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मनोहर श्याम जोशी : भारतीय टीवी धारावाहिक के जनक

अगर कभी उत्तराखंड बोर्ड ने अपनी हिंदी की किताबों में मनोहर श्याम जोशी की कोई कहानी लगाई होती तो हम भी कालेज जाते ही बड़ी ठसक से कहते ये कहानी लिखने वाला हमारे अल्मोड़े का है. हो सकता है कि स्कूली किताब में होने की वजह से हम मनोहर श्याम जोशी के बारे में और जानकारी इकट्ठा करते और पूरे भोकाल से डायलॉग मारते जिन धारावाहिकों में तुम और तुम्हारे घरवाले आखें फोड़ते हो उसको लिखने की शुरुआत करने वाला हमारे अल्मोड़े का है.

मनोहर श्याम जोशी भारत में विख्यात एक ऐसा नाम जिसे उत्तराखंड का एक आम बच्चा कॉलेज में जानता है या तब जानता है जब किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहा हो. परिचय के नाम पर इतना जानता होगा कि लेखक हैं साहित्य अकादमी पुरुस्कार भी मिला है.

विलक्षण प्रतिभा के धनी मनोहर श्याम जोशी एक पत्रकार, व्यंग्यकार, कहानीकार, उपन्यासकार, धारावाहिक लेखक, फिल्म पटकथा लेखक, संपादक, स्तंभ लेखक रहे हैं. उन्होंने पत्रकारिता, टेलीविजन, सिनेमा और साहित्य सभी जगह बड़ी ही सहजता से अपना स्थान बनाया है.

7 जुलाई 1984 को दूरदर्शन में एक धारावाहिक शुरू हुआ नाम था हम लोग. भारत सरकार के निर्देश पर बना यह सीरियल इतना लोकप्रिय हुआ कि उस समय इसके 156 एपिसोड प्रसारित किये गए. इस धारावाहिक के लेखक का नाम है मनोहर श्याम जोशी. भारतीय धारावाहिक का पितामह मनोहर श्याम जोशी.

मनोहर श्याम जोशी ने ‘हम लोग’ धारावाहिक में भारतीय मध्यवर्ग की वो कहानी लिखी जो आज भी भारतीय मध्यवर्ग का सच कहती है. आज भी आपको बेटियों के मध्यवर्गीय पिता के माथे पर वही शिकन दिखेगी जो ‘हम लोग’ के बसेसर राम के माथे पर दिखती है. आज भी हर घर में एक मझली दिखेगी जो खुले आसमान में उड़ना चाहती है. हर दूसरे घर में लाजवंती, बड़की देखने को मिलेंगी.

फिर बात करें उनके दूसरे धारावाहिक ‘बुनियाद’ की. शायद ही विभाजन को लेकर अब तक भारतीय टीवी में ‘बुनियाद’ जैसा कुछ बना हो. ‘बुनियाद’ भारत ही नहीं बल्कि पाकिस्तान में बहुत लोकप्रिय हुआ. यहां तक कहा जाता है कि पाकिस्तान की सड़के ‘बुनियाद’ के प्रसारण के समय खाली रहा करती थी.

बुनियाद, हम लोग के अलावा मुंगेरी लाल के हसीन सपने, कक्काजी कहिन जैसे न जाने कितने धारावाहिकों में मनोहर श्याम जोशी ने लेखन किया. उन्होंने हे राम, अप्पू राजा, पापा कहते हैं और भ्रष्टाचार जैसी फिल्मों की पटकथा लिखी.

फोटो : gajabkhabar.com से साभार

सत्रह-अठारह बरस की उम्र में मनोहर श्याम जोशी की कहानी प्रतीक और संरगम पत्रिका में छपी थी. तब उनकी कहानी को अमृतलाल नागर, भगवतीचरण वर्मा, यशपाल आदि ने सराहा था. इसके बावजूद उनका पहला उपन्यास 47 बरस की उमर में आया.

जब इतने लम्बे समय बाद उपन्यास लिखने के संबंध में उनसे सवाल किया गया तो आकाशवाणी को दिये अपने एक साक्षात्कार में मनोहर श्याम जोशी बताते हैं कि

एक लंबे अरसे तक मैं सोचता रहा कि शायद जोशीजी एक ठो वार एंड पीस और एक ठो वेस्टलैंड हिन्दी साहित्य को दे सकेंगे आगे चलकर कभी. जब ऐसा लगा कि आगे तो जिन्दगी ही बहुत नहीं रह गई है तो लेखनी फिर उठा ली. पहले बहुत दिनों तक मैं सोचता रहा कि रचनाकार अपनी पैतृक विरासत, अपने संस्कार, अपने आरंभिक परिवेश को दरकिनार करते हुए कुछ रच सकता है. बहुत बाद में यह समझ आया यह लगभग असंभव है. मैं चाहे कुछ भी कर लूं अपने लेखन में बुनियादी तौर से एक खास कुमाउंनी ब्राह्मण के घर में, एक खास परिस्थिति में पैदा हुआ और पला-बढ़ा व्यक्ति ही रहूंगा. इस समझ के बाद लेखन शुरु किया.

