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महादेवी वर्मा और कुमाऊँ के रामगढ़ में उनकी मीरा कुटीर

महादेवी वर्मा हिन्दी साहित्य के महत्वपूर्ण छायावादी आन्दोलन के चार बड़े नामों में से एक थीं. इस समूह में उनके अलावा जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पन्त और महाप्राण सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ थे. आज हम आपको उत्तराखण्ड राज्य में उनके एक ऐसे घर के बारे में बताते हैं जिसे उन्होंने अपनी साहित्य साधना के लिए अरसा पहले खरीदा था. (Mahadevi Verma Museum Ramgarh)

नैनीताल जिले के मुक्तेश्वर-रामगढ़ इलाके में अनेक स्थानों से हिमालय की अद्भुत छटा देखने को मिलती है. तकरीबन 180 डिग्री के विस्तार में सामने फ़ैली हिमाच्छादित पर्वतश्रेणियां दिन भर में अपने हज़ार रूप बदलती हैं. यह इलाका बहुत लम्बे समय से लिखने-पढ़ने वालों का प्रिय रहा है. बताया जाता है ठाकुर रवीन्द्रनाथ टैगोर लम्बे समय तक यहाँ रहे और उन्होंने अनेक रचनाएं यहाँ कीं. बताया तो यह भी जाता है कि वे शान्तिनिकेतन का निर्माण भी इसी इलाके में करना चाहते थे.

महादेवी वर्मा 26 मार्च, 1907 को उत्तर प्रदेश के फर्रुखाबाद जिले में जन्मी थीं और उन्होंने इलाहाबाद नगर को अपनी कर्मभूमि बनाया. जानकार लोग बताते हैं कि जब 1933 में वे शान्तिनिकेतन गयी थीं तो वहां उनकी भेंट ठाकुर रवीन्द्रनाथ टैगोर से हुई जिन्होंने उनसे रामगढ़ की नैसर्गिक सुन्दरता का विस्तार में ज़िक्र किया. अगले साल महादेवी वर्मा ने बद्रीनाथ की यात्रा की. वहां से वापस आते हुए उन्हें टैगोर की सलाह याद थी सो वे एक रात के लिए रामगढ़ के ऐन सामने स्थित उमागढ़ नाम के छोटे से गांव में ठहरीं.

यह स्थान उन्हें इतना भाया कि उन्होंने 1936 में गर्मियों में आकर रहने के लिए यहाँ एक भवन खरीदा जिसका नाम मीरा कुटीर रखा गया. इस भवन में रह कर महादेवी ने अनेक कई गद्य रचनाएं तो की हीन, अपने संग्रह ‘दीपशिखा’ (1942) पर समूचा कार्य भी यहीं किया.

वे जब तक जीवित थीं, उन्होंने अपने साथी कवि-साहित्यकारों को यहाँ रहने और रचना करने के लिए अक्सर बुलाया. उनके बुलावे पर यहाँ आने वालों में धर्मवीर भारती, इलाचंद्र जोशी और सुमित्रानंदन पंत जैसे अग्रणी साहित्यकार शामिल रहे.

11 सितंबर 1987 को महादेवी वर्मा की मृत्यु हो गयी. उनके जाने के बाद लम्बे समय तक यह भवन उपेक्षा का शिकार बना रहा लेकिन महादेवी जी के सलाहकार रामजी पाण्डेय, उपन्यासकार लक्ष्मण सिंह बिष्ट बटरोही और कवि-सम्पादक वीरेन डंगवाल के प्रयासों से सरकार ने इस इमारत में दिलचस्पी ली और इसे नैनीताल स्थित कुमाऊँ विश्वविद्यालय की देखरेख में एक साहित्य-संग्रहालय का रूप दे दिया गया.

आज इस भवन में महादेवी वर्मा सृजन पीठ नामक महत्वपूर्ण साहित्यिक केंद्र संचालित होता है जो वर्ष भर होने वाले विविध कार्यक्रमों में देश के युवा-वरिष्ठ लेखल-रचनाकारों की उपस्थिति सुनिश्चित करता है.

महादेवी सृजन पीठ में एक गोष्ठी

इस पीठ के संस्थापक रहे मशहूर उपन्यासकार प्रो. लक्ष्मण सिंह बिष्ट बटरोही का महादेवी वर्मा की इस विरासत को बचाए रखने का सबसे अधिक श्रेय दिया जाना चाहिए.

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