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जिससे है सबको आशा, दिखा दे लोकतंत्र का तमाशा!

जमूड़े!

हाँ उस्ताद!

लोगों को हँसाएगा?

हँसाएगा!

तालियां बजवाएगा?

बजवाएगा!

जमूड़े! जिससे है सबको आशा, दिखा दे लोकतंत्र का तमाशा!

उस्ताद! तेरा हुकुम वजा लाता हूँ, मैं भीड़तंत्र दिखलाता हूँ!

जमूड़े , लोकतंत्र!

हाँ उस्ताद, भीड़तंत्र!

जमूड़े, बोल – लोक!

लोक!

तंत्र!

तंत्र!

लोकतंत्र!

भीड़तंत्र!

जमूड़े ल, उस पर ओ की मात्रा- लो!

लो!

क से कबूतर- क!

क!

त-न्-त्र!

त-न्-त्र!

लो-क-तंत्र!

भी-ड़-तंत्र!

जमूड़े! मैं लोकतंत्र बोल रहा हूँ, तू भीड़तंत्र बोल रहा है!

वही तो उस्ताद! आप भीड़तंत्र बोल रहे हैं मैं लोकतंत्र बोल रहा हूँ.

जमूड़े! जनता कर रही है हाहाकार.

उस्ताद! दिखा दूँ अपना चमत्कार?

जमूड़े! घूम रहे हैं हत्यारे-बलात्कारी. क्या है तेरी जिम्मेदारी?

उस्ताद! हत्या-बलात्कार रोक दूँ क्या? कहो तो दो-चार को ठोंक दूँ क्या?

वाह जमूड़े, ये है अच्छा विचार. वर्दी पहन हो जा तैयार!

उस्ताद पहन ली है मैंने वर्दी, पिस्तौल भी तैयार कर दी.

जमूड़े! जेल में हाथ डाल, और चार-पाँच अच्छे हत्यारे-बलात्कारी निकाल!

अगड़म-बगड़म-सगड़म-छू!

हत्यारे-बलात्कारी आ जा तू!

उस्ताद, सेठ जी का लड़का, माफिया टिल्लू बड़का और अपने भूपू विधायक रमेश तड़का.

जमूड़े! इन पर गोली चलाएगा? तू मुझे मरवाएगा. इन्होंने ही हमें पाला-पोसा है. जमूड़े, इन्हें न्यायपालिका पर भरोसा है.

फिर उस्ताद?

जमूड़े! उठाईगिरे, उ्चक्के, फर्स्टटाइमर, हों पैटी क्रिमिनल यार. पकड़ ला हत्यारे-बलात्कारी तीन-चार!

हाँ उस्ताद, उनको निपटाएंगे, हत्या-बलात्कार मिटायेंगे.

बच्चा लोगों देखा तुमने चमत्कार ? जमूड़े ने मिटा दिये हत्या-बलात्कार. खाली डिब्बा- बोतल खाली, बच्चा लोग बजाओ ताली.

उस्ताद! यूँ ही काम करता जाऊँगा. तुझे मसीहा बनाऊँगा.

जमूड़े हो जा तैयार! ऐसे ही खत्म करना है भ्रष्टाचार.

उस्ताद अपने पास हैं कई भ्रष्टाचारी. नेता, सचिव, सेठ, और ठेकेदार सरकारी.

जमूड़े तेरी ये ही हरकत तो मुझे मरवाएगी, अरे क्या बाड़ अपने ही खेत को खाएगी?

फिर उस्ताद?

अरे शिकार ऐसा हो जैसे कोई मूली-तरकारी.

उस्ताद! पकड़ लाता हूँ हवलदार-पटवारी.

शब्बाश जमूड़े! अब हम देखने वालों को और मजा दिलवाएंगे.

उस्ताद मतलब हम इनमें भी गोली पड़वाएँगे?

हाँ जमूड़े! सुन एक नई तान. जरा पास ला अपना कान!

जमूड़े थोड़ा कूद-उछल, बजा अपनी ढपली और पाजेब. इस बीच मैं काट लाता हूँ, दो-चार की जेब.

उस्ताद! धंधे का है हाल बेहाल. बगल में एक और उस्ताद दिखा रहा है कमाल.

जमूड़े! बात मेरी दिमाग़ में डाल. जरा कान ला!

उसका नाम भी बलात्कारी वाली एफआईआर में डाल.

वाह उस्ताद! क्या दिमाग़ पाया है. कैसे तुमने दुश्मन को निपटाया है. मानता हूँ तुम हो मेरे गुरु. जो यूँ ही निपटाते रहे, बनोगे एकदिन विश्वगुरु. Satire Priy Abhishek

प्रिय अभिषेक
मूलतः ग्वालियर से वास्ता रखने वाले प्रिय अभिषेक सोशल मीडिया पर अपने चुटीले लेखों और सुन्दर भाषा के लिए जाने जाते हैं. वर्तमान में भोपाल में कार्यरत हैं.

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