अल्मोड़े के नौला गाँव में जन्मे मथुरादत्त मठपाल ने आज सुबह अंतिम साँस ली. मथुरादत्त मठपाल कुमाऊनी के अभिभावकों में एक थे. मथुरा दत्त मठपाल गढ़वाली और कुमाऊनी बोली के संरक्षण के लिये संघर्षरत रहे. कुमाऊनी बोली को भाषापरक साहित्य के रूप में पहचान देने में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही है.
(Obituary for Mathura Dutt Mathpal)
मथुरादत्त मठपाल के पिता हरिदत्त मठपाल स्वतंत्रता सेनानी रहे थे. उनकी प्रारंभिक शिक्षा अपने ही गांव में प्रारंभिक स्कूल में हुई. आठवीं की परीक्षा मनिला मिडिल स्कूल से और रानीखेत ‘नेशनल हाई स्कूल’ से आगे की शिक्षा उन्होंने प्राप्त की.
तमाम आर्थिक कठिनाईयों के बावजूद वह लम्बे समय से ‘दूदबोलि’ पत्रिका को नियमित रूप से निकाल रहे थे. उसे वह वर्ष 2000 से निकाल रहे थे. 2006 से वार्षिक रूप ने निकलने वाली इस पत्रिका में लोककथा, हास्य, कहानी इत्यादि प्रकाशित होते थे.
(Obituary for Mathura Dutt Mathpal)
दूर कोयम्बटूर में 2015 के भारतीय विद्या भवन के सभागार में साहित्य अकादमी द्वारा भाषा सम्मान दिये जाने के दिन उनके द्वारा दिये गये व्यक्तव्य को कौन भूल सकता है. ‘द्वि आँखर- कुमाउनीक् बाबत’ शीर्षक से दिये अपने वक्तव्य में उन्होंने मातृभाषा के लिये ‘दुधबोली’ शब्द का प्रयोग किया था. उन्होंने अपने वक्तव्य का अंत भी इन शब्दों के साथ किया था
जी रया, जागि रया, स्यूँ कस तराण हौ, स्यावै कसि बुद्धि हौ.
रामनगर के पंपापुरी स्थित उनके घर में जाते हैं तो लौटते हैं एक नवीन उर्जा के साथ. रामनगर स्थित उर्जा के इस केंद्र में होता था 80 बरस का एक बूढ़ा जिसके पास हमेशा अपने आगामी कामों की एक लम्बी सूची रहती और जो हमेशा जुटा रहता था अपनी किताबों और काम के बीच.
अपनी बोली के संरक्षण के लिये निरंतर जुटे कुमाऊनी के इस अभिभावक का संघर्ष तभी पूरा होगा जब उनके काम को निरंतर जारी रखा जाएगा. काफल ट्री की ओर से अपने अभिभावक को भावपूर्ण श्रद्धांजलि.
(Obituary for Mathura Dutt Mathpal)
–काफल ट्री डेस्क
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