Featured

नैनीताल ने मुझे मेरी डायरी के सबसे यादगार किस्से दिए

आज जब एक साल बाद नैनीताल आई, तो लगा जो भी यहाँ से लेकर गई हूँ, सारी अच्छी-बुरी यादें, खट्टे-मीठे पल और सब अहसासों का एक सुनहरा अनुभव, उन सब को संजो लेती हूँ, कैद कर लेती हूँ. अपनी छोटी सी दुनिया में. (Nainital Memorable Stories Diary)

‘मेरी दुनिया’ मतलब मेरी डायरी, जो मेरी सबसे अच्छी दोस्त है. खैर, इस के किस्से सुनाने में तो मैं कभी पूरी तरह समर्थ नहीं हो पाऊंगी शायद, पर कोशिश चलती रहेगी हर किस्से को सांझा करने की, बिलकुल इस किस्से की तरह.

हांलाकि, अब यादों को अपने पास रखना बहुत ही आसान हो गया है, हर व्यक्ति अपने फोन में हर जगह की और हर तरह की यादों को समेट लेता है, लेकिन फिर भी मेरा मानना थोड़ा अलग है. मैं जब अपनी पहली खींची हुई तस्वीरें देखती हूँ, तो वो पल मुझे  सिर्फ याद आते हैं, लेकिन जब मैं उन्हें लिख कर के कभी बाद में पढ़ती हूँ, तो मैं उन्हें सिर्फ याद ही नहीं करती, अपितु मैं उन्हें जीती हूँ.

नैनीताल ने मुझे मेरी डायरी के सबसे अच्छे और यादगार किस्से दिए हैं.

चाहे वह पहाड़ों के नज़ारों का रमणीय अनुभव हो या दोस्तों के साथ पहाड़ों पर बैठकर मैगी खाने का रसीला अनुभव या फिर सुकून से ठंडी सड़क में घूमने का शांत अनुभव हो, ये सब अनुभवों का एक पिटारा मुझे नैनीताल से ही मिला है. दरअसल , मैं नैनीताल अपनी ग्रेजुएशन की पढ़ाई के लिए गई थी और मैं पहाड़ों में कभी रही नहीं थी, तो मुझे वहाँ के वातावरण की सुंदरता, रमणीयता, अतुलनीयता का बोध ही नहीं था.

मेरे लिए तो सड़कों के किनारे लगी घास, छोटे- छोटे  पेड़-पौधे,  छत पे थोड़े गमले,  पंखे और एसी की ठंडी हवा ही हरियाली थी.

खेलते हुए बच्चे,  गली में आती गाय-कुत्ते,  सड़कों पर गाड़ियों का शोर,  बारिश के पानी की कीचड़ ही रोजमर्रा जिंदगी थी. घरवालों की बातें, स्कूल-ट्यूशन में होने वाले कॉम्पिटिशन ये सब एक दौड़ थी. एक ऐसी दौड़ जो हर कोई अपनी जिंदगी में लगा रहा है, कहाँ पहुँचने के लिए पता नहीं, बस सब शामिल है उसमें एक दूसरे से आगे निकलने के लिए. मैं भी उसी में शामिल थी.

एक आम इंसान की जिंदगी में यही सब होता है जिसमें कोई बुराई मुझे नजर भी नहीं आती, लेकिन मैंने कभी सोचा नहीं था कि मैं इस तरह से भी जिंदगी को देखूंगी जो मेरा जिंदगी को देखने का नजरिया ही बदल देगा.

शुरुआत में , नैनीताल में थोड़ी परेशानी हुई, लेकिन फिर समय के साथ कुछ ज्यादा बदला तो नहीं, हां लेकिन परेशानियों का स्तर थोड़ा अलग हो गया.

नैनीताल का मौसम मुझे कुछ समझ नहीं आता था. थोड़ी देर में एकदम चिलचिलाती तेज धूप जैसे सूरज दादा बहुत खुशी से हंस रहे हो और अगले ही पल कोहरा. कभी-कभी तो बिन बुलाए बादलों की बारिश. मानो आसमान में सूरज, बादल और बिजली आपस में बहस कर बारी-बारी अपनी व्यथा और दशा को सबके सामने रख रहे हो. वहां का आसमान सिर्फ नीला और आसमानी ही नहीं, सफेद, काला, गुलाबी और बैंगनी भी होता है और भी कुछ ऐसे रंग हैं जिनका नाम बखान करना मेरे लिए मुश्किल है. वहां का आसमान देख कर लगता है यही स्वर्ग है. मुझे नहीं पता स्वर्ग कैसा दिखता होगा, लेकिन जब भी सोचा तो लगा नैनीताल के वातावरण जैसा ही दिखता होगा. उसी मौसम से नैनीताल को, मैं नैनीताल समझती हूँ.

