इसी साल बरसात के मौसम की बात है मुनस्यारी को जाने वाली सड़कें पूरे दस दिनों तक बंद थी. आप और हमारे लिये जो जीवन कठिन होता है वह मुनस्यारी के लिये दैनिक जीवन है. हर एक साल बरसात में मुनस्यारी में नुकसान होता है. इसके बावजूद मुनस्यारी में रहने वाले लोग विश्व के सबसे खुशमिजाज लोगों में से हैं उनके इस जिन्दादिल स्वभाव की मिशाल हैं तीन युवा – लवराज टोलिया, नवल निखुर्पा, नवल निखुर्पा जूनियर.
लवराज बैंक में नौकरी करते हैं और नवल निखुर्पा व नवल निखुर्पा जूनियर अभी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं. मुनस्यारी के पास स्थित एक छोटा सा गांव है नानासेम. तीनों युवा नानासेम गांव के हैं. जो अभी अपने – अपने घरों से हजारों किमी की दूरी पर रह रहे हैं. इन तीन युवाओं ने 2014-15 में एक बैण्ड बनाया जिसका नाम रखा ‘परिक्रमा’.
आने वाली 25 दिसम्बर को इन तीनों युवाओं की मेहनत ‘बूंद’ रिलीज होने जा रही है. ‘बूंद’ गाने को पांडवाज अपने यू-टूयूब चैनल पर जारी कर रहा है. पिछले कुछ सालों में उत्तराखण्ड में संगीत के क्षेत्र में पांडवाज ने अपनी एक अलग पहचान बनायी है.
‘बूंद’ प्रोजेक्ट के विषय में लवराज टोलिया से एक खास बातचीत –
लवराज हमें अपने ग्रुप ‘परिक्रमा ‘ के बारे में कुछ बताइये?
हम लोग बहुत छोटी सी टीम हैं. नवल निखुर्पा के जिम्मे गायन है, नवल निखुर्पा जूनियर उन्हें कम्पोज करते हैं, मैं गाने लिखता हूँ. इसके अलावा मैनेजमेंट मेरे हिस्से में है.
आप लोगों ने अपने ग्रुप का नाम ‘परिक्रमा’ क्यों रखा?
एक बड़ा खूबसूरत सा सर्कल था हमारे पहाड़ों में. जिसमें हर पीढ़ी अपनी आने वाली पीढ़ी को लोकगीतों की विरासत सौंपती थी. नई पीढ़ी उन लोकगीतों को सहेजती थी उन्हें जिंदा रखती थी. लेकिन अभी अगर आप पिछले 10 साल उठा कर देखेँगे तो कहीं न कहीं उस सर्कल में एक ब्लाक सा आ गया है. नई पीढ़ी हमारी भाषा के गीतों को नही सुन रही. उस ब्लाक को हटाने के लिये हम लोग कोशिश कर रहे हैं. हम चाहते हैं कि उस सर्कल को फिर से शुरू करने के लिये हमारे गीत एक माध्यम बने. परिक्रमा नाम उसी सपने का एक प्रतीक है.
आपका संगीत की ओर रुझान किस तरह हुआ?
संगीत मेरे जीन्स में तो बिल्कुल भी नही रहा है. लेकिन नवल और नवल जूनियर जो कि चचेरे भाई भी हैं उनके परिवार में बहुत से लोग है जो अच्छा गाते रहे है. उनमें शायद ये चीज वही से आई है. हम तीनों साथ मे बड़े हुए हैं और मुन्स्यारी में हमारी जिंदगी का एक बहुत बड़ा हिस्सा साथ मे गुजरा है. उन दोनों को था संगीत का शौक. मैं क्योंकि उन्हें सुनता था शायद इसलिये कहीं अवचेतन में कभी सँगीत के लिये रुझान पैदा हुआ. कवितायें लिखने का शौक हमेशा से रहा है और उसी समय कभी गुलजार को पढा तो सोच लिया कि यही काम करना है गाने लिखने है!
‘बूँद’ के बारे में हमें कुछ बताइये?
‘बूँद’ हमारी अपनी जमीन से जुड़ी वो बहुत बारीक-बारीक सी चीजें हैं जिनकी कमी हमें तब महसूस नहीं होती जब हम उनके नजदीक होते हैं. मगर जैसे ही हमारा भौगोलिक या सामाजिक परिवेश बदलता है तो वही चीजें हमें रह-रह के याद आने लगती है! उदाहरण के लिये पंचाचूली के जिस गोल्डन व्यू को देखने सैलानी हजारों किलोमीटर दूर से मुन्स्यारी आते हैं वह हमारे लिये किसी समय में बड़ी मामूली सी चीज हुआ करती थी. यही वो चीजें हैं जिन्हें ले कर हमने एक नोस्टाल्जिया क्रिएट करने की कोशिश की है.
