भगवान मूल नारायण ने अपने दोनों पुत्रों बज्यैण और नौलिंग को अपने से समान दूरी पर भनार और सनगाड़ भेजा था. नौलिंग देवता जब सनगाड़ पहुंचे तो वहां की प्राकृतिक छटा से इतने प्रभावित हुए कि वहीं रहने का मन बना लिया.
इन दिनों यहां सनगड़िया नाम के एक मसाण का लोगों के बीच बहुत अधिक आतंक था. मसाण का अर्थ एक प्रकार के भूत या राक्षस से है. सनगड़िया मसाण आस-पास के गांव वालों से वहां रहने के बदले नरबलि मांगता था. इसके बाद भी सनगड़िया मसाण कभी भी किसी के जानवरों को खा जाता फसल नष्ट कर देता या कभी किसी को भी अपना शिकार बना देता.
जब नौलिंग देवता सनगाड़ पहुंचे तो भीमकाय सनगड़िया मसाण को देख चकित रह गये. सनगड़िया मसाण को देखकर नौलिंग देवता सात दिन और सात रात तक दुदिल के पेड़ में बैठे रहे. दुदिल पहाड़ों में पाया जाने वाला एक पेड़ है. इस पेड़ का प्रयोग धार्मिक अनुष्ठानों में खूब किया जाता है. पशुओं के लिये चारे के लिये भी दुदिल का पेड़ उपयोग में लाया जाता है.
आठवें दिन नौलिंग देवता ने दुर्गा, कालिका समेत अनेक देवी देवताओं का ध्यान किया और सनगड़िया मसाण से लड़ने के लिये सहायता हेतु आमंत्रित किया. इसके बाद सनगड़िया मसाण और नौलिंग देवता के बीच एक भयानक युद्ध शुरू हुआ. दसवें दिन नौलिंग देवता ने सनगड़िया मसाण को मार दिया.
नौलिंग देवता ने सनगड़िया मसाण को मारकर उसकी लाश को एक ताल में डाल दिया. सनगाड़ मंदिर परिसर में स्थित राक्षस ताल वही ताल है जिसमें नौलिंग देवता ने सनगड़िया मसाण को मारकर डाला था. मरने से पहले सनगड़िया मसाण ने नौलिंग देवता से प्रत्येक वर्ष दशहरे के समय एक बकरी की बलि मांगी. सनगड़िया मसाण की इस मांग को नौलिंग देवता ने मान लिया और इस तरह सनगड़िया मसाण का अंत हुआ.
हाईकोर्ट के आदेश से पूर्व सनगाड़ मंदिर में बलि प्रथा प्रचलित थी लेकिन वर्तमान में मंदिर परिसर में कोई बलि नहीं दी जाती है. वर्तमान में मंदिर की कुछ तस्वीरें देखिये : ( सभी तस्वीरें फेसबुक पेज श्री 1008 नौलिंग धाम सन्गाड़ – बागेश्वर से साभार ली गयी हैं. )
बागेश्वर से ऐसे पहुंचें नौलिंग सनगाड़ मंदिर
-काफल ट्री डेस्क
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भारतीय सनातन संस्कृति की कई तर्कपूर्ण परम्पराओं पर विभिन्न कालखण्डों के दौरान शासन व्यवस्थाओं ने प्रहार किया है, जिनके कारण अलौकिक शक्तियों द्वारा स्थापित संतुलन बिगड़ रहा है। इसका प्रभाव स्पष्ट रूप से दृष्टिगोचर होने लगा है। समाज को इसका संज्ञान लेते हुए अपनी धरोहरों को सहेजने का उपक्रम करना ही होगा। यही व्यापक मानव हित के लिए सही मार्ग होगा।
भुमिराज देवता के बारे मै भि लिखो