Featured

नैनीताल में नसीरुद्दीन शाह के शुरुआती दिन

देश के सर्वकालीन महानतम अभिनेताओं में से एक नसीरुद्दीन शाह ने अभी कुछ दिन पहले अपना जन्मदिन मनाया है. यह अलग बात है कि अपनी आत्मकथा ‘ एंड देन वन डे’ में वे लिखते हैं – “मेरा जन्म लखनऊ के नजदीक के कस्बे बाराबंकी में जुलाई 1949 या अगस्त 1950 में हुआ था. इस बारे में मेरी अम्मी (फारूख़ सुल्तान) समेत कोई भी सही-सही नहीं जानता. उनका यह कहना कि “तुम रमजान में पैदा हुए थे” भी कोई मदद नहीं करता. (Naseeruddin Shah Earliest Days in Nainital)

नसीर के पिताजी उत्तर प्रदेश सिविल सर्विस में अधिकारी थे. (Naseeruddin Shah Earliest Days in Nainital) अपनी आत्मकथा में नसीर ने नैनीताल के अपने शुरुआती दिनों को याद किया है.

“1951 के एकाध साल बाद हम लोग लखनऊ से पहले बरेली और फिर हल्द्वानी और अंततः वहां से नैनीताल शिफ्ट हो गए. बेचारे ज़हीर (नसीर के बड़े भी) को 1953 में बोर्डिंग स्कूल भेज दिया गया और 1954 में मुझे और ज़मीर (भाई) को एक ‘सिस्टर’ स्कूल सेंट मेरी (रैम्नी) में नर्सरी में बतौर डे-स्कॉलर भरती कर दिया गया यानी छुट्टी होने पर हम घर जा सकते थे.

नसीर के माता-पिता शिमला में

“मेरे ख़याल से रैम्नी में मुझे ‘द शूमेकर्स शॉप’ नाम के एक नाटक में एक मोची का रोल दिया गया था. मुझे एक स्टूल पर सूजा लिए खड़े होकर एक गीत ‘इन द शूमेकर्स शॉप, वेयर अ टैपिंग नेवर स्टॉप्स ट्रा ला ला ला लाSSS’ के दौरान ठक-ठक करते रहना होता था. शो के दिन मैं बीमार पड़ गया और स्टेज पर मेरे डेब्यू में कुछ घंटे की देर हो गयी. इस वजह से मेरा मुझे बहुत ज्यादा दिल टूटा हो ऐसी मुझे याद नहीं है लेकिन शायद ऐसा हुआ होगा और शायद तब मुझे जो महसूस हुआ होगा, हालांकि वह वक्त के धुंए के छल्लों में खो चुका है, उसने मेरे जाने बिना मेरे अचेतन में कहीं अभिनय करने की आकांक्षा को जगा दिया होगा. मेरा मतलब है कि उसी रात ज़हीर ने ‘ऑन द गुड शिप लॉलीपॉप में एक नाविक का रोल किया था लेकिन उसे ऐसी कोई इच्छा नहीं हुई.

बालक नसीर

“उसी साल मैंने सेम (सेंट जोसेफ कॉलेज) के कंसर्ट हॉल में एक नाटक देखा. उसका नाम था ‘मिस्टर फिक्सिट’ और वह अब मेरी स्मृति से गुम हो चुका है लेकिन मुझे याद है कि जब मैं उसे देख रहा था, जो इकलौता काम मैं करना चाहता था वह था स्टेज  पर उन लोगों के साथ होना. जब स्टेज पर एक लम्बी लिमोजीन गाड़ी आई, जो मुझे बाद में पता चला पहियों पर बनाया गया प्लाईवुड का एक कटआउट भर थी, तो मैं आश्चर्य के ब्रह्माण्ड में पहुँच गया. और तब से मैंने इस बात पर पुख्ता यकीन किया है कि इस संसार में जो भी जादू होता है वह सिर्फ स्टेज पर हो सकता है.

बचपन के इनाम. बीच में नसीर.

“असल स्कूल जाने का समय आ रहा था. रैम्नी में प्लास्टिसीन से खेलने, गाने गाने और दिन भर ड्राइंग बनाने का काम हमेशा के लिए नहीं किया जा सकता था. साल के अंत में हुए एनुअल फंक्शन में हमें स्मृतिचिन्ह दिए गए. मुझे ‘फ़ार्म फन’ नाम की एक किताब मिली जबकि जमीर को ‘अ नेम फॉर किटी’ मिली. सेंट जोसेफ कॉलेज को देख कर भयमिश्रित अचरज लगा करता था और अब हम उसमें प्रविष्ट होने वाले थे. रैम्नी में मुझसे एक क्लास ऊपर के जमीर को कक्षा एक में दाखिला मिला जबकि मुझे हायर किंडरगार्टन में.”

(नसीरुद्दीन शाह की आत्मकथा ‘एंड देन वन डे’ से अनूदित)

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

नेत्रदान करने वाली चम्पावत की पहली महिला हरिप्रिया गहतोड़ी और उनका प्रेरणादायी परिवार

लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…

1 week ago

भैलो रे भैलो काखड़ी को रैलू उज्यालू आलो अंधेरो भगलू

इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …

1 week ago

ये मुर्दानी तस्वीर बदलनी चाहिए

तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…

2 weeks ago

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

2 weeks ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

3 weeks ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

3 weeks ago