Featured

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया. उन्होंने जीते जी नेत्रदान की इच्छा जाहिर की थी. मृत्यु के बाद उनकी  इच्छा का सम्मान करते हुए दोनों आंखें दान की गई. हरिप्रिया गहतोड़ी नेत्रदान करने वाली चम्पावत जिले की पहली महिला हैं. हरिप्रिया गहतोड़ी की तीनों बेटियों ने सामाजिक वर्जनाओं को तोड़ते हुए अपनी माँ की अर्थी को कंधा दिया और चिता को मुखाग्नि दी.    
(Obituary to Haripriya Gahtori)

लोहाघाट के तल्लीचांदमारी की रहने वाली हरिप्रिया गहतोड़ी राज्य आंदोलनकारी स्व. हीरा वल्लभ गहतोड़ी की पत्नी हैं. राज्य आंदोलनकारी स्व. हीरा वल्लभ गहतोड़ी का परिवार हमेशा से राज्य के लोगों के लिये प्रेरणादायक रहा है. स्व. हीरा वल्लभ गहतोड़ी की मृत्यु के समय भी उनकी बेटियों ने पिता की अर्थी को कंधा दिया और चिता को मुखाग्नि दी थी.

नेत्रदान में आंख का कार्निया निकाला जाता है. हरिप्रिया गहतोड़ी की आंखों से कार्निया उपजिला चिकित्सालय लोहाघाट के नेत्र सर्जन डॉ. विराज राठी ने निकाला. हरिप्रिया गहतोड़ी की बेटी रीता गहतोड़ी ने पिछले साल 15 अगस्त के दिन नेत्रदान का ऐलान किया था. हरिप्रिया गहतोड़ी को भी नेत्रदान के लिये उनकी बेटी रीता गहतोड़ी ने प्रेरित किया था.  

चम्पावत जिला प्रशासन पिछले चार साल से रीता गहतोड़ी के नाम को पद्मश्री सम्मान के लिए गृह मंत्रालय को भेजता आ रहा है. सामाजिक क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें वर्ष 2013 में तीलू रौतेली पुरस्कार से सम्मानित किया गया था.
(Obituary to Haripriya Gahtori)

मां की चिता को मुखाग्नि पहाड़ की तीन बेटियां

चम्पावत की इन तीन बेटियों रीता गहतोड़ी, अंजू गहतोड़ी और करूणा गहतोड़ी, की यह तस्वीर बदलते पहाड़ की तस्वीर है. ऊपर दी गयी तस्वीर राज्य आंदोलनकारी स्व. हीरा वल्लभ गहतोड़ी और हरिप्रिया गहतोड़ी के परिवार की बेहद निजी तस्वीर है इसके बावजूद उनकी इन तीनों बेटियों की यह तस्वीर खूब साझा की जानी चाहिये जिसमें वह समाज के उस झूठे दंभ को तोड़ती नजर आती हैं जिसके लिये न जाने कितनी बेटियां जन्म ही नहीं ले पाती.
(Obituary to Haripriya Gahtori)

काफल ट्री डेस्क

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

हमारे कारवां का मंजिलों को इंतज़ार है : हिमांक और क्वथनांक के बीच

मौत हमारे आस-पास मंडरा रही थी. वह किसी को भी दबोच सकती थी. यहां आज…

2 days ago

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

6 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

6 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

7 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

1 week ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

1 week ago