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‘माल्टा खाओ प्रतियोगिता’ के बीच माल्टा उगाने वालों का हाल भी जानें

पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत की राजनीतिक सूझ-बुझ के कायल उनके विरोधी भी रहते हैं. कभी ककड़ी तो कभी काफल पार्टी का आयोजन कर वह बखूबी जानते हैं कि सुर्ख़ियों में कैसे रहा जाता है. इन दिनों पूर्व मुख्यमंत्री हरीश रावत माल्टा खाओ प्रतियोगिता के चलते खबरों में बने हुये हैं.
(Malta Fruit Production in Uttarakhand)

18 दिसम्बर को हुई ‘माल्टा खाओ प्रतियोगिता’ में शिवाजी तिवारी ने 3 मिनट में 46 माल्टे खाकर प्रथम स्थान पर रहे. हरीश रावत द्वारा आयोजित इस ‘माल्टा खाओ प्रतियोगिता’ में 29 प्रतिभागियों ने भाग लिया था.

उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों की जलवायु माल्टे के उत्पादन के बड़ी उपयोगी है. यहां माल्टे का उत्पादन भी खूब होता है. राज्य बनने के बाद सरकारों ने समय समय पर माल्टे की व्यासायिक काश्तकारी को लेकर बड़ी-बड़ी बातें कही गयी. पर माल्टे का व्यापार उसे उगाने वालों के लिये कभी फ़ायदे का सौदा न रहा.
(Malta Fruit Production in Uttarakhand)

मसलन इस बरस को ही लीजिये. इस साल उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में माल्टे खूब हुये हैं. सरकार ने दिसम्बर का दूसरा हफ्ता आते-आते माल्टे न्यूनतम समर्थन मूल्य तय किया वह भो 7 रुपये प्रति किलो. बाज़ार में माल्टा 30 से 40 रुपया किलो बिक रहा है, ऑनलाइन यही माल्टा 70 से 80 रुपया किलो बिक रहा है. मॉल में बिकने वाले विदेशी माल्टे की कीमत 249 रूपये प्रति किलो है जबकि जमीन पर माल्टा पेड़ों से 3 से 4 रुपये प्रति किलो पर उठ रहा है.

उद्यान विभाग द्वारा काश्तकरों के माल्टों के विपणन की कोई व्यवस्था नहीं की है. मज़बूरी में काश्तकार पेड़ों से ही माल्टा 3-4 रुपया प्रति किलो बेच रहा है या उसके बंदर माल्टों के पेड़ों में स्वाद ले रहे हैं.

पिछले कुछ सालों में किन्नू के उत्पादन की वजह से संतरे और माल्टे जैसे नीबू जाति के फलों के दाम वैसे ही गिरा दिये हैं. लोहाघाट जैसे छोटे कस्बों में प्रतिदिन एक किवंटल किन्नू की खपत हो रही है जबकि माल्टे को देखने वाला तक कोई नहीं है.
(Malta Fruit Production in Uttarakhand)

-काफल ट्री डेस्क

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