उत्तराखंड को देवभूमि यूं ही नहीं कहा जाता है. यहाँ हरेक स्थान पर, प्रत्येक पहाड़ के शिखर पर देवी-देवता का वास है. जगह-जगह देवताओं से जुड़ी स्मृतियाँ पायी जाती है. हरिद्वार-ऋषिकेश तो एक तरह से देवी-देवताओं की धरोहर नगरी है. यहाँ हर गली-नगर में किसी न किसी देवता का पौराणिक मंदिर अवस्थित है. हरिद्वार शहर के प्रमुख आदिकालीन मंदिरों में से एक मंदिर नीलेश्वर महादेव का है.
(Neeleshwar Mahadev Temple Haridwar)
माँ चंडी देवी के मंदिर में जाने के लिए उड़नखटोला (रोप-वे) के गेट के पास नजीबाबाद-हरिद्वार सड़क मार्ग से लगा हुआ गौरीशंकर मंदिर है. सभी को पता है कि भोलेनाथ की ससुराल हरिद्वार (कनखल) में है. इस मंदिर से दो-तीन सौ मीटर आगे बायीं तरफ़ ऊपर जंगल में नीलेश्वर महादेव का दिव्य मंदिर है. हज़ार शिवलिंगों को समाहित करते हुए यहाँ ढाई फ़ीट ऊँचा स्वयंभू शिवलिंग है. इस उत्तराभिमुख शिवलिंग का वर्णन शिव पुराण में मिलता है. यह मंदिर कनखल अवस्थित दक्षेश्वर मंदिर का समकालीन है. यहाँ पर तरह-तरह के फलदार वृक्ष है. इन पेड़ों पर लगने वाले फलों को तोड़ा नहीं जाता है. फल पककर जब नीचे गिरते हैं, तब उनको भोलेनाथ को अर्पित करके प्रसाद के रूप में श्रद्धालुओं को दिया जाता है. इस मंदिर के बारे में कई लोक कथाएँ स्थानीय लोगों से सुनने को मिलती है-
एक लोक कथा के अनुसार महादेव जब बारात लेकर आकाश मार्ग से हरिद्वार आये, तब उन्होंने अपनी बारात के साथ नील पर्वत के नीचे (जहां गौरीशंकर मंदिर है) पड़ाव डाला और विवाह पश्चात भी माँ सती के साथ इसी गौरीशंकर मंदिर में वर्षों तक निवास किये. कहा जाता है कि देवता पृथ्वी पर पहली बार इसी स्थान पर भोलेनाथ का अनुसरण करते हुए अपने पैर रखें थे. इससे पहले देवता यदि पृथ्वी लोक पर आते थे, तब भी ज़मीन पर अपने चरण नहीं रखते थे. कुछ ऊँचाई से ही वर देकर वापस देवलोक चले जाते थे. तो हुआ ये कि बारात आने के बाद भोलेनाथ ने कनखल की दूरी देखने के लिए पास की पहाड़ी पर, जहां नीलेश्वर मंदिर है, गये और वहीं खड़े होकर कनखल की दूरी का अनुमान लगाये और उसी दिव्य स्थान पर ढाई फ़ीट ऊँचे शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए.
(Neeleshwar Mahadev Temple Haridwar)
दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार महादेव के मना करने के बाद भी जगतजननी माँ सती अपने पिता दक्ष महाराज के यज्ञ में शामिल होने कनखल आयी तथा अपमानित होकर यज्ञ कुंड में कूदकर अपने प्राण त्याग दीं. इस घटना को सुनकर क्रोधित होकर महादेव इसी पर्वत पर आये और तांडव करने लगे. उनके प्रचंड क्रोध से उनका पूरा शरीर नीला पड़ गया. इसी स्थान पर बीरभद्र को प्रकट करके उन्होंने यज्ञ को नष्ट करने और दक्ष महाराज के सिर को काटने का आदेश दिया. तभी से इस पर्वत का नाम नील पर्वत पड़ा और शिवलिंग के रूप में प्रकट हुए भोलेनाथ को नीलेश्वर महादेव के नाम से जाना गया. यहाँ पर माँ गंगा नील धारा के रूप में भोलेनाथ के श्री चरणों को स्पर्श करते हुए आगे जाती हैं.
मान्यता के अनुसार सावन में इस मंदिर में जलाभिषेक करने से भक्तों की मनोकामना पूर्ण होती है. स्वयंभू एक ही शिवलिंग में हज़ार शिवलिंग होने से एक बार जलाभिषेक करने पर हज़ार गुना फल मिलता है. सावन में भक्तों का यहाँ ताँता लगा रहता है. यहाँ प्रत्येक दिन आरती के वक्त महादेव का होने वाला श्रृंगार देखते ही बनता है.
(Neeleshwar Mahadev Temple Haridwar)
14 नवम्बर 1979 को बलिया जिले के ग्राम गरया में जन्मे आशुतोष उच्चतर न्यायिल सेवा में अधिकारी हैं. ‘राजनैत’ उनका पहला उपन्यास है.
हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online
इसे भी पढ़ें: त्रेतायुग में वनवास, द्वापरयुग में अज्ञातवास और अब कलयुग में एकांतवास
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…