Featured

कुछ बड़ा हुआ था 1977 के चुनाव में – बचपन की एक स्मृति

1977 में मैं करीब दस साल का था. दो साल पहले जब इमरजेंसी लगी थी, हम लोग अल्मोड़ा में रहते थे. इमरजेंसी की सबसे ठोस स्मृति के तौर पर मुझे याद आता है कि हमारे पड़ोस में रहने वाले एक वकील साहब, जिनका नाम हरिनंदन जोशी था, को पुलिस गिरफ्तार कर ले गयी थी. वकील साहब हमारे मोहल्ले पोखरखाली के सबसे शानदार आदमी थे. हम बच्चों के साथ उनका व्यवहार बहुत दोस्ताना हुआ करता था. इसके अलावा उनके ड्राइंग रूम में बहुत बड़ी लाइब्रेरी थी, जो मेरी याददाश्त में देखी गयी पहली लाइब्रेरी थी.

वकील साहब को जेल में बंद कर दिया गया था और मैं अपने पिताजी और अडोस-पड़ोस के अंकलों को देर शाम तक लम्बी लम्बी बातचीतों में मसरूफ देखा करता था. कुछ हुआ था लेकिन मैं या मेरे सहपाठी-दोस्त उसे समझ पाने में अक्षम थे.

फिर पिताजी का तबादला तराई के नगर रामनगर में हो गया. रामनगर अल्मोड़ा के लिहाज से खासी विकसित जगह लगती थी. यहाँ आकर नए दोस्त बन गए जिनकी संगत में एक नए नगर को खोजना मेरा प्रिय शगल था जब मैंने पहली बार नसबंदी शब्द सुना. इस शब्द से ऐसी गलाजत और विद्रूप भरी ध्वनियाँ निकलती थीं कि मैंने इस बाबत किसी से भी बात न करने का फैसला किया. रामनगर में एक बहुत बड़े आढ़ती थे जिनकी दुकान के बाहर तिरंगा फहराता रहता था. एक बार उस दुकान के बाहर बैठे एक बेहद दीन-हीन और हताश दिख रहे जवान आदमी का चेहरा नहीं भूलता जिसे दिखाते हुए मेरे एक दोस्त ने मेरे कान में फुसफुसाते हुए कहा था – “इसकी जबरदस्ती नसबंदी करवा दी इन्द्रा गांधी ने!”

मेरे लिए इमरजेंसी नाम का शब्द सबसे पहले सीधे नसबंदी से जुड़ता है. फीकी सी स्मृति है कि एकाध बार मेरे घर में भी इस शंड का दबे-छुपे इस्तेमाल हुआ था. मुझे नहीं मालूम मेरे पिताजी की नसबंदी हुई या नहीं लेकिन यह समझ में आ रहा था कि बड़े पैमाने पर सरकारी कर्मचारियों की नसबंदी की जा रही है.

मुझे याद है उस साल 57 रुपए में एक क्विंटल गेहूं मिलता था जो संभवतः और सालों की अपेक्षा बहुत सस्ता रहा होगा क्योंकि इस बात पर जोर देते हुए मेरे पिताजी ने एक साथ चार-पांच क्विंटल गेहूं खरीद कर दुछत्ती में रखवाया था. जब्बार नाम का एक बंजारा हमारे घर अनाज लाने का काम करता था. उसने गेहूँ के पैसे लेते हुए कहा था – “इस साल गेहूँ बहुत सस्ता करवा दिया इन्द्रा गांधी ने!” इसके बाद मेरे घर पर गाँव से आये रिश्ते के एक चाचा और जब्बार में बहुत लम्बी बहस चली थी.

मुझे अच्छी तरह याद है मार्च का महीना था जब चुनाव हुए थे. चुनाव के बारे में हम बच्चों को कुछ भी पता नहीं था. हमें स्कूल से छुट्टी मिली हुई थी और हम अपने खेलों में मसरूफ रहा करते थे.

ऐसे ही एक दिन हम छत पर क्रिकेट खेल रहे थे जब अचानक ढोल-नगाड़ों और बैंड की तेज-तेज आवाज सुनाई देना शुरू हुई. झाँक कर नीचे देखा तो सामने खेल मैदान की दिशा से लोगों का एक बहुत बड़ा हुजूम जुलूस की शक्ल में चला आ रहा था. ‘रामनगर जैसे छोटे से नगर में इतने सारे लोग एक साथ कहाँ से आए!’ – मुझे आश्चर्य हो रहा था. बीच में कोई एक आदमी था जिसके गले में अनगिनत गेंदे के फूलों की मालाएं पड़ी हुई थी.

बहुत बाद में पता लगा वे सज्जन चुनाव जीते थे, उनका नाम भारत भूषण था और इन्द्रा गांधी हार गयी थी!

काफल ट्री वाट्सएप ग्रुप से जुड़ने के लिये यहाँ क्लिक करें: वाट्सएप काफल ट्री

काफल ट्री की आर्थिक सहायता के लिये यहाँ क्लिक करें

Kafal Tree

Recent Posts

हो हो होलक प्रिय की ढोलक : पावती कौन देगा

दिन गुजरा रातें बीतीं और दीर्घ समय अंतराल के बाद कागज काला कर मन को…

2 weeks ago

हिमालयन बॉक्सवुड: हिमालय का गुमनाम पेड़

हरे-घने हिमालयी जंगलों में, कई लोगों की नजरों से दूर, एक छोटी लेकिन वृक्ष  की…

2 weeks ago

भू कानून : उत्तराखण्ड की अस्मिता से खिलवाड़

उत्तराखण्ड में जमीनों के अंधाधुंध खरीद फरोख्त पर लगाम लगाने और यहॉ के मूल निवासियों…

2 weeks ago

यायावर की यादें : लेखक की अपनी यादों के भावनापूर्ण सिलसिले

देवेन्द्र मेवाड़ी साहित्य की दुनिया में मेरा पहला प्यार था. दुर्भाग्य से हममें से कोई…

2 weeks ago

कलबिष्ट : खसिया कुलदेवता

किताब की पैकिंग खुली तो आकर्षक सा मुखपन्ना था, नीले से पहाड़ पर सफेदी के…

3 weeks ago

खाम स्टेट और ब्रिटिश काल का कोटद्वार

गढ़वाल का प्रवेश द्वार और वर्तमान कोटद्वार-भाबर क्षेत्र 1900 के आसपास खाम स्टेट में आता…

3 weeks ago