.

हमारा देश खानदानी लोगों से अटा पड़ा है. देश तो बहुत बड़ी चीज़ है अपने मोहल्ले में ही गिनना शुरू करता हूँ तो कम से कम सौ ऐसे लोग हैं जिनके खानदान की एक समय की नेट वर्थ बिल गेट्स से कम न बैठती.

अकेले नैनीताल में करीब दर्ज़न भर राजाओं और नवाबों की सन्ततियां बसर करती हैं. इन्हें नगर के इकलौते क्लब में रात के समय रम के सस्ते नशे में “यू नो माई ग्रेट ग्रैंड अंकल वॉज़ द लास्ट नवाब ऑफ़ द लोअर टांडा रियासत एंड माई ग्रेट ग्रैंड आंट हू वॉज़ द डॉटर ऑफ़ महाराजा ऑफ़ अपर ठाकुरद्वारा मैरिड हिम इन नाइंटीन थट्टी फोर …” फिलहाल हिज़ हाइनेस के घर सात महीनों से बिल न भरने की वजह से बिजली काटने का नोटिस चिपका हुआ है.

एक बार कुमाऊँ के एक बड़े से पुराने गोदामनुमा घर को देखकर मेरे एक विदेशी मित्र ने कहा था – “दिस मस्ट हैव बीन व्हेयर दे स्टोर्ड देयर ग्रेन्स …” मुझे तनिक झेंप के साथ बतलाना पड़ा कि प्यारे यह गेहूं-चावल का गोदाम नहीं हमारे कुमाऊँ के अनेक राजाओं में से एक का महल हुआ करता था.

तो हाल यह है कि जिसके दादाजी ठेकेदार थे वह बताता है कि उसके दादाजी के ठेके अफगानिस्तान और रूस तक चलते थे; जिसके नाना जी की पीतल की भट्टी थी उनकी फैक्ट्री में बने बर्तनों की सप्लाई मलिका विक्टोरिया के महल में हुआ करती थी; जिसके घर साहित्य के नाम पर एक चिंदीछाप अखबार भर आता है उसे परदादा के घर की लाइब्रेरी में पाटलिपुत्र और ऑक्सफ़ोर्ड तक के शोधार्थी आया करते थे.

जुए, महामारी, धोखे, बदचलनी, वेश्यागमन और बाढ़-भूस्खलन जैसे ऐतिहासिक कारणों से हमारे इन खानदानी लोगों को नरक जैसी ज़िंदगी बिताने की मजबूरी है वरना मुझ जैसों की क्या बिसात कि उनके सामने गरदन ऊंची कर सकूं.

लोग ऐसे ही थोड़े कहते हैं कि हमारा देश एक टैम सोने की चिड़िया था जब मुन्नन कबाड़ी की खाला के फुफिया ससुर यानी द क्राउन प्रिंस ऑफ़ कमलुवागांजा की हवेली के अहाते में पांच-पांच हाथी बंधे रहते थे जिन्हें जिम कारबेट शेर का शिकार करने हल्द्वानी से कालाढूंगी जाते बखत किराए पर ले जाता था.

-अशोक पाण्डे

काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago