पौड़ी का रामलीला मैदान- 13 फरवरी 1946, कांग्रेस जलसा
सविनय अवज्ञा आन्दोनल के दूसरे दौर से पहले कांग्रेस के बड़े नेताओं को गिरफ्तार किया जा चुका था. नेताओं और कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के कारण पौड़ी की जनता में असाधारण चुप्पी थी. इन दिनों संयुक्त प्रांत के लाट मैलकम का पौड़ी आगमन तय हुआ. पौड़ी का प्रशासन लाट साहब को दिखाना चाहता था कि कांग्रेस इस पूरे क्षेत्र में मर चुकी है. इसके लिये प्रशासन ने ‘अमन सभा’, हितैषी पत्र और हितैषी प्रेस की सहायता ली.
प्रशासन के सहयोग से नवम्बर 1930 में लैंसडाउन बनी ‘अमन सभा’ की स्थापना की गयी थी. जिसका उदेश्य कांग्रेस का प्रतिपक्ष खड़ा कर छावनी को राष्ट्रवादी आन्दोलन से बचाना था. अमन सभा में राय साहब, रायबहादुर, अनेक वकील, पेंशनर, ठेकेदार, थोकदार शामिल थे.
जब यह बात हाल ही में जेल से छूटे जयानंद भारती को पता चली तो उन्होंने निश्चय किया कि लाट मैलकम के दरबार में वह तिरंगा फहरायेंगे. 6 सितम्बर 1932 को पौड़ी में लाट मैलकम का दरबार लगाने वाला था. लाट के दरबार में तिरंगा फहराने के उदेश्य से जयानंद भारती ने सकलानंद भारती से बात की. जयानंद भारती पहले दुगड्डा पहुंचे और फिर वेश बदल कर 5 सितम्बर 1932 को पौड़ी पहुंचे. रात को कोतवाल सिंह नेगी वकील के घर रुके.
उनके साथ उनके दो मित्र थे जिन्होंने उन्हें तिरंगे के दो और टुकड़े दिये थे. तिरंगे का तीसरा टुकड़ा जयानन्द भारती ने अपने पास रखा था. पौड़ी पहुँच कर तिरंगा कोतवाल सिंह नेगी वकील के घर पर सिलकर एक कर लिया गया.
जयानंद भारती
6 सितम्बर के दिन जयानंद भारती वेश बदल कर सभा में मंच के ठीक आगे बैठ गये. जयानंद भारती ने अपने कुर्ते की आस्तीन में तिरंगा छुपाकर रखा था. सभा में बैठे उनके साथियों में झंडे का डंडा सरकाना शुरू किया. इस बीच लाट मैलकम का अभिनंदन पत्र पढ़ा जा चुका था और इसी बीच झंडे का डंडा जयानंद भारती के पास पहुँच चुका था.
इधर लाट मैलकम का स्वागत के प्रत्युत्तर में बोलने के लिये खड़ा होना था उधर जयानंद भारती का डंडे पर तिरंगा चढ़ाना. लाट मैलकम बोलने ही वाला था कि फुर्ती से उठकर जयानन्द भारती तिरंगा लहराते हुये मंच की ओर बढ़ने लगे और नारा लगाने लगे ‘गो बैक मैलकम हेली’ ‘भारत माता की जय’ ‘अमन सभा मुर्दाबाद’ कांग्रेस जिंदाबाद’.
जयानंद भारती का एक पैर मंच पर था दूसरा नीचे तभी पुलिस और अन्य अधिकारियों ने उन्हें दबोच लिया. जयानंद भारती को मार पड़ती रही और जयानंद भारती और जोर से नारे लगाते रहे. जयानंद भारती के हाथ से तिरंगा छीनकर फाड़ दिया गया लेकिन जयानंद भारती ने नारे लगाना नहीं छोड़ा. इलाका हाकिम ने उनके मुंह में रुमाल ठुस दिया लेकिन भारती तब भी नारा लगाते रहे. इस बीच मैलकम हेली पुलिस पहरे में डाक बंगले की ओर भाग चुका था.
भारती को तत्काल हथकड़ी पहनाकर पौड़ी जेल ले जाया गया. जनता उनके पीछे हो ली. भारती के अनुरोध पर ही जनता अपने-अपने घरों को लौटी. इस गिरफ्तारी के बाद 28 सितम्बर 1933 को भारती जेल से छूटे.
शेखर पाठक की पुस्तक सरफ़रोशी की तमन्ना पर आधारित’.
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Salute to him!!!