पिथौरागढ़ जिले से 3 किमी की दूरी पर कासनी गांव के बीच, जिले का सबसे बड़ा दस अवतार विष्णु का भव्य मंदिर समूह है. मुख्य मन्दिर के गर्भ ग्रह में भगवान विष्णु की विशाल प्रतिमा विराजमान है. ग्रामीणों द्वारा इसे लक्ष्मी नारायण मन्दिर नाम से जाना जाता है. Vishnu Temple in Pithoragarh
पुरातात्विक इकाई अल्मोड़ा/पुरातात्विक विभाग नई दिल्ली व राजकीय महाविद्यालय में इतिहास विभाग में कार्यरत डॉ हेम चन्द्र पाण्डे जी के आधार पर यह मंदिर 11वीं सदी के मध्य का है.
मंदिर स्थानीय ग्रेनाईट प्रस्तर खण्डों का बना है. यहाँ नागर शैली में स्तम्भ हितरेखा प्रसाद श्रेणी के देवालयों की तलछंद योजना में दो भागों का विधान किया गया है. गर्भग्रह, अंतराल एवं उर्ध्वछन्द योजना में वेदीबन्ध त्रीरथ विन्यास की जंघा निर्मित है और शिखर का क्रम बनाया गया है.
वैदिक आश्रमों की पृष्टभूमि एवं पावन यात्रा पथ के समीप निर्मित इस देवालय परिसरों को तीन भागो में विभाजित किया गया है.
1- देवकुल. 2- आश्रम. 3-पंचायतन.
देवकुल परिसर में मुख्य देव मंदिर के समीप ही सम्पूर्ण देव परिवार अथवा अन्य देवों हेतु लघु देवालय, परिसर में निर्मित है. मन्दिर के गर्भग्रह में विशाल विष्णु की प्रतिमा, गुप्तकाल में भगवत धर्म में अवतारवाद का वृहत प्रचलन हुआ. वैष्णव साहित्य में पूर्णवतार, अंशावतार एवं आवेशावतार का उल्लेख है मुख्यतः दस अवतार.
इस देवालय में विष्णु के दस अवतारों की प्रतिमाओं की श्रंखला भी है व इस के अतिरिक्त दुर्गा, गणेश, सरस्वती, लक्ष्मी, गज आदि के अतिरिक्त विष्णु प्रतिमा हाथों में शंख, कमल, गदा, चक्र लिये है.
इसके अतिरिक्त महिषासुर मर्दिनि, उमा महेश, भवानी,आदि की प्रतिमाएं भी इस ग्राम के अन्य मंदिरों में विराजमान हैं.
कासनी गांव के लोगों को विष्णु मन्दिर में पूजा अर्चना व देख-रेख के लिए स्थानीय निवासी कसनीयालों के पूर्वजों को कत्यूरी राजवँश द्वारा काशी से लाया गया था और यह काशी के विशेष पंडितो में से थे.
मंदिर के गर्भग्रह की मूर्ति सबसे बड़ी है, इस मूर्ति में नारायण भगवान के दस अवतारों का विशेष समूह हैं.
जिसमें मत्स्य अवतार, कूर्म अवतार, वाराह अवतार, नृसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम अवतार, राम अवतार, कृष्ण अवतार, बुद्ध अवतार, कल्कि अवतार देखे जा सकते हैं.
पुरातात्विक ईकाई के अनुसार उत्तराखंड में यह एक अकेला विष्णु मन्दिर हैं जिसमें एक साथ दस अवतार विराजमान हैं.
मंदिर में प्रत्येक दिन और विशेष अवसरों पर पूजा-पाठ होता है लेकिन आश्विन महीने में पंचमी के दिन इस मंदिर में विशेष पूजा का आयोजन किया जाता है. गांव वाले अपनी नई फसल को सबसे पहले मंदिर में चढ़ाते हैं और उसके बाद अपने प्रयोग में लाते हैं. दिवाली के दिन भी ग्रामीणों द्वारा सबसे पहले इसी मंदिर में पूजा अर्चना की जाती है.
विष्णु मंदिर से ठीक उत्तर की तरफ हिमालय का विहंगम दृश्य अपने आप में ऊर्जा का केंद्र है, वहीं से 200 मीटर की दुरी में 2 नौले हैं. ग्रामीणों द्वारा इनका प्रयोग किया जाता और देव कार्यों में भी इन्हीं का जल चढ़ाया जाता है.
पुरात्व विभाग की प्रस्तावित धरोहर में होने के बावजूद भी गाँव वालों ने आपस में धन एकत्रकर मंदिर का रख-रखाव किया है. इसे अन्तराष्ट्रीय पटल पर लाने के लिए भी ग्राम प्रधान श्री सुरेश चन्द्र कसनियाल व बी.डी. कसनियाल जी के नेतृत्व में मंदिर के रख-रखाव के लिये व इसे विशेष पर्यटन स्थल के रूप में आम जन-मानस तक लाने के लिए भी इसकी रिपोर्ट शासन, प्रशासन तक भी समय समय पर भेजी जाती है जिसमें फिल्हाल अभी तक कोई कार्यवाही नहीं हुई है.
मंदिर की कुछ अन्य तस्वीरें देखिये :
आलेख और सभी तस्वीरें मनीष कसनियाल.
काफल ट्री के फेसबुक पेज को लाइक करें : Kafal Tree Online
पिथौरागढ़ के रहने वाले मनीष कसनियाल एम. ए. इतिहास के छात्र हैं. पिछले कई वर्षों से रंगमंच से जुड़े मनीष साहसिक खेलों में बहुत से राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय रिकार्ड बना चुके हैं.
काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री
काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें
पिछली कड़ी : साधो ! देखो ये जग बौराना इस बीच मेरे भी ट्रांसफर होते…
आपने उत्तराखण्ड में बनी कितनी फिल्में देखी हैं या आप कुमाऊँ-गढ़वाल की कितनी फिल्मों के…
“भोर के उजाले में मैंने देखा कि हमारी खाइयां कितनी जर्जर स्थिति में हैं. पिछली…
पिछली कड़ी : उसके इशारे मुझको यहां ले आये मोहन निवास में अपने कागजातों के…
सकीना की बुख़ार से जलती हुई पलकों पर एक आंसू चू पड़ा. (Kafan Chor Hindi Story…
राकेश ने बस स्टेशन पहुँच कर टिकट काउंटर से टिकट लिया, हालाँकि टिकट लेने में…