Read in English: Myth of Shyangse God of Pangu and Purnagiri Mata
भारत के उत्तराखण्ड राज्य के पांगू नामक गांव में श्यांगसै नामक मंदिर है. वह गांव के स्थानीय लोगों के कुल देवता है. चौंदास के पास देवी पूर्णागिरी माता का मंदिर है जो कि मूल रूप से उत्तराखण्ड के दक्षिणी उष्ण मैदानी भाग में स्थित टनकपुर की रहने वाली है. श्यांगसै ब्यांस घाटी में रहने वाले रंग जाति के लोगों के एक प्राचीन देवता है परंतु पूर्णागिरी हिंदुओं की एक प्रसिद्ध देवी है. आखिर पूर्णागिरी आर्द्र प्रदेश से एक पहाड़ी गांव की ओर कैसे पहुंची?
बहुत पहले की बात है, झाड़-फूंक करने वाला एक धामी जो श्यांगसै भगवान का भक्त एवं उनका प्रतिनिधि था, अपने छोटे भाई के साथ टनकपुर जा रहा था. जैसे ही वह भारत व नेपाल के सीमा क्षेत्र से लगे टनकपुर में पहुंचा, उस समय वहां हैजा फैला हुआ था. यह उन दिनों की बात है जब हिमालय के तलहटी इलाकों में हैजा व चेचक का बहुत प्रकोप था एवं जिसने हजारों लोगों को मार दिया था एवं गांव के समस्त परिवारों को नष्ट कर दिया था.
यात्रा पर आए दोनों भाइयों ने सोचा, ‘यदि हम टनकपुर में रुकेंगे तो अवश्य ही मारे जायंगे.’ अतः उन्होंने अत्यंत तीव्रता से चौंदास प्रस्थान करने का निर्णय लिया और वहां के लिए रवाना हो लिए. कहीं न कहीं वे इस बात से भयभीत थे कि कहीं उन लोगों के माध्यम से हैजा उनके गांव में भी न फेल जाए और उनके परिवरों व मित्रों को बीमार कर दे. पीपीह्या और राख के धलंग की कथा
परंतु छोटे भाई के शरीर में अनदेखे रोगाणु पहले ही प्रविष्ट हो चुके थे. वह तेज-तेज चलने का प्रयास कर रहा था परंतु शीघ्र ही वह अपने भाई से पिछड़ गया. बड़ा भाई, जो कि भगवान का धामी था, उसने अपने भाई की ओर देखा और उसे समझते देर ना लगी कि उसके भाई को हैजा ने ग्रस लिया है एवं जिससे उसकी मृत्यु भी हो सकती है.
बीमार छोटे भाई ने कहा, ‘भैया! इतनी जल्दी-जल्दी मत चलो, मैं अभी भी चल पाने में समर्थ हूं और यदि तुम मेरे लिए गरम पानी ला सको तो मैं जल्दी घर भी पहुंच जाऊंगा.
बड़े भाई ने कहा, ‘तुम्हारी मृत्यु बहुत नजदीक है. मैं नहीं चाहता कि ये बीमारी मुझे भी पकड़ ले. आखिर किसी को तो भाग के गांव जाकर ये सूचना देनी होगी एवं सबको चेताना होगा’ और ऐसा कहते हुए अपनी बीमार भाई को सड़क के किनारे यूं ही पड़ा छोड़कर वह शीघ्रतापूर्वक वहां से चला गया.
बीमार भाई ने सोचा, ‘मेरा भाई मुझे यहां मरणासन्न अवस्था में छोड़ कर चला गया परंतु यदि वह हैजा से बचकर निश्चित समय पर पहुंच जाएगा तो कई लोगों की जान बच जाएगी. अतः परिस्थिति को सोचे-समझे बिना किसी भी अच्छे-बुरे निर्णय पर पहुंचना अभी ठीक नहीं होगा.
चौंदास पहुंचने के बाद उस धामी ने अपने भाई के साथ हुई घटना का सबके सामने ज्यों का त्यों उल्लेख कर दिया. ये सुनते ही गांव वाले फुर्ती के साथ हैजा से बचने के उपायों में लग गए जैसे कि अपनी पीने के पानी को उबालना और हैजा ग्रसित किसी भी गांव के व्यक्ति को अपने गांव आने से रोकना. फलस्वरूप कोई भी बीमार नहीं पड़ा और किसी की भी मृत्यु नहीं हुई.
