वड्डा की बाजार का बात हो और ममता जलेबी का जिक्र न किया जाय तो आपकी बात अधूरी रहेगी. ममता जलेबी और वड्डा बाजार एक दूसरे के पूरक हैं. चटख लाल रंग की गर्मागर्म जलेबी के साथ वड्डा और इसके आस-पास रहने वाली तीन पीढ़ियों के लोगों की यादें जुड़ी हैं.
ममता जलेबी की शुरुआत गोपाल सिंह इगराल द्वारा लगभग 1974 में की थी. गोपाल सिंह इगराल ने जब इसकी शुरुआत की तो तब इस बाजार में कुछ केमू की बस और एक झूलाघाट पिथौरागढ़ वाली रोडवेज चलती थी.
गोपाल सिंह पिथौरागढ़ के सुवाकोट गांव के रहने वाले थे. उनका जन्म रतन सिंह इगराल और माधवी देवी के घर 1924 में हुआ. चार भाइयों और दो बहनों में गोपाल सिंह दूसरे सबसे छोटे बच्चे थे.
जैसा कि पहाड़ों में अधिकांश परिवारों का जीवन संघर्ष में बीतता है और इस संघर्ष का एक स्थायी इलाज माना जाता है सरकारी नौकरी. गोपाल सिंह के पास भी जीवन में एक मौका आया जब उनके पास अल्मोड़ा पी.डब्लू.डी. में सरकारी नौकरी का विकल्प था.
उस समय गोपाल सिंह के तीनों भाई फ़ौज और पुलिस में थे. घर पर बूढ़े मां-बाप का सहारा अकेले वही थे. उन्होंने मां-बाप की सेवा को प्राथमिकता दी और कृषि को अपना व्यवसाय चुना. जीवन भर गोपाल सिंह का परिवार एक कृषक के रूप में रहा.
अपने जीवन के आधे पड़ाव में पहुंच कर चौथी पास गोपाल सिंह ने वड्डा बाजार में जलेबी की दुकान खोलने का साहस किया. जिसमें उनके परिवार ने उनका पूरा साथ दिया. दुकान का नाम रखा अपनी छोटी बेटी ममता के नाम.
गोपाल सिंह ने जलेबी बनाना पीलीभीत में सीखा था. उनके हाथ की कड़क और गर्मागर्म जलेबी को लोगों ने हाथों हाथ लिया. नवरात्रि के दिनों वड्डा बाजार से कुछ दूरी पर चौमू देवता से जुड़ा हुआ चौपखिया मेला लगता है. इस मेले के दिन ममता जलेबी के बाहर हमेशा कतार देखी जा सकती है. लोग आधे घंटे तक जलेबी का इंतजार करते.
गोपाल सिंह और उनकी पत्नी कलावती देवी को 7 बेटियां और 2 बेटे हुये. गोपाल सिंह ने अपनी सभी बेटियों की शिक्षा को महत्व दिया. उन्हें हमेशा बेहतर शिक्षा के लिये प्रेरित किया इसी का परिणाम है कि उनकी पांच बेटियां अलग-अलग सरकारी विभागों में कार्यरत हैं. उनका सबसे छोटा बेटा भी केन्द्रीय विद्यालय में शिक्षक है.
गोपाल सिंह ने अपने परिवार में शिक्षा की नींव कितनी मजबूती से रखी उसका अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि आज इस परिवार की लगभग सभी बेटियां, बहुएं, बेटे और दामाद अलग-अलग सरकारी पदों पर कार्यरत हैं.
गोपाल सिंह के सबसे छोटे पुत्र चन्दन सिंह इगराल बताते हैं कि
पिताजी ने कभी भी पैसों को महत्व नहीं दिया उन्होंने हमेशा हमारे लिये अच्छी से अच्छी शिक्षा का प्रबंध किया. बड़े परिवार के भरण-पोषण के लिये उन्होंने वड्डा में जलेबी की एक छोटी सी दुकान खोली थी.
गोपाल सिंह की गणना इलाके के सबसे ईमानदार लोगों में की जाती है. ऐसा अनेक बार हुआ है जब लोग ममता जलेबी में जलेबी खाने आये हों और अपना कीमती सामान दुकान में भूल गये हों. गोपाल सिंह लोगों का सामान हमेशा संभाल कर रखते.
18 दिसम्बर 2013 को गोपाल सिंह का निधन हो गया जिसके बाद उनके दामाद गिरीश सिंह सौन ने ममता जलेबी को यथावत चलाने का जिम्मा लिया.
कुछ समय पहले जब वड्डा बाज़ार के बीचों बीच होकर जाने वाली सड़क का चौड़ीकरण हुआ तो ममता जलेबी भी इस चौड़ीकरण की जब्त में आ गया. कुछ समय तक यह दुकान बंद रही. लेकिन लोगों के प्रेम और शुभचिंतकों के आग्रह पर इसे पुनः शुरु किया गया. वर्तमान में पिथौरागढ़ झूलाघाट रोड पर वड्डा बाज़ार के शुरुआत में ही बांये हाथ की ओर ममता जलेबी की छोटी सी विरासत मौजूद है.
गोपाल सिंह इगराल के सबसे छोटे बेटे चंदन सिंह इगराल से बातचीत के आधार पर.
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वड्डा की जलेबी. बहुत सुन्दर जानकारी. धन्यवाद.