मुनस्यारी में एक छोटा सा गांव है सुरिंग. गांव से कुछ तीन किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पर नंदा देवी का मंदिर है. बचपन में पिताजी हर साल अपने साथ नंदाष्टमी पर सुरिंग ले जाया करते थे.
पिताजी का पूरा बचपन सुरिंग में उनकी बुआ के पास निकला था, बुआ एक छोटे से घर में रहती थी जिसका आंगन खूब बड़ा और दरवाजे बेहद खूबसूरत थे, नंदाष्टमी के दिन सारी रसोई पापड़ के पत्तों और बेसन से बनने वाले पत्युड़ की खुशबू से महकती रहती.
तबीयत से पत्युड़ दबा लेने के बाद हमें इधर-उधर हो जाना होता था, हम बच्चे थे पूजा से ज्यादा मतलब हमें शानदार मटन से रहता था. शाम को गांव से होते हुए नंदा देवी का डोला निकलता, गीत गाते हुए बूढ़े, नाचते हुए नौजवान और कूदते फांदते हुए बच्चे.
आस्था कितनी ख़ूबसूरत चीज है ये मुझे नंदा देवी के उस डोले ने सिखाया. मेरे सारे किस्से, सारी कविताएं ऐसे ही जलसों और जमावड़ों के बीच से निकली है. कई सालों से सुरिंग नहीं गया, नंदा अष्टमी बादस्तुर आ कर निकल जाती है, नंदा का डोला न देख पाने की कमी कभी खली भी नहीं.
न जाने क्यों इस बार अचानक याद आया कि आज शाम भी बच्चे बूढ़े फिर देवी का निशान लेकर घर से मंदिर को निकलेंगे, खड़ी चढ़ाई में एक साथ गाते हुए.
यो बाटा का जानी हुल
सुरा सुरा देवी को मंदिर…
(ये रास्ता कहां जाता होगा
घूम फिर के देवी के मंदिर की ओर)
मुनस्यारी के रहने वाले लवराज कवि और गीतकार हैं. लवराज का पहला कविता संकलन ढुंग्चा साक्ष्य प्रकाशन से प्रकाशित हुआ है. लवराज का यह पोस्ट उनकी फेसबुक वाल से साभार लिया गया है.
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