परंतु चौंदास गांव के लोगों को अभी भी यह आशा थी कि धामी का वह बीमार भाई लौट के वापस आ जाएगा. कई हफ्ते पश्चात भी जब वह नहीं लौटा से उन लोगों ने सोचा कि वह जीवित नहीं है और उसकी आत्मा को शांति मिले इसके लिए उसका अंतिम संस्कार कर देना चाहिए. अतः अत्यंत दुख के साथ वे उसके अंतिम संस्कार के लिए तैयारी करने लगे ताकि ऐसा करके वे उसके जीवित होने की सारी आशाओं से मुक्ति पाकर अपना जीवन शांतिपूर्ण जी सकें.
परंतु इससे पहले कि गांव वाले अंतिम संस्कार की विधि प्रारम्भ कर पाते, श्यांगसै देवता धामी के शरीर में प्रविष्ट हो गए और उन्हेांने गांव वालों को बताया कि वह आदमी अभी भी टनकपुर में ही है और जीवित है. उसकी आत्मा अभी मुक्त नहीं हुई है.
टनकपुर से चौंदास के बीच के रास्ते में जहां उसका भाई उसे बिना किसी के सहारे छोड़ कर आया था, वहां वह मरणासन्न अवस्था में पड़ा था. जब वह जीवन और मृत्यु के बीच में झूल रहा था तब एक भटकता हुआ योगी वहां आया एवं उस मरणासन्न व्यक्ति के पास गया. उसके हाथ में दो चिमटे थे जो कि साधू-सन्यासियों के भजन कीर्तन करने के लिए एक सहायक सांगीतिक उपकरण होता है एवं जिससे उन्हें अलाव को समेटने में सहायता मिलती है. उन दो चिमटों में से एक स्वर्ण का था और दूसरा लोहे का.
वह योगी उस बीमार आदमी के पास दुबक कर बैठ गया और एक-बार उसे अपने स्वर्ण वाले चिमटे से और लोहे वाले चिमटे से छुआ. उसने उस बीमार व्यक्ति से पूछा, ‘तुम इनमें से कौन सा चिमटा लेना पसंद करोगे?’
बीमार व्यक्ति ने सोचा, ‘मैं हैजा से ग्रसित हूं. यदि मैं सोने का चिमटा लूंगा तो संभव है मैं स्वर्ण का लालच रखने वाले डाकुओं द्वारा लूटा जाऊं. यदि में जीवित बच जाता हूं और चौंदास वापस लौट जाता हूं तो हो सकता है कोई मुझ पर आक्रमण कर ले और मैं मारा जाऊं.’ अतः उसने योगी से कहा, ‘मैं लोहे वाला चिमटा लूंगा.’
बीमार व्यक्ति को वह लोहे का चिमटा देकर फौरन ही वह योगी वहां से गायब हो गया. ‘क्या मैं कोई स्वप्न देख रहा हूं?’ बीमार व्यक्ति ने सोचा परंतु लोहे के चिमटे को अपने बगल में देख उसे भरोसा हो गया कि वह सपना नहीं देख रहा था. बीमार होने के कारण उसे नींद के झोंके आ रहे थे जिस कारण वह वास्तविकता और स्वप्न में भेद नहीं कर पा रहा था.
तुभी उसे एक बच्चे की आवाज सुनाई दी. उस बच्चे ने पूछा, क्या तुम ठीक हो?’
वहां पहाड़ों में रहने वाली एक छोटी बच्ची थी जिसने तिब्बती कपड़े पहने हुए थे. बीमार व्यक्ति ने उसे उत्तर देने का प्रयास किया परंतु हैजा के कारण वह अत्याधिक कमजोर हो गया था और कुछ भी बोल पाने में असमर्थ था. यह देख वह बच्ची तेजी से दौड़ती हुई गयी और अपने मां-बाप को बुलाकर लायी जो उस बीमार को उठा कर अपने तंबू में ले गए एवं उसके स्वस्थ होने तक उसकी सेवा की.
जब धामी का वह छोटा भाई इतना स्वस्थ हो गया कि अपने गांव चौंदास वापस जा सके, तब मां पूर्णागिरी ने उसे अपना धामी नियुक्त किया ताकि वह चौंदास की यात्रा कर सके. साधु के वेष में आना और उस बीमार के आगे स्वर्ण व लोहे के चिमटों का प्रस्ताव रखना क्या यह मां पूर्णागिरी की ही एक योजना थी ताकि वे उस बीमार व्यक्ति को परख सकें या फिर वो यम थे जो उसे जीवन और मृत्यु में से किसी एक को चुनने के लिए अवसर दे रहे थे या फिर मां पूर्णागिरी न ही उसको अपना धामी चुनने के लिए उन तिब्बती लोग व उनके तंबू के माध्यम से यह भ्रमजाल रचा था? हो सकता है उस बच्ची के रूप में मां पूर्णागिरी स्वंय ही प्रकट हुई थी.
