Featured

नानकमत्ता का दीपावली मेला

नानकमत्ता जाना जाता है सिक्खों के पवित्र तीर्थ स्थल गुरुद्वारे, बाउली साहिब, दूध का कुँआ और 24 घंटे चलने वाले लंगर के लिए. इन विशेषताओं के अलावा नानकमत्ता की एक और विशेषता है और वह है यहाँ हर साल लगने वाला दीपावली का मेला. वैसे तो नानकमत्ता में हर महीने की अमावस्या को मेला लगता ही है लेकिन दीवाली में लगने वाले 7-8 दिवसीय मेले की भव्यता देखने लायक होती है. यह मेला पिछले कई दशकों से चला आ रहा है. न सिर्फ नानकमत्ता व ग्रामीण क्षेत्र के लोग मेले में ख़रीदारी के लिए आते हैं बल्कि उत्तर प्रदेश के कई जिलों के लोग अपने बच्चों के सिर के बाल उतरवाने भी इस पुण्य अवसर पर आते हैं. उनकी गुरुद्वारे के प्रति एक अटूट आस्था है व अपनी मन्नतों की पूर्ति हेतु हज़ारों श्रृद्धालु प्रतिवर्ष दीवाली के समय नानकमत्ता में दर्शन करने ज़रूर आते हैं.

फोटो कमलेश जोशी

मेले पुराने समय के और आज के गाँवों के मॉल है. जैसे मॉल में एक छत के नीचे सारा सामान व मनोरंजन की सुविधाएँ उपलब्ध रहती हैं वैसे ही मेलों में घर की ज़रूरत का सारा सामान मिल जाता है और मनोरंजन के लिए झूले, सर्कस, मौत का कुँआ आदि उपलब्ध रहते ही है. नानकमत्ता का दीवाली का मेला हमेशा से बच्चों, बूढ़ों व ग्रहणियों के आकर्षण का केन्द्र रहा है. एक कटु सत्य यह भी है कि आधुनिक बाज़ारीकरण के कारण मेलों में लोगों की रूचि कम हुई है और पुराने समय की तुलना में मेलों का क्षेत्रफल घटा है. 90 के दशक में मेलों में जो भीड़ देखने को मिलती थी वो आज देखने को नहीं मिलती, न ही उस तुलना में लोग अपनी दुकानें लगाते हैं. मनोरंजन के साधनों में भी काफ़ी गिरावट देखी जा सकती है. लेकिन फिर भी ग्रामीण परिवेश के लोगों के लिए इस वार्षिक मेले की उतनी ही महत्ता है जितनी 90 के दशक में थी.

फोटो कमलेश जोशी

नानकमत्ता मेले में दुकानें लगाने न सिर्फ स्थानीय व्यापारी आते हैं बल्कि आगरा, बहेड़ी, बरेली, पीलीभीत व निकटवर्ती क्षेत्रों के व्यापारी भी आते हैं. मेला लगाने के लिए भूमि का आवंटन गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी करती है और साथ ही एक “मेला कमेटी” का गठन भी किया जाता है जिसका कार्य मेले को सकुशल क्रियान्वित करना होता है. सुरक्षा के लिए स्थानीय पुलिस व एनसीसी के छात्रों का सहयोग लिया जाता है साथ ही आग की समस्या से निपटने के लिए फ़ायर ब्रिगेड की एक गाड़ी 24 घंटे तत्पर रहती है.

फोटो कमलेश जोशी

नानकमत्ता में मेले का चलन शायद इसी लिए प्रारम्भ हुआ कि धान की फ़सल की कटाई के बाद किसानों को घर की ज़रूरत का सामान ख़रीदने के लिए एक बाज़ार की ज़रूरत थी. ग्रामीण परिवेश में बाज़ार की अनुपलब्धता ने मेले को बढ़ावा दिया और तब से आज तक यह मेला प्रतिवर्ष लोगों की ज़रूरतों की पूर्ति के लिए लगाया जाता रहा है.

फोटो कमलेश जोशी

मेलों में घूमना और लोगों की ज़रूरतों को समझना आपको समाज से रूबरू कराता है. मेले में हर किसी की अपनी प्राथमिकताएँ होती है. कोई सैर-सपाटे के लिए आता है तो कोई घर के लिए ज़रूरी सामान की ख़रीदारी के लिए तो कोई मेलों की हमारी समाज में क्या महत्ता है ये जानने के लिए. कुल मिलाकर मेले आज भी ग्रामीण भारत का अभिन्न अंग हैं जिन्हें हमें संजोये रखना चाहिये.

फोटो कमलेश जोशी

 

नानकमत्ता (ऊधम सिंह नगर) के रहने वाले कमलेश जोशी ने दिल्ली विश्वविद्यालय से राजनीति शास्त्र में स्नातक व भारतीय पर्यटन एवं यात्रा प्रबन्ध संस्थान (IITTM), ग्वालियर से MBA किया है. वर्तमान में हेमवती नंदन बहुगुणा गढ़वाल विश्वविद्यालय के पर्यटन विभाग में शोध छात्र हैं

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Girish Lohani

Recent Posts

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

1 day ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

1 week ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

1 week ago

इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

1 week ago

गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

1 week ago

मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

2 weeks ago