थोड़ा-सा अटपटा तो लग सकता है, पर सच यही है कि हम अपनी मर्जी से ही दुखी होते हैं. कोई हमें दुखी होने को कहता नहीं. और असल में दुखी होने की कोई वजह भी नहीं होती, क्योंकि दुख तो आपके सोचने के ढंग पर निर्भर करता है. आपसे कुछ अलग तरह से सोचने वाले व्यक्ति को अगर हूबहू आपकी ही तरह की जीवन-स्थितियों में डाल दिया जाए, तो संभव है कि जीवन के प्रति अपने अलग नजरिए के कारण वह दुखी होने की बजाय ज्यादा खुश हो जाए. सारा खेल ही जीवन के प्रति हमारे नजरिए का है. श्रीकृष्ण ने इस जगत की तमाम गतिविधियों को अपनी लीला बताया. अगर हम सिर्फ इसी बात को सत्य के रूप में स्वीकार कर लें, तो इसी के साथ सारे दुख भी खत्म हो जाने चाहिए, क्योंकि जब सब प्रभु की लीला ही है, तो दुख कैसा. प्रभु की इच्छा जानकर हमें हर बात के लिए खुश ही होना चाहिए. Mind Fit Column by Sundar Chand Thakur
लीला के इस सिद्धांत से अगर बाहर भी निकल आएं और सिर्फ अपनी मामूली तर्क बुद्धि का इस्तेमाल करें, तो भी हम पाएंगे कि रोजमर्रा के जीवन में जिन बातों को लेकर हम दुखी होते हैं, उनसे दुखी नहीं भी हो सकते, बशर्ते कि चीजों को देखने के प्रति हमारा नजरिया बदल जाए. मसलन हमारी यह आदत बन गई है कि हम हर चीज को वक्त के परिमाण में मापते हुए जीते हैं और इस वजह से गाहे-बगाहे दुखी होते रहते हैं. पूरी दुनिया में यह प्रचलन है कि हम अपने जन्मदिन पर खुशी मनाते हैं. लेकिन सोचिए कि कोई अगर जीवन को हमेशा समय के हिसाब से नापें, तो हर जन्मदिन को वह अपने जीवन के एक साल कम होने के रूप में देखेगा और उसका मातम मनाएगा. Mind Fit Column by Sundar Chand Thakur
अक्सर देखा यह गया है कि जब भी हम शारीरिक स्तर पर सुकून पाने की स्थिति में होते हैं, किसी पेड़ की ठंडी छांव में बैठे हों या बाहर की लू से दूर शीशे की खिड़कियों के दूसरी ओर एसी की ठंडी हवा में लेटे हों, तो हम अपनी स्थिति का आनंद लेने की बजाय ऐसा कुछ सोचने लगते हैं कि हमारे अस्तित्व के बोध में दुख जमा होने लगता है. संभवत: हमें अगर पेड़ की ठंडी हवा या एसी का सुकून भरा माहौल नसीब नहीं होता और हमें गरमी सहते हुए शारीरिक तकलीफ से भरा कोई कार्य करना पड़ रहा होता, तो हमारा सारा ध्यान उस तकलीफ पर रहता, पर हम दुखी नहीं होते. दुख असल में सोचने से जन्म लेता है और शारीरिक सुकून हमें सोचने की मोहलत देता है. इस तरह देखा जाए, तो दुखी होना एक लग्जरी है. बुद्ध जीवनभर अपनी सांस पर ध्यान देने को बोलते रहे, क्योंकि इतने भर से हम अपने सारे दुखों से मुक्त हो सकते हैं. क्योंकि हम एक समय पर एक ही चीज पर ध्यान दे सकते हैं. अगर सांस पर ध्यान देना है, तो हम उसके साथ-साथ सोचना भी जारी नहीं रख सकते. सोचेंगे नहीं, तो दुख कैसे होगा. Mind Fit Column by Sundar Chand Thakur
आप अपनी कार में सुकून से बैठे होते हैं और तभी बगल में आपकी कार से कहीं कीमती, कहीं ज्यादा सुंदर कार बगल में आकर खड़ी हो जाती है. आप सोच की एक जरा-सी करवट लेते हैं और अपनी कार में बैठे होने की बजाय आपके दिल में दूसरे जैसी बड़ी और सुंदर कार न ले पाने का दुख घर कर जाता है. अपेक्षा करके भी आपको बड़ा दुख मिल सकता है. आपने कुछ नहीं करना. बबूल के पेड़ से आम की अपेक्षा करो और दुखी हो जाओ. पत्थर से पानी की अपेक्षा करो और दुखी हो जाओ. अमीर शहजादी से एक गरीब टपोरी प्रेम की अपेक्षा करके दुखी हो सकता है. पढ़ाई मत करो, परीक्षाएं खराब देकर आओ और अच्छे अंकों से पास होने की अपेक्षा करो. दुखी होने की इतनी वजहें हैं कि आप चाहें, तो हर सांस पर दुखी हो सकते हैं.
जीवन में कुछ दुख बहुत स्वाभाविक हैं, उन्हें स्वीकार ही किया जाना चाहिए. किसी प्रियजन की आकस्मिक मृत्यु पर हम खुद को दुखी होने से नहीं रोक सकते. लेकिन परेशानी यह है कि दुखी होना हमारे स्वभाव में आ रहा है, क्योंकि हम समय को लेकर सोचने, तुलना और अपेक्षा करने की अपनी आदत से निकल नहीं पाते. दुखी होने के लिए सोचना अनिवार्य है. बिना सोचे दुख नहीं होता. लेकिन यह भी है कि हम क्या सोचते हैं, इसके लिए कोई दूसरा हमें मजबूर नहीं कर सकता. मृत्यु को भी हम इस जगत का शाश्वत सत्य मानते हुए उसे सत्य के रूप में ही स्वीकार कर दुखी होने से इनकार कर सकते हैं. वैसे मसला कोई भी हो, अगर आप दुखी होने से बचना चाहते हैं, तो हमारे पास एक उपाय तो हमेशा उपलब्ध रहता है. हम सिर्फ एक नजर अपने से ज्यादा दुखी लोगों पर डाल लें. हम संसार में सबसे ज्यादा दुखी कभी नहीं हो सकते. वह एक गीत के बोल भी हैं ना – लोगों का गम देखा, तो मैं अपना गम भूल गया…. Mind Fit Column by Sundar Chand Thakur
शायद इस तरह आप अपना दुख भी भूल जाएं.
लेखक अपने यूट्यूब चैनल MindFit के जरिए युवाओं में शारीरिक व मानसिक फिटनेस को लेकर जागरूकता फैला रहे हैं.
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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