मां पूर्णागिरी और उनका धामी चौंदास गांव पहुंच तो गए परंतु धामी के बड़े भाई के शरीर में प्रविष्ट श्यांगसै देव जो कि वहां के प्रमुख एवं सर्वप्रधान देव थे, उनको अपने गांव में नयी देवी का आगमन अच्छा नहीं लगा और उन्होंने मां पूर्णागिरी को वहां से चले जाने को कहा.
पूर्णागिरी ने अपने धामी के माध्यम से श्यांगसै देव के धामी को कहा, ‘मैं एक देवी हूं और मुझे कोई डरा धमका नहीं सकता.’
उन दोनों देवी देवता ने इस मानुषिक संसार में अपनी श्रेष्ठता साबित करने के लिए युद्ध करने का निर्णय किया. गांव के लोगों के सामने चमत्कारों का प्रदर्शन करते हुए एक धामी दूसरे धामी पर प्रहार करने लगा.
मां पूर्णागिरी ने एक बड़े घराट के पत्थर को उठाकर उससे अपने छाती पर जोर से चोट की ओर वह पत्थर टुकड़े-टुकड़े हो गया. श्यांगसै देव ने अपने शक्ति दिखाने के लिए किसी बड़े पत्थर को नहीं उठाया अपितु अपनी मुट्ठी में चावल के दानों को भरकर उसे इस तरह से फेंका जो किसी आम मनुष्य के बस बात नहीं है केवल एक देवता ही ऐसा चमत्कार कर पाने में समर्थ होता है. दोनों देवों ने एक दूसरे से अधिक शक्तिशाली होने के प्रमाण के लिए आपसी संग्राम जारी रखा और अंततः श्यांगसै देव ने पूर्णागिरी के आगे अपनी हार स्वीकार कर ली. समतल प्रदेश की देवी ने पहाड़ों के देवता को पराजित कर दिया था अतः मां पूर्णागिरी का मंदिर बनाया गया परंतु श्यांग्से देव के मन में अभी भी देवी के लिए द्वेष भाव ही था.
उन्हीं दिनों पहाड़ों में अचानक तेजी से हैजा फेलने लगा था. उसने सम्पूर्ण गांव को अपनी चपेट में ले लिया और पूरा गांव नष्ट हो गया. घबरा कर गांव के लोग अपने-अपने पैतृक भूमि की ओर प्रस्थान करने लगे थे परंतु मां पूर्णागिरी का धामी स्वयं हैजा से सुरक्षित जीवित बच गया था अतः लोगों ने उस पर आस लगा रखी थी कि वह इस कष्टदायक परिस्थिति का कुछ हल निकालेगा.
वे उसके आगे पुकार करने लगे, ‘हे मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाले मां पूर्णागिरी के धामी! हमारी रक्षा करो!’ नवयुवक धामी ने अपनी देवी से गांव वालों की रक्षा की गुहार लगाई और मां पूर्णागिरी ने उसके मस्तिष्क में प्रकट होते हुए कहा, ‘चिंता मत करो और मेरे निर्देश का पालन करो. एक ज्वाला प्रज्वलित करो और उसमें जौ, तिल व घी अर्पित करो.’
गांव वालों ने मां पूर्णागिरी के बताए अनुसार वैसा ही किया और अनुष्ठान का धुआं पूरे पांगू गांव में फैल गया और लोग हैजा के प्रभाव से सुरक्षित बच गए. मां पूर्णागिरी का चारों ओर गुणगान होने लगा. देवी की सब शक्तियों को देखकर श्यांगसै देव ने उन्हें अपनी बहन बना लिया. तब से लेकर चौंदास में मां पूर्णागिरी की पूजा की जाती है और एक ही प्रदेश में पहाड़ों के देव एवं मैदानी क्षेत्र की देवी एक साथ बसते हैं.
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अंग्रेजी में पुनर्प्रस्तुति: प्रवीण अधिकारी
हिंदी अनुवाद: चंद्रेशा पाण्डेय
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