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काली नदी की नरभक्षी मछली और चिता से तीन बार वापस आये नेपाली बुबू का किस्सा

टीवी में बहुत ही रोचक कार्यक्रम आ रहा था  जिसका विषय था-दानव मछली.  यानी ऐसी बड़ी-बड़ी मछलियाँ जो रहती तो नदी में थी लेकिन उनके जीवित मनुष्यों को निगल जाने की किंवदंतियाँ भी थीं. क्योंकि विषय महाकाली नदी से संबंधित था, सो रोमांच भी ज़्यादा ही था.  Maneater Fish of Mahakali River and Thrice Dead Old Man

प्रसारक ने बताया कि कैसे कि कैसे उसने पहले इसी स्थान पर मच्छ दानव पकड़े का प्रयास किया था पर असफल रहा.फिर वह यहाँ से हारकर अपनी तकनीक को सुधारने तथा कैट फ़िश (संभावित मच्छ दानव) को बेहतर समझने के लिये रामगंगा नदी में कई बार तैरकर तथा गहराई में गोते लगा कर, तथा उनके बारे में कुछ और नया सीख कर फिर महाकाली तीरे पहुँच गया. Maneater Fish of Mahakali River and Thrice Dead Old Man

इंटरव्यू में गाँव के लोग बता रहे थे कि किस तरह इन दानवों ने उनके बछड़े,  छोटे बच्चे और यहाँ तक कि एकाध औरतें भी पानी में खींच ली थी जिनका बाद में कभी कोई और सुराग तक न मिला.साफ़ दिख रहा था,  कुछ हक़ीक़त थी तथा बाक़ी फसक.लेकिन बिना आग के भी कहीं धुआँ होता है भला.कई दिनों तक वह अंग्रेज सच्चे साधक की तरह कई -कई घंटे वहाँ काँटा डालकर बैठा रहता-कभी स्थान बदलता, कभी मुहूर्त. लेकिन उसके हाथ कुछ न आया.

अब उसने एक बार फिर गाँव वालों से बात करने के बाद एक नया उपाय करने की सोची.अगले दिन उसने बिना शव, एक चिता सजाई तथा उसमें आग लगा कर बैठ गया, नदी किनारे काँटा डाल, इंतजार में महामच्छ के. कुछ ही मिनटों बाद उसे काँटे में कुछ तनाव सा लगा तथा जल्द ही यह एहसास भी हो गया कि कोई बड़ी मछली ही फँसी है. यह देख कर उसकी ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा कि यह तो वही दानव मछली थी जिसकी तलाश में वह हज़ारों मील से यहाँ आया था. Maneater Fish of Mahakali River and Thrice Dead Old Man

ज़ाहिर है कि मछली आग की गरमी से आकर्षित होकर किसी जलती हुई लाश को अपना निवाला बनाने की ही आस में अपने गहरे व सुरक्षित आवास को छोड़ इस अंग्रेज़ के काँटे में फँसकर छटपटा रहा थी. वाक़ई वह कम से कम साढ़े पाँच या छह फ़ीट की रही होगी तथा उसके मुँह की चौड़ाई कोहनी से अंगुलियों के सिरे तक की थी. इतने चौड़े मुँह के बीच उसके आरी जैसे सैकड़ों दाँत, तिस पर दोनों तरफ़ झाड़ू जैसी बड़ी बड़ी मूँछें, अच्छों अच्छों के शरीर में झुरझुरी पैदा करने के लिए काफ़ी थी. फ़ोटो-सोटो खींचने के बाद महामच्छ को महाकाली में छोड़ दिया गया.

कार्यक्रम समाप्त होने पर जैसे मैं टी वी बंद करने के लिए उठने लगा तो देखा कि मेरे पीछे मेरा नेपाली मित्र खड़े खड़े मुस्कान भर रहा था. टी वी देखने में मैं इतना खो गया था कि मुझे उसके आने की आहट भी नहीं सुनाई दी. मुझे लगा कि वह टी वी में दिखाए गए स्थान से भली प्रकार परिचित था, सो यूँ ही मुस्कुरा रहा होगा. फिर भी मैंने मुस्कुराहट का कारण जानना चाहा. मुझे आश्चर्य हुआ जब उसने मुझसे पूछा कि अगर किसी दूरस्थ क्षेत्र में कोई मधुमेह  का मरीज़ हाइपोग्लाइसिमिया (रक्त में शर्करा की कमी) का शिकार हो जाए तो क्या-क्या होने की संभावनाएँ हैं. मैंने सहजता से कहा कि अगर समय से शक्कर उपलब्ध न हो पाए तो गहरी जानलेवा मूर्छा भी हो सकती है. और अगर तब मिल जाए तो, उसने गंभीर होकर पूछा. उसे होश आ जाएगा, मैं ने फिर उत्तर दिया.

