Featured

अल्बानियाई जड़ों से कलकत्ते आई थी मदर

वर्ष 1910 में आज के दिन जन्मीं मदर टेरेसा को 1979 में नोबेल शान्ति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. युगोस्लाविया के स्कोप्ये नगर में जन्मीं मदर टेरेसा का वास्तविक नाम एग्नेस गोंक्सा बोयाक्स्यू था. उनके माता-पिता अल्बानियाई मूल के दुकानदार थे और उनके जन्म के समय स्कोप्ये में रहते थे जो ओटोमन साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था. (Mother Teresa had Albanian Roots)

उन्होंने स्कोप्ये के एक पब्लिक स्कूल में शुरुआती पढ़ाई की और छात्र जीवन से ही धार्मिक कार्यों में दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी. बारह वर्ष की आयु में उनके मन में निर्धन लोगों की सेवा करने का जज्बा पूरी तरह जागृत हो चुका था. (Mother Teresa had Albanian Roots)

स्कूली जीवन में उनकी यह भावना तब और प्रबल हुई जब उन्होंने युगोस्लाविया के एक पादरी द्वारा बंगाल में किये जा रहे असाधारण मिशनरी काम की जानकारी मिली. जब वे अठारह साल की हुईं उन्होंने अपना घर त्याग दिया और आयरलैंड में भिक्षुणियों की संस्था सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो में शामिल हो गईं. सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो का एक मिशन कलकत्ता में भी था. उन्होंने अपनी पहली ट्रेनिंग डब्लिन में ली जिसके बाद उन्हें दार्जिलिंग भेजा गया जहां उन्होंने 1928 में अपना जीवन गरीबों को समर्पित करने का आधिकारिक प्रण लिया. इस प्रण पर अंतिम मोहर वर्ष 1938 में लगाई गयी.

मदर टेरेसा को शुरुआत में बच्चों को पढ़ाने का काम मिला. इस सिलसिले में वे अंततः कलकत्ते के एक हाईस्कूल में प्रिंसिपल बनीं. हालांकि उनका स्कूल एक झोपड़पट्टी के जन्दीक था, वहां पढ़ने वाले अधिकतर बच्चे संपन्न घरों से थे. 1946 में मदर टेरेसा को कुछ अलग सा अनुभव हुआ जिसके बाद उन्होंने कॉन्वेंट का जीवन छोड़कर सीधे गरीबों के साथ रहने के बारे में विचार करना शुरू किया.

1948 में उन्हें वेटिकन से सीधी इजाजत मिल गयी कि वे सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो को छोड़कर नया काम शुरू कर सकती हैं. इस काम के लिए उन्हें कलकत्ते के आर्चबिशप से निर्देशन लेना था.

इसके बाद जो हुआ वह अब इतिहास बन चुका है. उनके द्वारा शुरू की गयी संस्था जिसमें शुरुआत में करीब दर्जन भर लोग थे, आज दुनिया में सबसे अधिक परोपकारी संस्थाओं में से एक बन चुकी है जिसमें तकरीबन पांच हज़ार से अधिक सिस्टर्स और ब्रदर्स निस्वार्थ काम कर रहे हैं.

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

1886 की गर्मियों में बरेली से नैनीताल की यात्रा: खेतों से स्वर्ग तक

(1906 में छपी सी. डब्लू. मरफ़ी की किताब ‘अ गाइड टू नैनीताल एंड कुमाऊं’ में…

37 minutes ago

बहुत कठिन है डगर पनघट की

पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…

21 hours ago

गढ़वाल-कुमाऊं के रिश्तों में मिठास घोलती उत्तराखंडी फिल्म ‘गढ़-कुमौं’

आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…

21 hours ago

गढ़वाल और प्रथम विश्वयुद्ध: संवेदना से भरपूर शौर्यगाथा

“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…

6 days ago

साधो ! देखो ये जग बौराना

पिछली कड़ी : उसके इशारे मुझको यहां ले आये मोहन निवास में अपने कागजातों के…

1 week ago

कफ़न चोर: धर्मवीर भारती की लघुकथा

सकीना की बुख़ार से जलती हुई पलकों पर एक आंसू चू पड़ा. (Kafan Chor Hindi Story…

1 week ago