देवभूमि उत्तराखण्ड को शिव का निवास माना गया है. यहां भगवान शिव को कई रूपों में पूजा जाता है. हिमाचल सीमा से सटे उत्तराखण्ड के जौनसार-बावर तथा रवाई जौनपुर में पूजे जाने वाले महासू देवता इन्हीं में से हैं. उत्तरकाशी जिले मुख्यालय से लगभग 150 किमी दूरी पर हनोल में महासू देवता का लोकप्रिय मंदिर है. (Mahasu Devta Temple of Hanol)
महासू का अर्थ है महान शिव. इस नाम के सम्बन्ध में माना जाता है कि यह एक देवता न होकर देवकुल का बोधक है — बासक, पिबासक, भूथिया या बौठा, चलदा या चलता. इन चार भाइयों और माता देवलाड़ी को सामूहिक रूप से महासू कहा जाता है. ये सभी अपने-अपने क्षेत्रों के अधिपति और ईष्ट देव हैं लेकिन सभी पूरे क्षेत्र में ही सामान्य रूप से पूजे जाते हैं.
हनोल महासू देवता मंदिर का निर्माण हूण राजवंश के पंडित मिहिरकुल हूण ने करवाया था. यह मंदिर हूण स्थापत्य शैली का शानदार नमूना हैं व कला और संस्कृति की अनमोल धरोहर है. कहा जाता है कि इसे हूण भट ने बनवाया था, भट का अर्थ योद्धा होता हैं.
बौठा का प्रशासनिक केंद्र हनोल में है. लेकिन इसका प्रभाव क्षेत्र जौनसार-बावर के अतिरिक्त बंगाण में भी है. बासिक का प्रशासनिक केंद्र टौंस नदी के बायीं ओर का बावर व देवसार अर्थात साठीबिल (कौर क्षेत्र). इसे समर्पित मंदिर कूणा, बागी तथा रंग में. टौंस नदी का दक्षिण तटीय इलाका यानि पासीबिल (पांडव क्षेत्र) तथा बंगाण पवासी का प्रशासकीय क्षेत्र है. पवासी के प्रमुख मंदिर बामसू, चींवा, देवती, देववन, माकुड़ी, आराकोट, थैना, बिसोई, लखवाड़, लक्स्यार, रवाटुवा, तथा टगरी गाँवों में हैं. चालदा का अपना कोई क्षेत्र नहीं है. इसे चलदा इसीलिए कहा जाता है कि यह समय-समय पर अपने क्षेत्र के विभिन्न ग्राम समूहों में यात्रा करता रहता है. इसका मूल स्थान यद्यपि हनोल है लेकिन यह समल्टा, उदपल्टा, कोरू और सेरी खतों की भी यात्राएं करता रहता है. अपनी यात्रा के दौरान यह गांव वालों से बकरे की बलि व् अन्य भेंट पूजा स्वीकार करता है. यात्रा के दौरान इसके दल में सौ-दौसौ कर्मचारियों का समूह रहता है, ग्रामीण इन सभी के भोजन और आवास का बंदोबस्त करते हैं. अपनी इस यात्रा के दौरान यह एक रात हनोल के मंदिर में भी विश्राम करता है जो कि बौंठा के प्रशासनिक क्षेत्र में आता है. महासू मंदिर में बौंठा के साथ अन्य तीनों भाई भी मौजूद हैं इस वजह से इसे चारों महासुओं का माना जाता है. इस मंदिर में चारों महासुओं के अलावा इनके चारों वीर — कपला, कैलथा, कैलू और शेर कुड़िया की भी मूर्तियाँ प्रतिष्ठित हैं. यहां इन सभी को पूजा जाता है. मान्यतानुसार कैलू को बैंठा, कपला को बासिक, कैलथा को पबासी, और शेरकुड़िया को चालदा का वीर माना जाता है.
टौंस नदी के किनारे महासू मंदिर, हनोल में हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीय-चतुर्थी (गणेश चतुर्थी) को वार्षिक महोत्सव मनाया जाता है जिसे जागड़ा कहा जाता है. जागड़ा बौंठा के मंदिर में तृतीया को तथा चालदा के मंदिर में चतुर्थी को को मनाया जाता है. तृतीया को बुधवार होने पर बौंठा का जागड़ा भी चतुर्थी को ही होता है. Mahasu Devta Temple of Hanol
(उत्तराखण्ड ज्ञानकोष, प्रो. डीडी शर्मा के आधार पर)
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