( जानकीपुल.कॉम )

अजमेर में जन्में मनोहर श्याम जोशी अपनी किस्सागोई शैली. चरित्र-चित्रण और भाषा की पकड़ का श्रेय अपनी माता के देते हैं. मनोहर श्याम जोशी के अनुसार एक कुमाऊंनी ब्राह्मण परिवार में परवरिश के कारण किस्सागोई की यह शैली स्वतः ही उनमें आ गयी. अपनी मां से उन्होंने बुनियादी साहित्यिक-संस्कार और तेवर लिये हैं.

2004 में आकाशवाणी को दिये साक्षात्कार में ही मनोहर श्याम जोशी ने बताया कि

मेरी माँ कुशल किस्सागो और नक्काल थी. हर घटना का वह बहुत ही सजीव वर्णन करती थी. कुमाऊं में होने वाली बारातों में जब बारात जाती है तो रात्रि के समय रतेली में मेरी मां के आइटमों की धूम रहती थी.

अपनी रचनाओं में हास-व्यंग्य का श्रेय भी मनोहर श्याम जोशी अपनी माता को ही देते हैं. मनोहर श्याम जोशी की माता एक दीवानी परिवार से ताल्लुक रखती हैं. मनोहर श्याम जोशी की माता के परदादा हर्षदेव जोशी थे. हर्षदेव जोशी को उत्तराखंड के इतिहास में कुमाऊं का चाणक्य कहा जाता है. हर्ष देव जोशी ने गोरखाओं को हारने के लिये ईस्ट इण्डिया कम्पनी से हाथ मिलाया था हालांकि अंग्रेजों ने हर्षदेव जोशी को धोखा दिया था.

मनोहर श्याम जोशी के पिता की मृत्यु तब हो गयी थी जब वे सात आठ बरस के रहे होंगे. मनोहर श्याम जोशी बताते हैं कि उनके जीवन में पिता की अपनी यादें अनुपस्थित हैं. उनके पास पिता की अधिकांश यादें वे हैं जो उन्हें लोगों ने बताई.

47 साल की उम्र में मनोहर श्याम जोशी का पहला उपन्यास आया कुरु-कुरु-स्वाहा. मुम्बइया पृष्ठभूमि पर आधारित इस उपन्यास की भाषा और संवाद शैली को हिंदी साहित्य में एक नवीन प्रयोग माना गया.

मनोहर श्याम जोशी ने अपने साहित्यिक जीवन में कई सारे नये प्रयोग किये. जैसे उनके उपन्यास कसप को ही लीजिये. कसप एक कुमाऊनी शब्द है. अधिकांशतः यह माना जाता है कि किसी क्षेत्रीय भाषा का टाइटल उसके पाठकों को सीमित करता है. कसप का न केवल टाइटल कुमाऊंनी शब्द है बल्कि उसमें भर-भरकर कुमाऊनी के शब्द हैं इसके बावजूद कसप हिंदी में सबसे ज्यादा पड़े जाने वाले उपन्यासों में शामिल है.

हरिया हकुलिस की हैरानी उपन्यास में उनकी किस्सागोई शैली को कौन बिना सराहे रह सकता है. मनोहर श्याम जोशी अपनी इस सशक्त किस्सागोई शैली का श्रेय ब्राह्मण कुमाऊनी परिवेश में हुई अपनी परवरिश को देते हैं. वहीं मध्यवर्गीय ताने-वाने की ऐसी तैसी करने की शक्ति का श्रेय वे एकबार पुनः अपनी माता को ही देते हैं.

मनोहर श्याम जोशी को पत्रकारिता का भी ख़ासा अनुभव था. उन्होंने लम्बे समय तक पत्रकारिता में भी नौकरी की. उन्होंने सबसे पहले ऑल इण्डिया रेडियो के लिये नौकरी की. मनोहर श्याम जोशी दिनमान और साप्ताहिक हिन्दुस्तान जैसी पत्रिकाओं के संपादक भी रहे.

एक ऐसे समय में जब हमारे बच्चे किताबे पढ़ने से दूर हो रहे हैं ऐसे में मनोहर श्याम जोशी जैसे रचनाकारों को उन्हें पढ़ाया जाना चाहिये. उनसे उनका परिचय कराया जाना चाहिये ताकि कथानक के निर्वात वाले इस समय में हमलोग या बुनियाद जैसा कुछ कालजयी बन सके.

– गिरीश लोहनी

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Girish Lohani

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  • जोशी जी द्वारा लिखे गए 'क्याप' और 'टटा प्रोफेसर' जैसे कई उपन्यासों का उल्लेख होने से रह गया है।

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