आपने अपने इस संगीत प्रोजेक्ट का नाम ‘बूँद’ क्यों रखा?
कुछ बूंदे है यादों की जो हमने इकट्ठा की हैं. इसलिए बूँद से बेहतर कोई नाम नहीं सोच पाये.
इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में आपने किन चुनौतियों का सामना किया?
चुनौतियां बहुत से रही हैं. प्रोजेक्ट में सब से बड़ी चुनौती तो खैर गीत पूरा करने की ही थी क्योंकि जो पहला ड्राप्ट बना था उसी ने यह तय कर दिया था कि इस प्रोजेक्ट में कहीं भी कोई कमी नहीं छोड़ सकते अपनी सीमाओं से जूझना या अपना सर्वश्रेष्ठ बाहर निकाल पाना भी अपने आप में एक चुनौती ही है. सिर्फ गीत बना कर वोकल्स रिकॉर्ड करने में ही हमें एक साल लग गया. ईशान डोभाल भाई को संगीत डिजायन करने में तीन महीने लगे. आर्थिक चुनौतियां भी आती है स्पेशली तब जब आप लीक से हट कर कुछ करने जाते हैं. मगर ठीक है. हमारा मानना है कि चीजें आसान हो जायें तो उसमें कोई मजा भी नहीं है.
इस प्रोजेक्ट में पांडवाज की क्या भूमिका रही है?
पांडवाज के चैनल से गीत रिलीज होगा और संगीत भी ईशान भाई ने ही दिया है जो पांडवाज के संगीत निर्देशक और टीम हेड हैं. उनकी बहुत बड़ी भागीदारी रही है काफी सारी चीजें थी जो हमारे लिये नई थी. जिसमें उनका अनुभव बहुत काम आया. संगीत जो इस प्रोजेक्ट का है उसमें ईशान भाई ने बहुत मेहनत की है. लोग सुनेंगे तो उन्हें पता चलेगा कि कितनी बारीक चीजें उन्होंने की है.
आपने पहाड़ी संगीत को ही क्यों चुना ?
आज हम लोकगीतों के मरने की बात कर रहे हैं. मगर बुनियादी रूप से हम देखेँगे तो पायेंगे कि वो जो गीत आज लोगों तक जा रहे हैं उनमें गायन भी खत्म हो चुका है. सुनने वालों के लिये हमारे लोकगीतों का पहली धारणा यही गीत बनाते हैं. ऐसे में हमारे वो बहुत खूबसूरत लोकगीत जो आज भी शकुन के मौकों पर या जागरों में गाये जाते हैं लोगों तक पहुंच नहीं पा रहे. अगर हम उन गीतों को कही हिमांचल प्रदेश या आसाम के लोकगीतों के बराबर ला कर खड़ा कर पाये तो लोग जिज्ञासावश हमारी जमीन का लोकसंगीत भी जरूर सुनेंगे.
आपका अगला प्रोजेक्ट क्या है?
इसके बाद हम लोग राजुला मालूशाही पर काम कर रहे हैं. इसका एक बहुत छोटा सा संवाद हमने उठाया है. जहां मालूशाही अपने पिता दुलाशाही से राजुला का हाथ माँग देने की गुजारिश करता है उसी संवाद को हम लोग रिक्रिएट कर रहे हैं.
परिक्रमा के सदस्य नवल निखुर्पा और नवल निखुर्पा जूनियर की आवाज में पांडवाज का गाया गीत सकुना दे यहां सुने.
– काफल ट्री डेस्क
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
लम्बी बीमारी के बाद हरिप्रिया गहतोड़ी का 75 वर्ष की आयु में निधन हो गया.…
इगास पर्व पर उपरोक्त गढ़वाली लोकगीत गाते हुए, भैलों खेलते, गोल-घेरे में घूमते हुए स्त्री और …
तस्वीरें बोलती हैं... तस्वीरें कुछ छिपाती नहीं, वे जैसी होती हैं वैसी ही दिखती हैं.…
उत्तराखंड, जिसे अक्सर "देवभूमि" के नाम से जाना जाता है, अपने पहाड़ी परिदृश्यों, घने जंगलों,…
शेरवुड कॉलेज, भारत में अंग्रेजों द्वारा स्थापित किए गए पहले आवासीय विद्यालयों में से एक…
कभी गौर से देखना, दीप पर्व के ज्योत्सनालोक में सबसे सुंदर तस्वीर रंगोली बनाती हुई एक…