Featured

विश्व जल दिवस पर उत्तराखंड का परंपरागत जल स्त्रोत नौला

मुझे ठीक से याद नहीं लेकिन अगर मैं सही हूँ तो उत्तराखण्ड बनने के साल भर पहले तक यहां के गांवों के घरों के आगे नल पोस्ट लग चुके थे. ये नल के पोस्ट वर्ल्ड बैंक की सहायता से शुरु स्वजल योजना के तहत 1996 से लगने शुरु हुये थे. मैंने 2010 तक कभी ऐसा नहीं देखा था कि इन नलों में हमेशा पानी आता हो, हां गावों में अब पानी को लेकर झगड़े ज्यादा बड़ चुके थे. इन सबके अलावा आज के दिन अगर उत्तराखण्ड के पहाड़ी हिस्सों में बने गावों में एक समरुपता खोजी जाये तो हर गांव में बनी सीमेंट की टूटी-फूटी टंकियां होंगी. आज भी जब कभी गांव के नल में पानी नहीं आता है तो लोग नौले के तरफ ही भागते हैं.

एक आंकड़े के अनुसार उत्तराखंड राज्य बनते समय 90 फीसदी आबादी पेय जल के लिये नौले पर निर्भर थी. इस समय राज्य में लगभग दो लाख नौले हुआ करते थे. आज इन सभी की हालत दयनीय है.

नौला पानी की उपलब्धता के लिये पत्थरों से निर्मित एक संरचना है, इसमें सबसे नीचे एक फुट वर्ग फुट चौकोर सीढ़ीनुमा क्रमबद्ध पत्थरों की पंक्ति से शुरु होता है. इस सीढ़ीनुमा आकार को ‘पाटा’ कहा जाता है. नीचे से ऊपर तक लगभग 8-10 पाटे होते हैं. इसके सबसे उपर का पाटा लगभग डेढ़ मीटर लम्बा और चौड़ा होता है. सामान्य रुप से इसके बाहर तीन दीवार होती हैं और उपर की छत गुम्बदनुमा होती है.

नौले, उत्तराखण्ड के ग्रामीण और शहरी दोनों समाज में जल आपूर्ति के मुख्य स्त्रोत रहे हैं. अल्मोड़ा जैसे शहर में एक समय कम से कम 360 नौले हुआ करते थे. बद्रीदत्त पांडे ने अपनी किताब ‘कुमाऊं का इतिहास’ में अल्मोड़ा को 360 नौलों का शहर कहा है. 1840 में अपनी अल्मोड़ा यात्रा पर लिखे वृतांत में बैरन कहता है कि यहां 100 से ज्यादा पानी के स्त्रोत हैं. आज पानी की आपूर्ति अल्मोड़ा की राजनीति में महत्वपूर्ण मुद्दा है. अंदाजा लगाया जा सकता है हमने क्या किया है?

उत्तराखण्ड में मिलने वाले नौले या फिर अन्य पानी के धारे पुराने समय में स्वच्छ रहते थे. इसे स्वच्छ रखने के लिये धर्म का बखूबी सहारा लिया गया था. आज भी पुराने किसी धारे की मुखाकृति में गणेश, नाग, बाघ, गाय इत्यादि आकृतियां देखने को मिलती हैं. इसी तरह नौले के आगे यक्ष की मूर्ति रखी जाती थी. इससे नौले में प्रवेश करने वाला अपने जूते या चप्पल उतार कर नौले में प्रवेश करता था. यक्ष की मूर्ति अधिकांशतः उन नौलों के आगे लगती थी जिनसे पीने का पानी लिया जाता था.

उत्तराखण्ड में नौले के निकट सामान्य रुप से मंदिर पाये जाते हैं इसका एक मुख्य कारण इनकी सफाई ही रहा होगा. इनके आस-पास न केवल पूजा पाठ होते थे बल्कि विवाह से लेकर मृत्यु तक के कई सारे रिवाज इन्हीं नौलों पर सम्पन्न हुआ करते थे.

नौले को अंग्रेजी में स्प्रिंग कहा जाता है. नौले में जल के स्तर को उसके आस-पास खिना, मजीना, खर्स्यूं, बांज, क्योराल इत्यादि की प्रजाति की वनस्पति लगाई जाती थी. पिछले कुछ वर्षों से कुछ एनजीओ ने पहाड़ों में इन नौलों के पानी को रिचार्ज करने के प्रयास भी किये.

खैर, उत्तराखंड का अब तक का सबसे पुराना नौला जाह्नवी का नौला है. यह पिथौरागढ़ के गंगोलीहाट में स्थित है. इस नौले का निर्माण कत्यूरी शासक रामचंद्र देव ने अपनी मां की स्मृति में बनवाया था. नौले में जल शैलशिखर की पहाड़ी में स्थित गुप्तगंगा से माना जाता है.

– गिरीश लोहनी

वाट्सएप में काफल ट्री की पोस्ट पाने के लिये यहाँ क्लिक करें. वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

अंग्रेजों के जमाने में नैनीताल की गर्मियाँ और हल्द्वानी की सर्दियाँ

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में आज से कोई 120…

2 days ago

पिथौरागढ़ के कर्नल रजनीश जोशी ने हिमालयन पर्वतारोहण संस्थान, दार्जिलिंग के प्राचार्य का कार्यभार संभाला

उत्तराखंड के सीमान्त जिले पिथौरागढ़ के छोटे से गाँव बुंगाछीना के कर्नल रजनीश जोशी ने…

2 days ago

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

3 days ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

4 days ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

4 days ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

1 week ago