हल्द्वानी में पहले हल्दू के पेड़ बहुतायत में हुआ करते थे इसलिए उसे हल्द्वानी कहा जाने लगा. वर्तमान हल्द्वानी के निकट मोटाहल्दू और हल्दूचौड़ गांव हैं. पूर्व में मोटाहल्दू के निकट वाले क्षेत्र को ही हल्द्वाणि या हल्द्वानी कहा जाता था. यहाँ फूंस के छप्परों में लोग रहा करते थे.
कहा जाता है कि 1834 में अँगरेज़ कमिश्नर जॉर्ज विलियम ट्रेल ने इसे बसाया था. ट्रेल ने सबसे पहले अपने लिये यहां बंग्ला बनाया , जिसे खाम बंगला कहा जाता है. सन 1850 से यहाँ पक्के मकान बनने लगे और नगर का विस्तार होने लगा. मोटाहल्दू एक गांव मात्र रह गया और आबादी वर्तमान हल्द्वानी की ओर बढ़ने लगी. यह और बात है कि मोटाहल्दू और हल्दूचौड़ भी अब वृहत्तर हल्द्वानी के हिस्से बन चुके हैं.
जिस जगह को मंगल पड़ाव कहा जाता है वहां मंगल के दिन बाज़ार लगा करता था और लोग अपनी जरूरत की चीज़ें खरीदा करते थे. अब मंगल पड़ाव केवल एक नाम रह गया है. बंजारों, तेलियों और सब्जी वालों की बसासत इस पैंठ (बाज़ार) के कारण हल्द्वानी में हुई. पूर्व में पीपलटोला और आज का पटेल चौक मिर्च, घी, शहद, हल्दी, अदरक आदि का साप्ताहिक बाज़ार था. कपड़ा, गुड़, बिसातखाना, मिश्री, गट्टा पैंठ पड़ाव से लेकर क्ले बाज़ार, पियर्सनगंज और सदर बाज़ार में बिका करते थे.
हल्द्वानी का मंगल का साप्ताहिक बाज़ार ही यहाँ के निवासियों और आसपास के भाबरी और तराई गांवों की खरीद-फरोख्त का एकमात्र आधार था. यही नहीं कुमाऊँ का यह प्रवेशद्वार कमोबेश इस अंचल की प्रमुख मंडी के रूप में तब्दील हो गया.
कहते हैं कि यहाँ की बाज़ार में तब सेर भर (चार पाव) की माप सवा सेर (पांच पाव) की होती थी. पहाड़ के व्यापारी और आम खरीदार को यहाँ पाव भर का अतिरिक्त फायदा हो जाया करता था. जनसंख्या बढ़ी, ज़रूरतें बढ़ीं, स्थाई बाज़ार बसे अपर रुपये की कीमत घटते जाने से आम खरीदार की हालत पतली होती चली गयी. (हल्द्वानी के इतिहास के विस्मृत पन्ने)
कला की विभिन्न विधाओं को समर्पित हल्द्वानी में रहने वाले दंपत्ति रचिता तिवारी और अमित श्रीवास्तव ने हल्द्वानी नगर के इतिहास, समाज व उसकी पारंपरिक विशेषताओं को चिन्हित करते हुए इस दिलचस्प फिल्म का निर्माण किया है. काफल ट्री की विशेष प्रस्तुति.
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धन्यावाद ।
धन्यावाद
अति सुन्दर फिल्म. औरौं कीं प्रतीक्षा है .
Manmohak varnan....
Wonderful,
अद्भुत रचना स्वयं की कहानी कहती औरों को उत्साहित करती
मैं अब नई हल्द्वानी हूं
सम्पादक मंडल के सभी सदस्यों को आभार ।
आभार
अद्भुत रचना स्वयं की कहानी कहती औरों को उत्साहित करती
मैं अब नई हल्द्वानी हूं ।
I am not that much attached to the city. But you recital take me in a state of trance, good wishes for both of you for your creativity
Haldwani is like a south of banglore.
Our most if the village person are live here permanently.