“ओ, हो, दाज्यू, अब समझ आया, क्या खेल है!”  यह कहकर सर पकड़ कर बैठ गया. यह नाटकीय मोड़ अप्रत्याशित था. मैंने उसे पानी का गिलास देते हुए ठीक से बैठाया तथा पूरी बात जाननी चाही. तब उसने मुझे इस घटना की जानकारी दी कि कैसे एक आदमी तीन बार चिता से उठ बैठा तथा उसे दो बार वापिस गाँव में ले ज़ाना पड़ा. Maneater Fish of Mahakali River and Thrice Dead Old Man

क़िस्सा कुछ इस प्रकार है.दूर पहाड़ के एक गाँव में एक दिन बहुत दिनों से बीमार चल रहे बुजुर्ग की साँसें थम गई तथा उसे गाँव के लोग परंपरागत तरीक़े से दाह संस्कार के लिए मान्यताओं के अनुसार गाँव से बहुत दूर स्थित घाट पर ले गए. वहाँ पहुँचने पर जब पंडित जी

शास्त्रों के अनुसार बक़ायदा मंत्र तंत्र का जाप करने के साथ साथ दिवंगत के पुत्रों से कुछ क्रियाएँ करवा रहे थे,  अचानक शव हिलने लगा. कुछ लोग तो डर के मारे वहाँ से भाग गए. हिम्मत करके सब कुछ हटाया गया तो बुजुर्ग उठ कर बैठ गये. डोली बनाकर विस्मित बुजुर्ग को गाँव लाया गया.

दो महीने के बाद फिर वही हुआ-बुजुर्ग की साँसें थमना,  उन्हें घाट ले ज़ाना तथा अंतिम संस्कार के बीचोंबीच शव का हिलना तथा बुजुर्ग का फिर उठ के बैठ जाना तथा फिर डोली बनाकर उनका गाँव में पहुँचना. जो लोग घाट नहीं गए थे वे गए हुओं का मज़ाक़ उड़ा रहे थे.

और,  तीसरी बार तो बारिश के मौसम के ठीक बीच उनकी साँसें थम गई तथा अब उनको कंधा देने वाले भी बहुत कम बचे थे.घाट पहुँचने पर शव को लेटाया ही था कि दिवंगत के बड़े पुत्र तथा पंडित जी के बीच कुछ कहा सुनी हो गई तथा पंडित जी बिना क्रियाकर्म कराए ही वहाँ से जाने लगे. किसी तरह से उनको मना कर लाया गया तथा विधिवत दाह संस्कार शुरू हुआ. कुछ देर पश्चात पंडित जी फिर रुष्ट दिखे जब उनको सामान में मृत को देने के लिए गुड़ तथा घी नहीं मिला. शव में हुई हल्की सी हरकत को भी नज़रअंदाज़ कर दिया गया. Maneater Fish of Mahakali River and Thrice Dead Old Man

“क्यों”,  मैंने उससे पूछा.

सहसा वह आक्रोशित होते हुए बोला- “क्या आप यह जानते हैं कि इन गाँवों में दो की बजाए एक बांस में मृत को बांधा जाता है क्योंकि पतली पगडंडियाँ दो लोगों को अग़ल बग़ल चलने की जगह नहीं देती.  इतनी पतली होती हैं. और दूरियाँ – पूछो नही, कम से कम चार से छह घंटे चलना पड़ता है घाट पहुँचने तक. ऊपर से बारिश के मौसम. सोचो,  कभी अगर चलना हो आपको भी इतनी ही दूर बारिश के फिसलन भरे रास्तों पर बैलेंस बनाकर,  मीलों मील और जब गाँव का कोई और आदमी साथ न हो.” वह बोलते ही जा रहा था – “कैसे लाते हम उनको ऊपर वापिस.”

“तो क्या तुम भी उनके साथ थे”,  मैंने पूछा.

“इस से क्या फ़र्क़ पड़ता है”,  वह गहरी साँस लेते हुए फिर बोला –  “हाँ, बूबू को मधुमेह था.”

मेरे सुधी पाठक यह तो समझ ही गये होंगे कि इसके बाद महाकाली किनारे क्या हुआ होगा.

डॉ. चन्द्र शेखर जोशी

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लेखक डॉ. चन्द्र शेखर जोशी

31 अक्टूबर 1963 को बरेली में जन्मे उत्तराखंड के खटीमा में रहने वाले डॉ. चन्द्र शेखर जोशी पेशे से चिकित्सक हैं और एक अस्पताल का संचालन करते हैं. खटीमा और उत्तराखंड के सामाजिक-सांस्कृतिक परिदृश्य में उनकी महत्वपूर्ण उपस्थिति लम्बे समय से दर्ज की जाती रही है. कविता-साहित्य में विशेष दिलचस्पी रखने वाले डॉ. जोशी की एक और कहानी काफल ट्री में पहले छपी है.

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