सात बार एवरेस्ट फतह कर चुके बीएसएफ के असिस्टेंट कमांडेंट पद्मश्री लवराज धर्मसक्तू की कहानी भी किसी चमत्कारिक फिल्मी कथा से कम नहीं है. लवराज धर्मसक्तू का गांव बौना मुनस्यारी से 35 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई में हिमालय में ही था. गांव में आलू, सेव, राजमा भरपूर मात्रा में होता था. लेकिन बाजार ना होने के कारण मुफलिसी ही इस इलाके में आम थी. यह वर्ष 1989 की बात थी जब 16 वर्ष के नवयुवक लवराज सिंह जीवन की अनिश्चितता में, रोजगार की तलाश में लखनऊ पहुंच गया. जान पहचान और सूत्र ज्यादा ना थे. ऐसे ही इलाके से परिचित प्रसिद्ध पर्वतारोही सुश्री चंद्रप्रभा एतवाल जिन्हें की उस वर्ष 15 अगस्त को नंदा कोट अभियान के लिए उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी द्वारा फ्लैग ऑफ किया जाना था पर्वतारोहियों के इस दल का सामान ले जाने के लिए एक अदद पोर्टर भी चाहिए था. इस काम के लिए लवराज से पूछा गया तो किशोर लवराज तैयार हो गया, और कमाल यह हो गया कि बिना ट्रेनिंग के लवराज पहले ही प्रयास में सुश्री चंद्रप्रभा एतवाल के साथ नंदा कोट पहुंच गया. यह आसान अभियान न था. लव राज में छिपे एक दुर्लभ पर्वतारोही को चंद्रप्रभा एतवाल ने पहचाना और वर्ष 1991-92 में NIM उत्तरकाशी से एडवांस कोर्स कराया और भारत की झोली में एक प्रतिभाशाली माउंटेनियर डाल दिया.
साहसिक पर्यटन में अपने कैरियर की शुरुआत करने वाले लवराज धर्मसक्तू पहले भारत की दर्जनों चोटियों तक पहुंचे. 1998 में पहली बार महाराष्ट्र टीम के सहयोग से एवरेस्ट पर पहुंचे. फिर 1999 में ही टाटा मोटर्स की टीम जो टाटा सूमो के प्रमोशन के लिए एवरेस्ट पर गई थी का नेतृत्व किया. 2003 मे एवरेस्ट ईस्ट फेस से समिट किया. 2009 मे NIM टीम, 2012 इंटरनेशनल इको एवरेस्ट में बिना आक्सीजन के समिट किया, 2013 मे भारत की पैरा (विकलांग) माउन्टेनियर अरूणिमा सिन्हा को एवरेस्ट समिट कराया, जिसके बाद भारत सरकार ने 2014 मे लवराज को पदमश्री से सम्मानित किया. लवराज 2017 और फिर मई 2018 मे सातवीं बार बी. एस. एफ के 25 माउन्टेनियर के साथ एवरेस्ट पर समिट कर अपना ही रिकॉर्ड सुधार चुके हैं.
माउन्टेनियर अपने साथ जो कुन्टलों गार्बेज ले जाते हैं उसकी प्रवृति एवरेस्ट को बर्फ के कूड़ेदान में तब्दील कर रही है. वर्ष 2015 से अब तक वे 2100 किलो गार्बेज एवरेस्ट से साफ कर चुके हैं. इसके लिए नेपाल सरकार से हैलीकॉप्टर लैन्डिंग की अनुमति भी प्राप्त की. आगे जो करीब 150 से अधिक शव एवरेस्ट इलाके मे बिखरे हुए हैं उनके संस्कार की योजना है.
एवरेस्ट में पैसे का खेल
एवरेस्ट दुनिया का सबसे महंगा स्पोर्टस है जिसमे 11 लाख रूपए नेपाल सरकार में रजिस्ट्रेशन फी, जो डालर मे चुकानी होती है, देनी होती है, एक सदस्य की 25 हजार डालर और 7 सदस्यीय टीम की 70 हजार डालर है. इसके अलावा 6-7 लाख रूपये विंड चीटर, डाउन सूट, स्लीपिंग बैग, बूट, आक्सीजन का न्यूनतम खर्च है. यह स्पोर्ट्स बिना स्पोंसर के बहुत कठिन है. सबसे कामयाब माउन्टेनरिंग किट अमेरिका के माउन्टेनियर पैडागोनिया ब्रदर का माना जाता है, जो उनके खुद माउन्टेनरिंग के अनुभव से तैयार है.
एवरेस्ट का काला पक्ष
बिना शेरपा के एवरेस्ट समिट की कल्पना भी कठिन है. नेपाल की अर्थव्यवस्था मे एवरेस्ट का बड़ा योगदान है. लेकिन शेरपा 40 वर्ष बाद बेरोजगार हो जाते हैं. एवरेस्ट अभियान मे 7 सिलैंडर आक्सीजन चाहिए होते हैं जिनकी रास्ते मे चोरी भी हो जाती है. जिससे कई एवरेस्ट-आरोहियों की मौत भी हो गई. एवरेस्ट अभियान मे अभी तक 300 से अधिक मौत हो चुकी हैं.
फिलहाल यह चैम्पियन कहता है – “मैं एवरेस्ट और शेरपाओं के लिए कुछ करना चाहता हूं क्योंकि एवरेस्ट मेरा भगवान है उसी से मुझे यह मुकाम हासिल है. उत्तराखंड मेरा घर है. यहां की हर जरूरत पर मैं मौजूद रहूंगा.”
(30 सितम्बर को नैनीताल माउंटेनियरिंग क्लब के गोल्डन जुबली कार्यक्रम में श्री लवराज धर्मसक्तू से प्रमोद साह बातचीत पर आधारित)
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प्रमोद साह
हल्द्वानी में रहने वाले प्रमोद साह वर्तमान में उत्तराखंड पुलिस में कार्यरत हैं. एक सजग और प्रखर वक्ता और लेखक के रूप में उन्होंने सोशल मीडिया पर अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफलता पाई है. वे काफल ट्री के लिए नियमित लिखेंगे.
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