मेरे परिचितों में कई लोग हैं जो विपश्यना के लिए दस-दस दिनों के कैंपों में जाते हैं. इन कैंपों में उनसे मोबाइल ले लिया जाता है. उन्हें किसी निश्चित वक्त में घर वालों को जरूरी संदेश भेजने या बात करने के लिए ही मोबाइल दिया जाता है. ऐसे ज्यादातर मित्र लौटने के बाद बहुत गर्व से अपने अनुभव बताते हैं. दो-तीन बातें वे अतिरिक्त जोश के साथ बताते हैं, जिनमें से कमोबेश एक यह होती है कि इस दौरान कैसे वे मोबाइल से दूर रहे और ऐसा कर उन्हें कितना अच्छा महसूस हुआ, उनके मन में उसके प्रति कोई आकर्षण नहीं रहा. (Mind Fit 14 Column)
मोबाइल वाली बात पर मैं उनकी ओर बहुत हैरानी से देखता हूं. वह व्यक्ति किसी भी उम्र का हो, कुछ भी करता हो, किसी भी पद पर हो, आज के दौर में मेरे लिए इससे बड़ी कोई बात नहीं कि कोई मोबाइल से नियमित दूरी बनाकर रख सकता है. विपश्यना के कैंप से लौटकर आने के बाद इतने उत्साह से अपनी दिनचर्या बताने वाले मित्र को भी मैंने दो हफ्ते बीतते-बीतते पुन: मोबाइल की गिरफ्त में फंसते हुए देखा है.
ज्यादातर लोग मोबाइल से लगातार चिपके रहने से होने वाले तमाम नुकसानों के बारे में बखूबी वाकिफ हैं. वे जानते हैं कि न सिर्फ उससे निकलने वाली विकिरण ऊर्जा सेहत के लिए बहुत घातक है, वह उनका बहुत कीमती समय भी खराब करता है. यानी मोबाइल पास न रखने से होने वाले फायदों को जानने और उसे पास रखने के खतरों को समझने के बावजूद लोगों को उसकी इस कदर लत पड़ चुकी है कि वे उसे एक पल के लिए भी खुद से जुदा नहीं कर पाते. (Mind Fit 14 Column)
अब जरा आप जरूरत से ज्यादा मोबाइल इस्तेमाल करने के दूसरे पहलुओं को समझने की कोशिश करें. सबसे पहले तो आप यह समझ लें कि रोज जब आप रातभर की नींद के बाद सुबह पूरी ताजगी लेकर उठते हैं, तो आपका दिमाग ऊर्जा से लबरेज होता है. वह दिनभर के कामों से दो-चार होने को तैयार होता है. मोबाइल से जुड़ी भाषा में कहें तो सुबह उठने के बाद दिमाग की बैटरी पूरी सौ पर्सेंट चार्ज होती है. लेकिन जैसे-जैसे आप अपने काम करते हैं, सोचते हैं, देखते हैं, आपकी ऊर्जा कम होने लगती है.
आंखें खुली रखने भर से ही आपकी ऊर्जा का क्षय होता है. मोबाइल की स्क्रीन पर किसी पोस्ट को पढ़ने में भी बहुत ऊर्जा खर्च होती है, जिसका हमें आभास नहीं हो पाता. जब आप पूरे दिन मोबाइल स्क्रीन पर चीजें देखते हो, चैट करते हो, तो अकेले इसी काम की वजह से दोपहर आते-आते आपके दिमाग की पूरी बैटरी खाली हो जाती है. यानी आपके दिमाग में चीजों और लोगों से पूरी ऊर्जा के साथ डील करने की ऊर्जा नहीं बच पाती. तब आप लोगों और स्थितियों से बचने की कोशिश करने लगते हैं. (Mind Fit 14 Column)
यह स्थिति और कुछ क्यों न करे पर आपको जीवन में तरक्की तो हरगिज नहीं देने वाली. आप धीरे-धीरे पलायनवादी बनने लगते हैं क्योंकि स्थितियों और लोगों से डील करने के लिए आपमें जिस ऊर्जा का रहना जरूरी है, उसे तो आप पूरी की पूरी मोबाइल में खर्च कर चुके होते हो.
मोबाइल एक और ऐसा काम करता है, जिसका आपको आभास नहीं होता. इसे यूं समझिए कि एक शांत दिमाग शांत तालाब जैसा होता है- सुंदर और ऊर्जा से भरपूर. लेकिन अगर हम तालाब में लगातार पत्थर फेंकते रहें, तो तालाब की शांति भंग हो जाती है, लहरें एक-दूसरे पर चढ़ने लगती हैं. मोबाइल से आपके पास ज्यादातर तो नेगेटिव विचार ही पहुंचते हैं क्योंकि उसमें समाज में हो रही घटनाओं की सूचनाएं ही ज्यादा होती हैं और दुर्भाग्य से कलियुग में समाज में ज्यादातर नकारात्मक चीजें ही देखने को मिल रही हैं.
ये नेगेटिव खबरें और सूचनाएं आपके भीतर उत्तेजना और घबराहट पैदा करती है, लेकिन चूंकि आप ऐसे इमोशंस को रात-दिन महसूस करते रहते हैं, इसलिए आप इनके आदी हो जाते हैं. आपको शारीरिक स्तर पर इनसे पहुंच रहे नुकसान का पता ही नहीं चल पाता. असल में ये नेगेटिव इमोशंस आपके शरीर को भीतर से खोखला करने का काम करते हैं. दो-तीन साल में ही मोबाइल की यह लत आपके आत्मविश्वास को भी रसातल पर पहुंचा देती है क्योंकि इतने समय में मोबाइल आपके शरीर और दिमाग दोनों को बीमार बना चुका होता है.
अगर मोबाइल का दिन-रात इस्तेमाल लत है, तो हममें हर लत से मुक्त होने की ताकत भी है. इसके लिए सिंपल नियम बनाएं कि रात सोने से एक घंटा पहले मोबाइल को दूर रख दें और सुबह उठने के एक घंटे बाद तक मोबाइल न देखें. बाकी के पूरे दिन में भी मोबाइल हीन वक्फे निर्धारित कर लें और उन वक्फों में जिंदगी जीते हुए यह साबित करें कि असल में आप अपने मोबाइल से कहीं ज्यादा ताकतवर हैं. (Mind Fit 14 Column)
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कवि, पत्रकार, सम्पादक और उपन्यासकार सुन्दर चन्द ठाकुर सम्प्रति नवभारत टाइम्स के मुम्बई संस्करण के सम्पादक हैं. उनका एक उपन्यास और दो कविता संग्रह प्रकाशित हैं. मीडिया में जुड़ने से पहले सुन्दर भारतीय सेना में अफसर थे. सुन्दर ने कोई साल भर तक काफल ट्री के लिए अपने बचपन के एक्सक्लूसिव संस्मरण लिखे थे जिन्हें पाठकों की बहुत सराहना मिली थी.
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