आज से तकरीबन 20 साल पहले 1998 से अल्मोड़ा में शरदोत्सव होता आया है और अल्मोड़ा शहर के तमाम कलाकार जी जान से इस महोत्सव को सफल बनाने के लिए जुटे रहे हैं.
इसी आयोजन में फोटो प्रदर्शनी को सफल बनाने के लिए अल्मोड़ा शहर के सभी फोटो प्रेमी और फोटोग्राफर जी. आई. सी. अल्मोड़ा के उस विशाल कमरे में पत्थरों की तकरीबन २ फुट मोटी दीवारों पर अल्मोड़ा, नैनीताल,रानीखेत, पिथौरागढ़ से अन्य फोटोग्राफरों द्वारा भेजी गई फोटुओं को टांगने की जद्दोजहद कर रहे हैं – कोई काले चार्ट टांग रहा है तो कोई कील ठोक रहा है, कोई थर्माकोल जोड़ रहा है तो कोई पेपर टेप पे थूक लगा कर फोटुओं को काले चार्टों और थर्माकोल पर चिपकाने की असफल कोशिश कर रहा है.
फ़ोटो कभी तो टंगती, कभी गिरती, फिर टंग जाती, अलबत्ता उस पेपर टेप का गंदा स्वाद हम सब की जीभ पर कई दिनों तक बना रहता.
इस सब के बावजूद फोटो प्रदर्शनी सफल होती थी और हजारों लोग उसका अवलोकन करते और सराहते. उसके बाद के सालों में हुए अल्मोड़ा शरदोत्सव में भी फोटो प्रदर्शनी एक मुख्य आकर्षण रही और उसी स्टाइल में निर्बाध रूप से चलती रही जिसका जिक्र मेंने पहले किया.
आज तकरीबन २० साल का एक लंबा समय हो गया है और अल्मोड़ा में, अल्मोड़ा फेस्टिवल हो रहा है पर फोटो प्रदर्शनी का जिक्र पोस्टरों और फ्लेक्स में तो है पर वह धरातल से गायब है. शायद कागजों में हो भी रही हो.
सोशल मीडिया में अल्मोड़ा महोत्सव का इतना बड़ा छद्म प्रचार करने को तो आयोजकों के पास अपार पैसा और समय है पर इस अल्मोड़ा में जहां आज एक नहीं कई युवा फोटोग्राफर अपना समय और जीवन फोटोग्राफी को समर्पित कर चुके हैं वहां एक छोटी सी फोटो प्रदर्शनी इस विशाल फेस्टिवल से गायब है.
(जाने माने फोटोग्राफर और काफल ट्री के अभिन्न सदस्य जयमित्र सिंह बिष्ट की रपट)
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