सोचो कि अगर किसी अनपढ़ को आई फोन का लेटेस्ट वर्जन आई 12 पकड़ा दिया जाए, तो वह क्या करेगा? वह उसके कुछ-कुछ फीचर यूज करेगा. जिस फीचर का वह अभ्यस्त हो जाएगा, उसे ज्यादा यूज करेगा. जैसे कि वह उसका बातचीत करने के लिए फोन के रूप में तो जरूर इस्तेमाल करेगा. वह तो सबसे बुनियादी फीचर होता है किसी भी आईफोन का. अगर उसे उसमें कोई गेम मिल जाए और बाई चांस वह गेम खेलना उसे आता हो, तो वह पहली फुर्सत मिलते ही उस गेम को खोलकर बैठ जाएगा. लेकिन उसे इसका कोई अंदाजा नहीं रहेगा कि आईफोन में विडियो एडिटिंग का जबर्दस्त फीचर भी है. उसके जरिए आप पत्र-व्यवहार समेत विडियो-कॉन्फ्रेंसिंग, स्लाइड शो, फोटो एडिटिंग, टिकट बुकिंग, गूगल सर्च, ऑनलाइन शॉपिंग, शेयरिंग, संगीत सीखने, गाने-बजाने, दौड़ने, खाने-पीने और न जाने कितनी दूसरी चीजों के ऐप डाउनलोड करके चौबीसों घंटे अपने जीवन की किसी भी जरूरत के लिए उसका कुछ न कुछ इस्तेमाल करते रह सकते हैं.
(Mind Fit 23 Column)
जैसे किसी अनपढ़ के हाथ में आईफोन का लेटेस्ट वर्जन आना है, लगभग वैसा ही हमारे हाथ इस मनुष्य शरीर का आना है. इस शरीर में प्रकृति ने या कहें कि ईश्वर ने एक से बढ़कर एक क्षमताओं वाले फीचर डाले हुए हैं. उन फीचर्स का इस्तेमाल करके आप क्या नहीं कर सकते. गौतम बुद्ध ने इसी शरीर में उपलब्ध ऐसे ही कुछ फीचरों का इस्तेमाल कर परम ज्ञान पा लिया. स्वामी विवेकानंद को देखें. वह वेदांत दर्शन के मास्टर बने. गांधी जी ने बिना खड्ग-ढाल के ही हमें आजादी दिलवा दी. स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हजारों दूसरे नेताओं के कारनामे कम न थे.
उन वैज्ञानिकों के बारे में सोचें, जिन्होंने अपने आविष्कारों के जरिए दुनिया को वहां तक पहुंचाया, जहां वह आज है. उन खिलाड़ियों को देखिए, जिन्होंने मानव शरीर की क्षमताओं को हैरान करने वाली ऊंचाई पर ला खड़ा कर दिया. हैरान होने का यह सिलसिला आगे भी चलता रहेगा. दुनिया में कैसे-कैसे दार्शनिक, चित्रकार, संगीतकार, समाज सेवक और दूरदर्शी राजनेता हुए हैं. सबने अपने-अपने तरीके से प्रकृति द्वारा हमें इस शरीर के भीतर उपलब्ध करवाए गए एक से बढ़कर एक फीचर का इस्तेमाल किया और कारनामों की झड़ी लग गई. लेकिन जिसे इन फीचर्स के बारे में नहीं पता, वह ठीक उस व्यक्ति की तरह जो कि आईफोन का इस्तेमाल सामान्य फोन की तरह करता है, शरीर का उपयोग भी बस खाने-पीने और इंद्रियों का सतही सुख भोगने के लिए करेगा.
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शरीर का उपयोग भोग तक ही सीमित रखना वैसा ही है, जैसे आईफोन का इस्तेमाल गेम खेलने के लिए करना. कौन बताए कि दिमाग इसी शरीर का एक हिस्सा है, जिसे कोई साध ले, तो कैसे-कैसे करिश्मे कर सकता है. रोटी, कपड़ा, मकान और एक अच्छी नौकरी तो बहुत छोटी बात है. लेकिन दिमाग सधेगा कैसे? आधी ऊर्जा तो खराब पेट को ठीक करने में चली जाती है. पेट खराब, तो दिमाग खराब. पेट खराब होता है, क्योंकि यह पता ही नहीं कि शरीर के ठीक से काम करने के लिए उसे कितने भोजन की जरूरत है.
सवाल सिर्फ भोजन की मात्रा का ही नहीं. उसके प्रकार का भी है. अब अगर तामसिक भोजन करेंगे, पेट को गले तक भर देंगे, तो दिमाग कहां से सधेगा. मनोरंजन के लिए भोग तक ही क्यों सीमित रहा जाए. कौन बताए उन्हें कि ध्यान में बैठने से भी मनोरंजन होता है. सुबह पांच किलोमीटर की दौड़ लगाने से भी शरीर में खुशी के कैमिकल्स रिलीज होते हैं. हम जो बार-बार यह बोलते रहते हैं कि आज मूड बहुत अच्छा है, आज मूड बहुत खराब है, वह मूड इन्हीं कैमिकल्स से संचालित होता है. जीवन में अगर दुख है, तो दुख की कुछ वजहें हैं. योग में दुख की पांच वजहें गिनाई गई हैं – अविद्या (अज्ञान), अस्मिता (अहं), राग (आसक्ति), द्वेष (ईर्ष्या) और अभिनिवेश (मृत्यु से डर और जीवन से प्रेम). योग, व्यायाम और ध्यान इन्हें करने से लाभ मिलता है, ऐसा सबने पढ़ा है, लेकिन करना किसी को नहीं है. शरीर के भीतर की यात्रा नहीं की, तो मालूम कैसे चलेगा कि वहां क्या-क्या खजाना छिपा हुआ है. इस शरीर के भीतर पांच-पांच कोश हैं – अन्नमय (अन्न से बना), प्राणमय (प्राण से बना), मनोमय (मन से बना), विज्ञानमय (ज्ञान से बना) और आनंदमय (आनंद से बना).
इन कोशों के भीतर छिपे खजाने को जानने के लिए हमें शरीर के भीतर उतरना ही पड़ेगा. एक बार यह खजाना हाथ लग गया, तो दुनिया आपके कदमों पर होगी और आपके कदम ब्रह्मांड का विचरण कर रहे होंगे.
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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