नैनीताल में रहने की बात ही कुछ अलग है. अभी मैं वहां के कॉलेज और स्कूल की बातें नहीं कर रही हूँ, वह सब एक अलग दुनिया  है. उसका वर्णन मुझे निश्चित ही किसी अलग दिशा में ले जाएगा. वह अनुभव भी एक अच्छा अनुभव था जो अकसर मेरी उम्र के लोगों को हुआ ही होगा. मैं उन किस्सों की पात्र कभी नहीं रही लेकिन लिखने का शौक है, तो मस्तिष्क स्वयं ही उस उधेड़ बुन में घुस कर किस्से निकाल ही लाता है.

खैर, नैनीताल का मौसम और वहां के पहाड़ और दीवारों पर लगे सफेद फूल, ये तीनों को मैं अपने विचारों से हटा नहीं सकती. उन सफेद फूलों का नाम तो मुझे आज भी नहीं पता, लेकिन वो मेरे 3 साल के सफर के सबसे अच्छे साथी थे. जब भी कहीं अकेले जाना हुआ तो नैनीताल की सड़कों ने एक हमसफ़र की भूमिका निभाने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी और उस समय मेरे हमसफ़र बने नैनीताल की सड़कों किनारे, दीवारों पर लगे सफेद और गुलाबी छोटे-छोटे फूल.

मैं जब भी कहीं जाती थी, तो कुछ फूलों को साथ तोड़कर ले जाया करती थी और वापस आकर उन्हें अपनी कॉपी किताबों की अलमारी के ऊपर खिड़की के किनारे रख दिया करती थी. वे फूल हमेशा मेरे साथ रहे हैं, चाहे मैं खुद के साथ अकेली थी या अपने दोस्तों के साथ. उन्होंने मेरा साथ मेरे हर अकेलेपन में दिया है. जब मैं अपनी पढ़ाई खत्म करके घर आ रही थी, तो भी मैं उन सूखे हुए फूलों को अपने साथ एक कागज़ में बाँध कर लेकर आई. जब भी मैं उन फूलों को अपने पास रखा देखती थी, एक अपना सा एहसास होता था. साथ ही ये भी याद रहता था कि घर से कहीं दूर रहने पर, कैसे किसी सजीव साथी का मिलना किसी निर्जीव वस्तु से ज्यादा पर्याप्त है. काश इसी तरह मैं उन पहाड़ों को भी अपने साथ ला पाती.

ऊँचे शिखर वाले बड़े-बड़े पहाड़ और उनके बीच से निकलता सूरज. ऐसा प्रतीत होता है जैसे सूर्यदेव स्वयं ही अपने दर्शन देते हों और साथ में चिड़ियों की आवाज़ मानो जैसे संगीत से सुरीले-सुर कानों को मोहित करती हो. वे सुहावने दृश्य तो आज भी मेरी आँखों के सामने बिल्कुल वैसे ही सजीव हैं. ऐसे ही दृश्यों के आनंद लेने लोग टिफिन-टॉप, नैना-पीक, हिमालय दर्शन या कभी-कभी झील के किनारे भी जाया करते हैं.

पास में ही बन नंदा सुनंदा का मंदिर, नैना देवी मंदिर और गुरुद्वारा इन दृश्यों को एक पवित्रिक माहौल देता है.

नैनीताल की ठंडी सड़क और मॉल रोड जो अपने अंदर कई किस्से समेटे हुए हैं, मुझे बहुत याद आती है. बहुत याद आता है बड़ा बाजार से नमकीन वाले दाज्यू के यहाँ से नमकीन लेते हुए हंसी ठिठोली करना और चाइनीज किचन के मोमोज़ का स्वाद. नेगी दाज्यू के यहाँ की दही–जलेबी सब कुछ वाक़इ बहुत याद आता है. इसी तरह, इन सभी यादों को समेटकर ,नैनीताल को मैंने अपने अंदर संजोया हुआ है.

अक्षिता शर्मा रामनगर में रहती हैं और देहरादून से एमसीए की पढ़ाई कर रही हैं. उन्हें अपनी भावनाओं को व्यक्त करना बहुत पसंद है, इसलिए वे चित्रों और लेखन के द्वारा उसे पूरा करती हैं.

हमारे फेसबुक पेज को लाइक करें: Kafal Tree Online

इसे भी पढ़ें: ठेठ स्थानीय शब्द कुमाऊनी की रीढ़ हैं – कुमाऊनी भाषा की विशेषताएं

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Sudhir Kumar

Recent Posts

सर्दियों की दस्तक

उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…

20 hours ago

शेरवुड कॉलेज नैनीताल

शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…

7 days ago

दीप पर्व में रंगोली

कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…

1 week ago

इस बार दो दिन मनाएं दीपावली

शायद यह पहला अवसर होगा जब दीपावली दो दिन मनाई जाएगी. मंगलवार 29 अक्टूबर को…

1 week ago

गुम : रजनीश की कविता

तकलीफ़ तो बहुत हुए थी... तेरे आख़िरी अलविदा के बाद। तकलीफ़ तो बहुत हुए थी,…

1 week ago

मैं जहां-जहां चलूंगा तेरा साया साथ होगा

चाणक्य! डीएसबी राजकीय स्नात्तकोत्तर महाविद्यालय नैनीताल. तल्ली ताल से फांसी गधेरे की चढ़ाई चढ़, चार…

2 weeks ago