समाज

बेकाम समझे जाने वाले पिरूल से इंटरनेशनल सुर्खियां बटोरने वाली अल्मोड़ा की मंजू से मिलिये

अल्मोड़ा के द्वाराहाट कस्बे में रहने वाली मंजू रौतेला साह को साल 2019 में कोलकाता में बेस्ट अपकमिंग आर्टिस्ट का अवार्ड मिला. यह अवार्ड उन्हें इण्डिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल की ओर से दिया गया. Pine Needle Art by Manju Rautela Sah Dwarahat

9 अगस्त 1984 को बागेश्वर के असों (कपकोट) गांव में प्रधानाचार्य श्री किशन सिंह रौतेला और श्रीमती देवकी रौतेला के घर जन्मी मंजू ने हाईस्कूल तक की शिक्षा असों में पाई, इंटर कपकोट से किया और आगे की पढ़ाई के लिए अल्मोड़ा आ गईं. यहाँ के शोभन सिंह जीना कैम्पस से बीए करने के बाद उन्होंने हल्द्वानी के एम. बी. कॉलेज से एमए किया और भीमताल के जे. एन. कॉल इन्स्टीट्यूट से बीएड.

वर्ष 2009 में उनका विवाह हुआ और वे अपने पति श्री मनीष कुमार साह के साथ अल्मोड़ा जिले के द्वाराहाट के हाट गांव में आकर रहने लगीं. जापानी प्रशिक्षक से प्रशिक्षण ले चुकी अपनी मौसेरी बहन पूजा ने उन्हें साज सज्जा के सामान बनाने हेतु प्रेरित किया.

उन्होंने देखा कि पहाड़ में हर जगह पिरूल (चीड़ की पत्तियाँ जिन्हें अंगरेजी में पाइन नीडल Pine Needle कहा जाता है) फैला रहता है और उसका कहीं कोई इस्तेमाल नहीं होता. सो कुछ ठान कर उन्होंने घर पर ही पिरूल इकठ्ठा करना शुरु किया और उससे फूलदान, टोकरी, कटोरी इत्यादि बनाना शुरु किया. इसके बाद उन्होंने पिरूल की गोल हैट, बैठने के आसन, पायदान बनाने शुरु किये.

उपनल के द्वारा जब उन्हें राजकीय बालिका इंटर कालेज ताडीखेत में प्रयोगशाला सहायक के पद पर नियुक्ति मिली तो उन्होंने स्कूल की शिक्षिकाओं और छात्राओं को भी पिरूल से बनने वाले सजावट के सामान को बनाने के गुर सिखाये.

अपनी इस पहल के लिये मंजू को शिक्षा में शून्य निवेश नवाचार हेतु प्रशस्ति पत्र दिया गया. उन्होंने पिरूल को स्वरोजगार से जोड़कर पहाड़ के लोगों के लिये स्वरोजगार का एक नवीन विकल्प की शुरुआत की है.

मंजू जे जीवन में एक बड़ी त्रासदी 1993 घटी थी जब वे तीसरी कक्षा में पढ़ती थीं. उनके पिता श्री किशन सिंह रौतेला का असमय निधन हो गया. इतनी छोटी अवस्था में परिवार के सामने ऐसी बड़ी विपत्ति आ जाए तो जीवन के पाठ जल्दी सीखने पड़ते हैं. नन्हीं मंजू को भी ऐसा ही करना पड़ा होगा.

अपनी सफलता का श्रेय वे अनेक लोगों को देती हैं. कहती हैं, “मुझे पिरुल से पहचान दिलाने में गौरीशंकर कांडपाल जी का महत्वपूर्ण योगदान है उन्होंने ही मुझे वर्ष 2018 से निरंतर फोर्स किया कि इस काम को आगे करो.”

स्थानीय ग्रामीण महिलाओं की मदद से मंजू स्वरोजगार की इस अभिनव पहल को आगे बढ़ाना चाहती हैं ताकि उनकी यह उनकी आमदनी का हिस्सा बन सके. उनके इस काम को राष्ट्रीय एवं अन्तराष्ट्रीय स्तर पर खूब सराहा जा रहा है.

मंजू रौतेला साह जैसी महिलाएं पहाड़ को गौरवान्वित करने वाली चुनिन्दा बेटियाँ हैं जिन्होंने विषमतम परिस्थितियों में रह कर भी अपने लिए अलग रास्ते चुने और अलग आसमान बनाए. उन्हें सलाम!

यह भी पढ़ें: ल्वेशाल इंटर कालेज में नवीं में पढ़ने वाली ईशा और उसकी पिरूल की टोकरियां

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-काफल ट्री डेस्क

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  • पिरूल से बिजली उत्पादन के कार्य को भी प्रकाशित कीजिये
    शेखर बिष्ट
    8057506070

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