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102 बरस का हुआ नैनीताल बैंक

31 जुलाई, 1922 को भारत रत्न पंडित गोविन्द बल्लभ पंत के संरक्षण में कुमाऊँ के प्रतिष्ठित नागरिकों सर्व श्री मथुरा दत्त पांडेय, मोहन लाल साह, परमा साह, अब्दुल क़य्यूम आदि के साथ नैनीताल बैंक की स्थापना की गयी. मथुरा दत्त पाण्डे जी को प्रमुख संस्थापक इस आधार पर माना जा सकता है कि बैंक के प्रारंभिक काल में सभी शाखाओं में उनका फोटो टंगा होता था, अल्मोड़ा शाखा में शायद आज भी उनका चित्र लगा है, जो भी नई शाखा खुलती थी उसमे पाण्डे जी का फोटो प्रधान कार्यालय की ओर से भेजा जाता था.
(Nainital Bank Uttarakhand)

नैनीताल बैंक की स्थापना का मुख्य उद्देश्य था कुमाऊं क्षेत्र का आर्थिक विकास, सामाजिक उत्थान और यहां के नागरिकों को बैंकिंग की सुविधा देना. उस समय अल्मोड़ा में दुर्गा लाल साह मोहन लाल साह बैंकर्स, अंति राम साह बैंकर्स जैसे निजी संस्थान थे जिनमें आभूषण आदि गिरवी रख कर बहुत अधिक ब्याज दर पर ऋण मिलता था और अन्य किसी प्रकार की बैंकिंग सुविधाएं उपलब्ध नहीं थीं.

ऐसे समय में जब बड़े शहरों में भी आम आदमी को बैंकिंग सुविधा मिलना या बैंक तक पहुंच संभव नहीं थी नैनीताल बैंक की स्थापना कुमाऊँ के पर्वतीय क्षेत्र और तराई-भाबर की व्यवसायिक गतिविधियों के संचालन के लिए किसी वरदान से कम नहीं थी. नैनीताल से आरम्भ होकर बैंक अल्मोड़ा, हल्द्वानी, पिथौरागढ़, रानीखेत और रामनगर पहुंचा शाखाएं बहुत कम थी लेकिन बैंक को इन नगरों क़स्बों का प्रथम बैंक होने व आम जनता का अपना बैंक होने का गौरव प्राप्त था.

1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण होने के बाद बैंक को प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा. 1973 में रिज़र्व बैंक ने बैंक ऑफ़ बड़ौदा को नैनीताल बैंक में पूँजी निवेश करने व इसका प्रबंधन करने का निर्देश दिया. तब से बैंक का उच्च-प्रबंधन बैंक ऑफ़ बड़ौदा के हाथ में आ गया.
(Nainital Bank Uttarakhand)

01 जनवरी 1985 को बैंक को ‘A’ क्लास का दर्जा प्राप्त हुआ, इसी समय बैंक की किच्छा शाखा में डकैती की दुखद घटना घटी थी. मैं उस समय बहेड़ी शाखा में नया-नया नियुक्त हुआ था तराई की सभी शाखाओं में उस समय भय का माहौल था. वरिष्ठ लोग उस समय बताते थे कि इससे पूर्व 1951 में रामनगर शाखा में डकैती पड़ी थी जिसके बाद टनकपुर शाखा को बंद कर दिया गया था. इस लम्बी अवधि में बैंक ने कई उतार-चढाव और बदलाव देखे.

कुमाऊं के पर्वतीय क्षेत्रों में जहां उस समय पक्की सड़कें नहीं पहुंच पाई थी वहां नैनीताल बैंक पहुंच चुका था इसका प्रमुख उदाहरण बैंक की पिथौरागढ़ शाखा है जो स्वतंत्रता-प्राप्ति से पूर्व अर्थात 30, जुलाई, 1947 को चिलकोटी भवन सिल्थाम में स्थापित हो चुकी थी उस समय पिथौरागढ़ से अल्मोड़ा या टनकपुर मोटर रोड से नहीं जुड़े थे. अल्मोड़ा ट्रेज़री से पिथौरागढ़ सबट्रेज़री के लिए खज़ाना (रुपया-पैसा) घोड़ों पर लाद कर अल्मोड़ा-झूलाघाट पैदल मार्ग द्वारा पहुंचाया जाता था.
(Nainital Bank Uttarakhand)

06 दिसंबर,1932 को जब अल्मोड़ा शाखा खुली तब अल्मोड़ा, हल्द्वानी-नैनीताल से वाया रानीखेत मोटर रोड से जुड़ चुका था. अपने अल्मोड़ा-कौसानी-चनौदा-बागेश्वर भ्रमण के दौरान महात्मा गाँधी जी का नैनीताल बैंक की अल्मोड़ा शाखा में खाता खोला गया था जो आज भी है (ऐसा बताया जाता है). नैनीताल-हल्द्वानी के साथ पिथौरागढ़-अल्मोड़े की शाखाएं अपना ऐतिहासिक महत्व रखती हैं तब से आज तक बैंक राष्ट्रीय स्तर का बैंक बनकर प्रगति के मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ रहा है.

आज बैंक का 103 वां स्थापना दिवस है अर्थात बैंक की उम्र 102 वर्ष हो चुकी है ,यह एक सौ दो वें वर्ष में प्रवेश कर चुका है और यह बैंक की 102वीं वर्षगांठ है.

मोहम्मद नाज़िम अंसारी

पूर्व बैंक अधिकारी मोहम्मद नाज़िम अंसारी इतिहास की गहरी समझ रखते हैं. यह लेख उनकी फेसबुक वाल से साभार लिया गया है. पिथौरागढ़ के रहने वाले मोहम्मद नाज़िम अंसारी से उनकी ईमेल आईडी mnansari@ymail.com पर संपर्क किया जा सकता है.

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